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Harivansh Rai Bachchan Poetry: हरिवंशराय बच्चन के कविता संग्रह की वो कविताएँ जो आज भी हैं जिंदा

 

छायावादी कवि डॉ. हरिवंश राय बच्चन ने अपनी दिलकश कविताओं से लोगो का मन आकर्षित और प्रात्साहित करने की पुरजोर कोशिश की है. उनकी कृतियों में हमेशा एक आशा का दीपक जलते हुए नज़र आता है. हिंदी काव्य के समुद्र में से हरिवंश राय बच्चन जी की कुछ चुनिन्दा और ख़ास कविताएं हम आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे है. ये सभी कविताएँ अलग-अलग विषयों पर आधारित है, पर इन्हें पढ़कर आपका मन प्रफुल्लित जरुर हो जाएगा. तो चलिए पढ़ते है हरिवंश राय बच्चन जी की कविताएँ..

हरिवंश राय प्रेम गीत

जमीन है न बोलती, न आसमान बोलता..
जहान देखकर मुझे, नहीं जबान खोलता..
नहीं जगह कहीं जहां, न अजनबी गिना गया..
कहां-कहां न फिर चुका, दिमाग-दिल टटोलता..
कहां मनुष्य है कि जो, उमीद छोड़कर जिया..
इसीलिए खड़ा रहा, कि तुम मुझे पुकार लो..

इसीलिए खड़ा रहा, कि तुम मुझे पुकार लो..!

तिमिर-समुद्र कर सकी, न पार नेत्र की तरी..
विनष्ट स्वप्न से लदी, विषाद याद से भरी..
न कूल भूमि का मिला, न कोर भोर की मिली..
न कट सकी, न घट सकी, विरह-घिरी विभावरी..
कहां मनुष्य है जिसे, कमी खली न प्यार की..
इसीलिए खड़ा रहा कि, तुम मुझे दुलार लो..!

इसीलिए खड़ा रहा कि, तुम मुझे पुकार लो..!

उजाड़ से लगा चुका, उमीद मैं बहार की..
निदाघ से उमीद की, बसंत के बयार की..
मरुस्थली मरीचिका, सुधामयी मुझे लगी..
अंगार से लगा चुका, उमीद मैं तुषार की..
कहां मनुष्य है जिसे, न भूल शूल-सी गड़ी..
इसीलिए खड़ा रहा कि, भूल तुम सुधार लो..!

इसीलिए खड़ा रहा कि, तुम मुझे पुकार लो..!
पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो..!

-हरिवंशराय बच्चन

अग्निपथ

वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु स्वेद रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

-हरिवंशराय बच्चन

माँ पर कविता : हरिवंश राय बच्चन

आज मेरा फिर से मुस्कुराने का मन किया।
माँ की ऊँगली पकड़कर घूमने जाने का मन किया॥

उंगलियाँ पकड़कर माँ ने मेरी मुझे चलना सिखाया है।
खुद गीले में सोकर माँ ने मुझे सूखे बिस्तर पे सुलाया है॥

माँ की गोद में सोने को फिर से जी चाहता है।
हाथो से माँ के खाना खाने का जी चाहता है॥

लगाकर सीने से माँ ने मेरी मुझको दूध पिलाया है।
रोने और चिल्लाने पर बड़े प्यार से चुप कराया है॥

मेरी तकलीफ में मुझ से ज्यादा मेरी माँ ही रोयी है।
खिला-पिला के मुझको माँ मेरी, कभी भूखे पेट भी सोयी है॥

कभी खिलौनों से खिलाया है, कभी आँचल में छुपाया है।
गलतियाँ करने पर भी माँ ने मुझे हमेशा प्यार से समझाया है॥

माँ के चरणो में मुझको जन्नत नजर आती है।
लेकिन माँ मेरी मुझको हमेशा अपने सीने से लगाती है॥

-हरिवंशराय बच्चन