Manohar Shyam Joshi Biography In Hindi: आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवि मनोहर श्याम जोशी का जीवन परिचय
मनोहर श्याम जोशी (Manohar Shyam Joshi) का जन्म 9 अगस्त 1933 को राजस्थान के अजमेर में और मृत्यु 30 मार्च 2006 को नई दिल्ली में हुई थी। ये आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध गद्यकार, उपन्यासकार, व्यंग्यकार, पत्रकार, दूरदर्शन धारावाहिक लेखक, जनवादी-विचारक, फ़िल्म पट-कथा लेखक, उच्च कोटि के संपादक, कुशल प्रवक्ता तथा स्तंभ-लेखक थे। दूरदर्शन के प्रसिद्ध और लोकप्रिय धारावाहिकों- 'बुनियाद', 'नेताजी कहिन', 'मुंगेरी लाल के हसीं सपने', 'हम लोग' आदि के कारण वे भारत के घर-घर में प्रसिद्ध हो गए थे। उन्होंने धारावाहिक और फ़िल्म लेखन से संबंधित 'पटकथा-लेखन' नामक पुस्तक की रचना की है। 'दिनमान' और 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' के भी वे संपादक रहे, तो आईये आज आपको मिलते हैं इनके जीवन से करीब से...
| मनोहर श्याम जोशी |
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| पूरा नाम | मनोहर श्याम जोशी |
| जन्म | 9 अगस्त, 1933 |
| जन्म भूमि | अजमेर, राजस्थान |
| मृत्यु | 30 मार्च, 2006 |
| मृत्यु स्थान | नई दिल्ली |
| कर्म भूमि | भारत |
| मुख्य रचनाएँ | 'क्याप', 'कसप', 'नेताजी कहिन', 'कुरु कुरु स्वाहा' (उपन्यास), 'हम लोग', 'बुनियाद' (धारावाहिक)। |
| भाषा | हिन्दी |
| विद्यालय | लखनऊ विश्वविद्यालय |
| पुरस्कार-उपाधि | सन 2005 में साहित्य अकादमी पुरस्कार ('क्याप'), 1993-94 में राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान |
| नागरिकता | भारतीय |
| अन्य जानकारी | मनोहर श्याम जोशी हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध गद्यकार, उपन्यासकार, व्यंग्यकार, पत्रकार, दूरदर्शन धारावाहिक लेखक, जनवादी-विचारक, फ़िल्म पट-कथा लेखक, उच्च कोटि के संपादक, कुशल प्रवक्ता तथा स्तंभ-लेखक थे। |
मनोहर श्याम जोशी का जन्म | Manohar Shyam Joshi Birth And Early Life
आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध गद्यकार, उपन्यासकार, व्यंग्यकार, पत्रकार, दूरदर्शन धारावाहिक लेखक, जनवादी-विचारक, फ़िल्म पट-कथा लेखक, उच्च कोटि के संपादक, कुशल प्रवक्ता तथा स्तंभ-लेखक मनोहर श्याम जोशी का जन्म 9 अगस्त, 1933 को राजस्थान के अजमेर के एक प्रतिष्ठित एवं सुशिक्षित परिवार में हुआ था।
मनोहर श्याम जोशी की शिक्षा | Manohar Shyam Joshi Education
मनोहर श्याम जोशी की प्रारम्भिक शिक्षा अजमेर की एक सामान्य में पाठशाला हुयी थी । इसी विद्यालय में उन्होंने इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा ली तथा इस दौरान वे अपने चाचा श्री भोलादत्त जोशी के साथ रहते । जोशी जी की गणना उनके विद्यार्थी जीवन में मेधावी छात्रों में की जाती थी । उन्हें अंग्रेजी विषय से लगाव तो था ही, साथ ही उस विषय पर पकड़ भी अच्छी थी । अतः वे अपने प्रश्पत्रों के उत्तर इसी विषय में देते थे और हमेशा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होते थे । हिंदी विषय में उनका हाथ कुछ तंग हुआ करता था अतः इस विषय में वे कभी पचास प्रतिसत का आंकड़ा पार नहीं कर पाए ।
अध्ययन के अतिरिक्त विद्यालय के अन्य कार्यक्रमों में भी उनकी सहभागिता बढ़-चढ़कर रहती थी । ‘हिन्दी के विरुद्ध हिन्दुस्तानी’ विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता में विजयी होने पर उन्हें अज्ञेय कृत ‘शेखर एक जीवनी’ नामक पुस्तक पुरस्कार स्वरूप प्राप्त हुयी । इस पुस्तक की उपेक्षा करते हुए उन्होंने उसे जस के तस रख दिया । विज्ञानं में विशेष रुचि होने के कारण वे एक वैज्ञानिक बनना चाहते थे । इण्टरमीडिएट परीक्षा के पश्चात् उच्च शिक्षा हेतु उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में सिविल इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया । इस दौरान उन्होंने मुंशी प्रेमचन्द की कहानी ‘सज्जनता का दण्ड’ पढ़ी जिससे प्रभावित होकर उन्हें इंजीनियरी का व्यवसाय ही अनैतिकता का प्रतीक लगने लगा और फिर उन्होंने इसे बीच में ही छोड़ दिया । उपरांत उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में बी०एस०सी० में प्रवेश लिया । इस दौरान वे कम्युनिस्टों के सम्पर्क आये । पारिवारिक किस्सागोई परम्परा के कारण वे लेखन कला की और अग्रसर हुए ।
लेखन से जुड़ने तथा स्टूडेंट्स यूनियन के कार्यों मे सक्रिय भागीदारी के परिणामस्वरूप उनकी पढ़ाई पर प्रतिकूल असर पड़ा । लीडरी और स्ट्राइक के चक्कर में बी.एस.सी. में वे द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण हुए और शुक्ल मुक्ति तथा छात्रवृत्ति जैसी सुविधायें जाती रहीं । अतः वे एम.एस.सी. न कर सके किन्तु प्राइवेट रूप से उन्होंने अंग्रेजी विषय में एम.ए. किया ।
मनोहर श्याम जोशी का परिवार | Manohar Shyam Joshi Family
मनोहर श्याम जोशी के पिता का नाम श्री प्रेमवल्लभ जोशी था । वे तत्कालीन महान शिक्षाविद् होने के साथ-साथ एक संगीत प्रेमी भी थे । श्री प्रेमवल्लभ जोशी ने विज्ञान से स्नातक तथा इतिहास से एम.ए. किया था । वे अजमेर के राजकीय महाविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर पद पर आसीन थे । इस पद से त्यागपत्र देने के उपरांत वे राजस्थान के राजकीय उच्च निदेशालय में प्रथम भारतीय प्रधानाध्यापक के सम्मानजनक पद पर आसीन हुए । अपने सहपाठी सहपाठी डॉ. गोरखप्रसाद के साथ मिलकर उन्होंने हिन्दी भाषा में विज्ञान सम्बन्धी पुस्तकें भी लिखीं ।
मनोहर श्याम जोशी की माता का नाम ‘रुक्मिणी देवी ‘ था । वे एक कुलीन कुमाऊँनी ब्राह्मण परिवार की कन्या थीं । साहित्यानुराग उन्हें उनके ननिहाल से प्राप्त हुआ था । उनके मामाजी पेशे से डिप्टी कलेक्टर थे । वे ब्रजभाषा, अंग्रेजी, संस्कृत, फारसी, हिन्दी-बंगला के विद्वान थे तथा उनका नाम हिन्दी साहित्य के इतिहास में बंगला से हिन्दी में सर्वप्रथम अनुवाद करने वालों लोगों में गिना जाता रहा है । वे जीवन पर्यन्त फारसी से ब्रजभाषा में अनुवाद तथा ब्रजभाषा में कविताएँ लिखने में लगे रहे ।
जोशी जी के अनुसार उनकी माता में किसी भी व्यक्ति का हुबहू नक़ल करने की अद्भुत प्रतिभा थी । वे आवाज बदलकर किसी की भी नक़ल उतार सकती थीं । माता का यह गुण उनके बच्चों में भी आ गया । अतः कहा जा सकता है की नक़ल करने और किस्सागोई की प्रतिभा जोशी जी को उनके परिवार से ही विरासत में मिली । दिसम्बर 1973 में उनकी माताजी का निधन हुआ था ।
जोशी जी के बड़े भाई का नाम दुर्गादत्त जोशी था । उनके भाई का भी उन पर खासा प्रभाव रहा है । उनकी बहन का नाम भगवती है । भगवती ‘छाया’ नाम से कहानियाँ लिखा करती थी । मनोहर श्याम जोशी के चाचाजी भी शौकिया कविता और कहानी लिखा करते थे ।
मनोहर श्याम जोशी का विवाह | Manohar Shyam Joshi Marriage
मनोहर श्याम जोशी जी का विवाह डॉ० श्रीमती भगवती जोशी से 6 फरवरी, 1966 में हुआ था । वे दिल्ली के लेडीज श्रीराम कालेज में हिन्दी की प्राध्यापिका थी । उनके अनुपम, अनुराग और आशीष तीन पुत्र हैं ।
मनोहर श्याम जोशी का करियर | Manohar Shyam Joshi Career
मनोहर श्याम जोशी को साहित्य और पत्रकारिता की बहुमुखी प्रतिभा का धनी माना जाता है। उन दिनों टेलीविजन धारावाहिकों में उनकी लिखी पटकथाएं लोकप्रियता शीर्ष पायदान पर रहीं। उसी तरह कुमाउंनी हो या अवधी, उनकी रचनाओं में भाषा के भी अलग-अलग मिजाज मिलते हैं। साथ ही बंबइया और उर्दू की भी मुहावरेदारी और ‘प्रभु तुम कैसे किस्सागो’ में कन्नड़ के शब्दों की बहुतायत। मनोहर श्याम जोशी जिन दिनो मुंबई में फ्रीलांसिंग कर रहे थे तो ‘धर्मयुग’ के संपादक धर्मवीर भारती ने उनसे ‘लहरें और सीपियां’ स्तंभ लिखवाना चाहा।
‘लहरें और सीपियां’ मुंबई के उस देह व्यापार पर केंद्रित करके लिखना था, जो जुहू चौपाटी में उन दिनों फूल-फल रहा था। इस गलीज धंधे का अपना एक तंत्र था। चुनौती खोजी पत्रकारिता की थी। स्वभाव के विपरीत होते हुए भी मनोहर श्याम जोशी ने उस चैलेंज को सिर-माथे लिया। जोशी ने साप्ताहिक हिंदुस्तान और वीकेंड रिव्यू का भी संपादन किया और विज्ञान से लेकर राजनीति तक सभी विषयों पर लिखा। उन्हें 2005 में साहित्य अकादमी का प्रतिष्ठित पुरस्कार दिया गया था।
मनोहर श्याम जोशी का कहना था कि समाज में व्यंग्य की जगह ख़त्म हो गई है क्योंकि वास्तविकता व्यंग्य से बड़ी हो गई है। व्यंग्य उस समाज के लिए है, जहाँ लोग छोटे मुद्दों को लेकर भी संवेदनशील होते हैं। हम तो निर्लज्ज समाज में रहते हैं, यहाँ व्यंग्य से क्या फ़र्क पड़ेगा। टीवी सीरियलों की दशा से नाखुशी जताते हुए वह कहते थे कि टीवी तो फ़ैक्टरी हो गया है और लेखक से ऐसे परिवार की कहानी लिखवाई जाती है, जिसमें हीरोइन सिंदूर लगाकर पैर भी छू लेती है और फिर स्विम सूट भी पहन लेती है।
मनोहर श्याम जोशी का व्यक्तित्व | Manohar Shyam Joshi Personality
मनोहर श्याम जोशी हमारे दौर की एक साधारण शख़्सियत थे। साहित्य, पत्रकारिता, टेलीविजन, सिनेमा जैसे अनेक माध्यमों में वह सहजता से विचरण कर सकते थे। उनकी मेधा और ज्ञान जितना चर्चित था, उतना ही उनका विनोद और सड़क के मुहावरों पर उनकी पकड़ भी जानी जाती थी।
मनोहर श्याम जोशी उपन्यासकार के रूप में | Manohar Shyam Joshi As A Novelist
वे जब मुंबई में फ्रीलांसर के तौर पर कार्य कर रहे थे, तब 'धर्मयुग' के तत्कालीन संपादक धर्मवीर भारती ने उनसे 'लहरें और सीपियां' नाम से एक स्तंभ लिखने को कहा था, जो मुंबई के उस सेक्स बिजनेस पर आधारित होना था, जो जुहू चौपाटी में चलता था। लड़कियाँ-औरतें शाम के वक्त ग्राहकों को पटाने के लिए घूमती रहती हैं। तब जुहू चौपाटी के आसपास कई दलाल भी घूमते रहते थे। अपने क्लाइंट के लिए ग्राहक पटाने का काम करते थे। दलालों के अपने कई क्लाइंट होते थे। ग्राहक को एक लड़की पसंद न आये तो दूसरी-तीसरी पेश करते थे। इन सबका अपना एक तंत्र था। इसी के बारे में लिखना था। मामला कुछ-कुछ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म का था। लड़कियाँ इस पेशे में कैसे आती हैं, उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि क्या-क्या है, बिजनेस कैसे चलता है जैसी बातें खोज निकालनी थीं। इस खोज के दौरान जोशी जी की मुलाकात बाबू से हुई थी, जो इस उपन्यास का पात्र है। बाबू ने ही उनकी मुलाकात 'पहुंचेली' से कराई थी, जो 'कुंरु कुरं स्वाहा' की प्रमुख महिला किरदार है।
मनोहर श्याम जोशी की स्मरण शक्ति अदभुत थी। रंजीत कपूर उस समय मोहन राकेश का अधूरा नाटक 'पैर तले की ज़मीन' भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंग मंडल के लिए करने वाले थे। उन्होंने जोशी जी से पूछा कि क्या आपने राकेश का वो नाटक पढ़ा है। जोशी ने कहा कि ठीक से याद नहीं है, मगर धीरे-धीरे पूरे नाटक का सार संक्षेप में बता दिया। यह सब ये भी दिखाता है कि वे नाटक भी कितने ध्यान से पढ़ते थे। अधूरे नाटक भी।
मनोहर श्याम जोशी पटकथा लेखक के रूप में | Manohar Shyam Joshi's Screenplay
जोशी जी टेलीविजन के धारावाहिक लिखने में कितने उस्ताद थे, ये सभी जानते हैं। पर वे कुछ धारावाहिक अपने मित्रों को लिखने के लिए दिलवा देते थे। कुछ साल पहले दूरदर्शन कई धारावाहिकों की योजनाएं बना रहा था। जोशी जी ने अमिताभ श्रीवास्तव को कहा कि मुंबई के एक निर्माता के लिए तेरह एपिसोड का धारावाहिक लिख दो। फिर उसका विषय भी दिया। उन्होंने कहा कि 'एक फूल दो माली' हॉलीवुड की एक फ़िल्म की नकल है। उसी मूल कहानी को भारतीय पृष्ठभूमि में रूपांतरित करने के लिए कहा और उसके लिए कुछ नुस्खे भी सुझाए। हालांकि बाद में वो धारावाहिक बना नहीं।
भाषा के जितने विविध अंदाज़और मिज़ाज मनोहर श्याम जोशी में हैं, उतने किसी और हिंदी कथाकार में नहीं। कभी शरारती, कभी उन्मुक्त। कभी रसीली तो कभी व्यंग्यात्मक। कभी रोजमर्रे की बोलचाल वाली तो कभी संस्कृत की तत्सम पदावली वाली। उनकी भाषा में अवधी का स्वाद भी है। कुमाउंनी का मजा और परिनिष्ठित खड़ी बोली का अंदाज़भी। साथ ही बंबइया (मुंबइया नहीं) की भंगिमा भी। वे कुमाऊँ के थे, इसलिए कुमाउंनी पर अधिकार तो स्वाभाविक था और 'कसप' में उसका प्रचुर इस्तेमाल हुआ है। लेकिन 'नेताजी कहिन' की भाषा अवधी है। 'कुरु कुरु स्वाहा' में बंबइया हिंदी है। 'हमजाद' में तो पूरी तरह उर्दू के लेखक-मुहावरेदारी है। सिर्फ उसकी लिपि देवनागरी है। उनकी एक कहानी 'प्रभु तुम कैसे क़िस्सा गो' में तो कन्नड़ के कई सारे शब्द हैं। वैसे इस कहानी पर भी वेश्याओं के जीवन पर उनके शोध का प्रभाव है। हालांकि ये कहानी हिंदी कहानी-साहित्य और विश्व कथा साहित्य- अलबेयर कामू, हेनरी मिलर, ओ'हेनरी आदि के लेखन को कई प्रसंगों से समेटती है।
1982 में जब भारत के राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन पर उनका पहला नाटक "हम लोग" प्रसारित होना आरम्भ हुआ, तब अधिकतर भारतीयों के लिये टेलीविज़न एक विलास की वस्तु के जैसा था। मनोहर श्याम जोशी ने यह नाटक एक आम भारतीय की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी को छूते हुए लिखा था, इसलिये लोग इससे अपने को जुड़ा हुआ अनुभव करने लगे। इस नाटक के किरदार जैसे कि लाजो जी, बडकी, छुटकी, बसेसर राम का नाम तो जन-जन की ज़ुबान पर था।
मनोहर श्याम जोशी का लेखकीय जीवन | Manohar Shyam Joshi As A Writer And Poet
जोशी जी अपने चाचा भोलादत्त जोशी को अपना प्रथम गुरु मानते हैं । वे मानते हैं कि लेखन की सर्वप्रथम प्रेरणा तथा मार्गदर्शन उन्हें अपने चाचा से ही प्राप्त हुआ । चाचा के आमंत्रण पर चूँकि उन्हें श्मशान के मार्ग से होकर जान था, भयवश वे नहीं पहुँच सके और इसके कारण होने वाले उपहास के प्रत्युत्तर में दिए गए उनके तर्कों को सुनकर उनके चाचा ने उन्हें लिखने का सुझाव दिया । इस सन्दर्भ में उन्होंने एक लेख “डर से मैं क्यों डरता हूँ ?” लिखा । इस लेख में भाषाई त्रुटियों को सुधारने के साथ-साथ उन्होंने जोशी जी को भविष्य के लेखन के लिए प्रोत्साहित किया ।
प्रगतिशील लेखक संघ से प्रभावित होकर उन्होंने अपने लेखकीय जीवन का आरम्भ कहानियों के माध्यम से किया । अपनी पहली दो कहानियों को फाड़ कर फेंकने उपरांत तीसरी कहानी ‘मैडिरा-मैरून’ को वे मूर्त रूप देने में सफल रहे । भगवतीचरण वर्मा, यशपाल और नागरजी के समक्ष लेखक संघ की बैठक में अपनी इस कहानी का उन्होंने वचन किया जिससे नगर जी बहुत प्रभावित हुए और उन्हें गले लगा लिया । जोशी जी ने नगर जी को विधिवत अपना गुरु बना लिया । जोशी जी मानते हैं की नागर जी की शिष्यता का उन पर बहुत गहरा प्रभाव रहा है ।
जोशी जी ने ‘जनसत्ता’ के परिशिष्ट के लिये विज्ञान खेलकूद, साहित्य, कला, रंगमंच, सिनेमा आदि विषयों पर लिखना आरम्भ किया । इसके लिए उन्हें मात्र पाँच रुपये कॉलम की दर से मेहनताना दिया जाता था । बाद में वात्सायनजी के कहने पर वे हिन्दी समाचार कक्ष में नौकरी करने लगे जिस दौरान उन्हें ढाई सौ रुपये माहवार मिलता था । उनकी पहली कहानी ‘धुआँ’ बम्बई से प्रकाशित होने वाले मासिक ‘सरगम‘ और ‘सुदर्शन’ में प्रकाशित हुयीथी । उनकी एक अन्य कहानी गणेशजी ‘हंस’ में छपी । बाद में भगवती चरण वर्मा की पत्रिका ‘उत्तरा’ में भी उनकी दो कहानियाँ छपीं ।
केन्द्रीय सूचना सेवा में वे बम्बई के फिल्म प्रभाग में पटकथा एवं भाष्यलेखक के रूप में नियुक्त हुए । यहाँ पहुचने के उपरांत ही उनके दिमाग में फिल्मी दुनिया को लेकर विशेष रूचि जागृत हुयी । इस दौरान उन्होंने फ़िल्मी पटकथाओं और टिप्पणियों पर भी लेखन कार्य किया । जोशी जी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देकर ‘नव पत्रकारिता‘ की नींव रखी । उन्हें पत्रकारिता के लिए कम किन्तु व्यावसायिकता के लिए अधिक जाना जाता है । अज्ञेय की शिष्य मण्डली में शामिल होने के पश्चात् अपने को कविता लेखन की ओर प्रवृत्त किया किन्तु एक कवि के रूप में अपनी रचनाओं को लेकर वे हमेशा शंकाशील ही बने रहे ।
मनोहर श्याम जोशी की रचनाएँ | Manohar Shyam Joshi Writings And Creations
मनोहर श्याम जोशी के प्रमुख धारावाहिक | Manohar Shyam Joshi Serials
- हमलोग
- बुनियाद
- कक्का जी कहिन
- मुंगेरी लाल के हसीन सपनें
- हमराही
- ज़मीन आसमान
- गाथा
मनोहर श्याम जोशी के प्रमुख उपन्यास | Manohar Shyam Joshi Novels
- कसप
- नेताजी कहिन
- कुरु कुरु स्वाहा
- कौन हूँ मैं
- क्या हाल हैं चीन के
- उस देश का यारो क्या कहना
- बातों बातों में
- मंदिर घाट की पौडियां
- एक दुर्लभ व्यक्तित्व
- टा टा प्रोफ़ेसर
- क्याप
- हमज़ाद
मनोहर श्याम जोशी का कहानी संग्रह | Manohar Shyam Joshi Stories
- एक दुर्लभ व्यक्तित्व
- व्यंग्य रचनाएँ
- उस देश का यारों क्या कहना
मनोहर श्याम जोशी के सम्पादकीय लेख | Manohar Shyam Joshi Editorial Work
मनोहर श्याम जोशी ने ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ तथा ‘विकेंद्र रिव्यु’ का काफी लम्बे समय तक संपादन का कार्य किया है । अपनी पत्रकारिता के इस काल में किये गए उनके कई आधुनिक प्रयोग विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । ‘धर्मयुग’ जैसे आदि कई पत्रों में भी उनके लेख छपते रहे हैं । प्रिंट मीडिया उनका पसंदीदा क्षेत्र रहा है । उन्होंने कई यात्रा वृतान्त भी लिखे हैं जो आज भी अप्रकाशित हैं ।
मनोहर श्याम जोशी का फिल्म लेखन | Manohar Shyam Joshi In Movies
जोशी जी ने ‘भ्रष्टाचार’, ‘अप्पू राजा’ जैसी फिल्मो के संवाद लिखे । साथ ही उन्होंने अपने केन्द्रीय सुचना विभाग के कार्यकाल के दौरान लगभग 250 से अधिक फ़िल्मी पटकथाओं और टिप्पणियों पर भी लेखन किया । उन्होंने ‘पापा कहते हैं’ तथा ‘हे राम’ का भी लेखन किया ।
मनोहर श्याम जोशी की उपलब्धियाँ और सम्मान | Manohar Shyam Joshi Awards
- पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान के लिए सन् 1974 में ‘मातुश्री’ पुरस्कार से सम्मानित किये गए ।
- हिन्दी साहित्य अकादमी, दिल्ली का ‘साहित्य सम्मान’ वर्ष 1980 में मनोहर श्याम जोशी जी को दिया गया ।
- मनोहर श्याम जोशी जी को वर्ष 1984 में ‘चेकोस्लोवाकिया’ ‘एग्रोफिल्म फेस्टीवल‘ पुरस्कार प्राप्त हुआ ।
- उन्हें ‘अट्टहास शिखर’ सम्मान वर्ष 1990 में मिला ।
- 1 सितम्बर, 1991 को उन्हें ‘सभा पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया ।
- चकल्लस पुरस्कार वर्ष 1992 में प्राप्त हुआ ।
- वर्ष 1993 में जोशी जी को ‘शारदा सम्मान’ प्राप्त हुआ ।
- वर्ष 1993-94 का ‘शरद जोशी सम्मान’ जो मध्यप्रदेश सर्कार द्वारा दिया जाता है, प्राप्त हुआ ।
- सन 1996 में उन्हें टी०वी० के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिए ‘ओनिडा पिनेकल एवार्ड’ तथा ‘टेपा व्यंग्य’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
- उनके उपन्यास ‘कसप’ के लिए वर्ष 1994 में उन्हें मध्य प्रदेश शासन का पुरस्कार दिया गया ।
- कहानी संग्रह एक दुर्लभ व्यक्तित्व पर हिन्दी साहित्य संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा पुरस्कृत किया गया ।
- उनके दूरदर्शन धारावाहिक ‘बुनियाद‘ और ‘हमराही’ के लिए ‘कासलीवाल’ और ‘अपट्रान’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
- धारावाहिक ‘हमराही’ के लिए न्यूयार्क में ‘डे टाइमएमी’ और ‘सोप ओपेरा डाइजेस्ट’ की ओर से पुरस्कृत किया गया ।
- ‘हमराही’ और ‘हमलोग’ इन दोनों धारावाहिकों पर अमेरिका में ‘रॉकफेलर फाउण्डेशन’ के सहयोग से विशेष शोधकार्य किया गया।
- मनोहर श्याम जोशी जी को विभिन्न प्रतिष्ठित सरकारी हिन्दी परामर्श संगठनों की सदस्यता भी दी गयी ।
मनोहर श्याम जोशी का निधन | Manohar Shyam Joshi Death
प्रसिद्ध साहित्यकार, उपन्यासकार, व्यंग्यकार, पत्रकार, दूरदर्शन धारावाहिक लेखक, जनवादी-विचारक, फ़िल्म पट-कथा लेखक, उच्च कोटि के संपादक, कुशल प्रवक्ता मनोहर श्याम जोशी का निधन 30 मार्च 2006 नई दिल्ली में हो गया।