Harivansh Rai Bachchan Poetry: हरिवंशराय बच्चन के कविता संग्रह की सबसे चुनिंदा कविताएं
हरिवंश राय बच्चन जी हिंदी साहित्य के वो जगमगाते सितारे हैं जिनकी चमक कभी कम नहीं हो सकती। हरिवंश राय बच्चन जी भारत के प्रमुख कवियों में से एक थे। उनकी कई कविताएं और रचनाएँ तो आज भी साहित्य प्रेमियों के दिल में घर कर जाती हैं, जिसमें मधुशाला कविता (madhushala poem) और अग्निपथ कविता (agneepath poem/agnipath poem) नामक रचना सबसे प्रसिद्ध रही है। तो आईये आज आपका परिचय कराएं हरिवंशराय बच्चन के कविता संग्रह की सबसे चुनिंदा कविताओं से.......
निशा निमन्त्रण
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!-हरिवंशराय बच्चन
आकुल अंतर
कैसे आंसू नयन संभाले।मेरी हर आशा पर पानी,
रोना दुर्बलता, नादानी,
उमड़े दिल के आगे पलकें, कैसे बांध बना लें।
कैसे आंसू नयन संभालें।समझा था जिसने मुझको सब,
समझाने को वह न रही अब,
समझाते मुझको हैं मुझको कुछ न समझने वाले।
कैसे आंसू नयन संभाले।मन में था जीवन में आते
वे, जो दुर्बलता दुलराते,
मिले मुझे दुर्बलताओं से लाभ उठाने वाले।
कैसे आंसू नयन संभाले।-हरिवंशराय बच्चन
मिलन यामिनी
चाँदनी फैली गगन में, चाह मन में।दिवस में सबके लिए बस एक जग है
रात में हर एक की दुनिया अलग है,
कल्पना करने लगी अब राह मन में;
चाँदनी फैली गगन में, चाह मन में।भूमि के उर तप्त करता चंद्र शीतल
व्योम की छाती जुड़ाती रश्मि कोमल,
किंतु भरतीं भवनाएँ दाह मन में;
चाँदनी फैली गगन में, चाह मन में।कुछ अँधेरा, कुछ उजाला, क्या समा है!
कुछ करो, इस चाँदनी में सब क्षमा है;
किंतु बैठा मैं सँजोए आह मन में;
चाँदनी फैली गगन में, चाह मन में।चाँद निखरा, चंद्रिका निखरी हुई है,
भूमि से आकाश तक बिखरी हुई है,
काश मैं भी यों बिखर सकता भूवन में;
चाँदनी फैली गगन में, चाह मन में।-हरिवंशराय बच्चन
प्रणय पत्रिका
एक यही अरमान गीत बन, प्रिय, तुमको अर्पित हो जाऊँजड़ जग के उपहार सभी हैं
धार आँसुओं की बिन वाणी
शब्द नहीं कह पाते तुमसे
मेरे मन की मर्म कहानी
उर की आग, राग ही केवल
कंठस्थल में लेकर चलता
एक यही अरमान गीत बन, प्रिय, तुमको अर्पित हो जाऊँजान-समझ मैं तुमको लूँगा
यह मेरा अभिमान कभी था
अब अनुभव यह बतलाता है
मैं कितना नादान कभी था
योग्य कभी स्वर मेरा होगा
विवश उसे तुम दुहराओगे?
बहुत यही है अगर तुम्हारे अधरों से परिचित हो जाऊँ
एक यही अरमान गीत बन, प्रिय, तुमको अर्पित हो जाऊँ-हरिवंशराय बच्चन