Mahadevi Verma Poetry: छायावादी आंदोलन की कवयित्री महादेवी वर्मा की मशहूर कवितायेँ जो आज भी हैं जिन्दा
महादेवी वर्मा का नाम हिंदी केसर्वाधिक प्रतिभावान कवित्रियों में से एक हैं. इन्हें हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में एक मानी जाती हैं. इनकी प्रमुख रचनाएँ नीरजा, नीहार, रश्मि, सांध्यगीत, दीपशिखा, अग्निरेखा जैसी बहुतसारी प्रमुख रचनाएँ हैं. इस पोस्ट Mahadevi Verma की कुछ बेहतरीन कवितायें दी गयी हैं....
कौन?
ढुलकते आँसू सा सुकुमार
बिखरते सपनों सा अज्ञात,
चुरा कर अरुणा का सिन्दूर
मुस्कराया जब मेरा प्रात,छिपा कर लाली में चुपचाप
सुनहला प्याला लाया कौन?हँस उठे छूकर टूटे तार
प्राण में मँड़राया उन्माद,
व्यथा मीठी ले प्यारी प्यास
सो गया बेसुध अन्तर्नाद,घूँट में थी साकी की साध
सुना फिर फिर जाता है कौन?
जाग तुझको दूर हैं जाना
चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!
जाग तुझको दूर जाना!अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प हो ले!
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;
आज पी आलोक को ड़ोले तिमिर की घोर छाया
जाग या विद्युत शिखाओं में निठुर तूफान बोले!
पर तुझे है नाश पथ पर चिन्ह अपने छोड़ आना!
जाग तुझको दूर जाना!बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?
पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल दे दल ओस गीले?
तू न अपनी छाँह को अपने लिये कारा बनाना!
जाग तुझको दूर जाना!वज्र का उर एक छोटे अश्रु कण में धो गलाया,
दे किसे जीवन-सुधा दो घँट मदिरा माँग लाया!
सो गई आँधी मलय की बात का उपधान ले क्या?
विश्व का अभिशाप क्या अब नींद बनकर पास आया?
अमरता सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना?
जाग तुझको दूर जाना!कह न ठंढी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;
हार भी तेरी बनेगी माननी जय की पताका,
राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी!
है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियां बिछाना!
जाग तुझको दूर जाना!
देशगीत : मस्तक देकर आज खरीदेंगे हम ज्वाला
मस्तक देकर आज खरीदेंगे हम ज्वाला!
जो ज्वाला नभ में बिजली है,
जिससे रवि-शशि ज्योति जली है,
तारों में बन जाती है,
शीतलतादायक उजियाला!
मस्तक देकर आज खरीदेंगे हम ज्वाला!फूलों में जिसकी लाली है,
धरती में जो हरियाली है,
जिससे तप-तप कर सागर-जल
बनता श्याम घटाओं वाला!
मस्तक देकर आज खरीदेंगे हम ज्वाला!कृष्ण जिसे वंशी में गाते,
राम धनुष-टंकार बनाते,
जिसे बुद्ध ने आँखों में भर
बाँटी थी अमृत की हाला!
मस्तक देकर आज खरीदेंगे हम ज्वाला!जब ज्वाला से प्राण तपेंगे,
तभी मुक्ति के स्वप्न ढलेंगे,
उसको छू कर मृत साँसें भी
होंगी चिनगारी की माला!
मस्तक देकर आज खरीदेंगे हम ज्वाला!