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Ibne Insha Shayari: मशहूर पाकिस्तानी शायर इब्न-ए-इंशा की लिखी कुछ सबसे मशहूर शायरी 

 

साहित्य न्यूज़ डेस्क, अपनी दिल छू लेने वाली ग़ज़लों के लिए पहचाने वाले मशहूर पाकिस्तानी शायर इब्न-ए-इंशा को उनकी पीढ़ी के सर्वश्रेष्ठ कवियों, लेखकों और शायरों में शुमार किया जाता है. इब्ने की सबसे प्रसिद्ध ग़ज़ल "इंशा जी उठो अब कूच करो..." एक प्रभावशाली क्लासिक ग़ज़ल है, जिसका आज तक कोई तोड़ नहीं मिला. हास्य की भावना को प्रदर्शित करने के लिए इब्ने ने कई यात्रा वृतांत भी लिखे. उनके काम को उर्दू लेखकों और आलोचकों दोनों के द्वारा सराहा गया. गौरतलब है, कि उन्होंने चीनी कविताओं के एक संग्रह का उर्दू में अनुवाद भी किया. प्रस्तुत हैं इब्न-ए-इंशा के चुनिंदा शेर, जिन्हें पढ़ते ही दिल से सिर्फ 'वाह!' निकले...

अपनी ज़बाँ से कुछ न कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग
तुम से तो इतना हो सकता है पूछो हाल बेचारों का

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या
वहशी को सुकूँ से क्या मतलब जोगी का नगर में ठिकाना क्या

एक से एक जुनूँ का मारा इस बस्ती में रहता है
एक हमीं हुशियार थे यारो एक हमीं बद-नाम हुए

कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहो
ऐ लोगो ख़ामोश रहो हाँ ऐ लोगो ख़ामोश रहो

कब लौटा है बहता पानी बिछड़ा साजन रूठा दोस्त
हम ने उस को अपना जाना जब तक हाथ में दामाँ था

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो
इस बात से हम को क्या मतलब ये कैसे हो ये क्यूँकर ह

यूँ ही तो नहीं दश्त में पहुँचे यूँ ही तो नहीं जोग लिया
बस्ती बस्ती काँटे देखे जंगल जंगल फूल मियाँ

हम किसी दर पे न ठिटके न कहीं दस्तक दी
सैकड़ों दर थे मिरी जाँ तिरे दर से पहले

हुस्न सब को ख़ुदा नहीं देता
हर किसी की नज़र नहीं होती