Happy Birthday Gulzar: गुलजार साहब के जन्मदिन पर पढ़िए इनकी लिखी वो बेहतरीन शायरी जो सिखाती है प्यार और रिश्तों की कद्र
वो बच्चा क्या. बूढ़ा क्या. वो आशिक क्या, जो गुलज़ार साहब की लेखनी का दीवाना न हो. उनके हर शब्द में जादू है. ये जादूगरी ही तो है… कभी मोहब्बत से. कभी रुसवाइयों से. कभी कहानियों से. नदी की धाराओं से. उसके हाथ में पहनी चूड़ी सा बजते…खन…खन…खन. हां, ये शब्द नहीं जादू हैं, जो मलहम लगाते हैं कभी. और कभी कच्ची मिट्टी सा चाक पर चढ़ जाते हैं. तपते हैं. पकते हैं और फिर जिंदगी के महकमे से. कुछ बुदबुदाते. गुनगुनाते. निकल पड़ते हैं. गांव की पगडंडियों से होते हुए. राशन की कतारों तक. सूरज की किरणों के झुमके से सुंदर. रेशम से मुलायम. मिश्री सा पिघलते. आहिस्ता और आहिस्ता ख्वाब टटोलते. गुलजार के शब्द. लफ्जों के जादूगर गुलजार आज अपना 87वां जन्मदिन बना रहे हैं. इस मौके पर पढ़िए उनकी कुछ सबसे मशहूर शायरियां...
आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
ज़िंदगी एक नज़्म लगती है
जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ
उस ने सदियों की जुदाई दी है
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
आदतन तुम ने कर दिए वादे
आदतन हम ने ए’तिबार किया
एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है
मैं ने हर करवट सोने की कोशिश की
आप ने औरों से कहा सब कुछ
हम से भी कुछ कभी कहीं कहते
जब भी ये दिल उदास होता है
जाने कौन आस-पास होता है
सहमा सहमा डरा सा रहता है
जाने क्यूँ जी भरा सा रहता है
राख को भी कुरेद कर देखो
अभी जलता हो कोई पल शायद
रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले
क़रार दे के तिरे दर से बे-क़रार चले
वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था
ज़िंदगी पर भी कोई ज़ोर नहीं
दिल ने हर चीज़ पराई दी है
कोई पूछ रहा है मुझसे अब मेरी ज़िन्दगी की कीमत,
मुझे याद आ रहा है हल्का सा मुस्कुराना तुम्हारा।
“करवट तमाम रात भर बदलता में रह गया,
बिस्तर में उसकी यादों के काटें थे बेशुमार”
ज्यादा कुछ नहीं बदलता उम्र के साथ,
बस बचपन की जिद्द समझौतों में बदल जाती हैं।