Gulzar Shayari: गुलज़ार साहब की कुछ सबसे चुनिंदा शायरियाँ जो बदल देगी आपका दिन
गुलज़ार उर्फ़ सम्पूर्ण सिंह कालरा का जन्म दीना, झेलम जिले, ब्रिटिश भारत में 18 अगस्त 1934 को एक खत्री-सिख परिवार में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। इनके माता-पिता का नाम सुजन कौर और माखन सिंह कालरा है। उन्होंने स्कूल में अनुवाद में टैगोर की रचनाओं को पढ़ा था, जिसे उन्होंने अपने जीवन के कई मोड़ में से एक बताया। विभाजन (बंटवारे) के परिणामस्वरूप उनका परिवार बिखर गया था, और उन्हें अपने परिवार का समर्थन करने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी और फिर मुंबई आ बसे। उन्होंने मुंबई में कई तरह की पार्ट-टाइम नौकरियां की थी। एक लेखक के रूप में शुरुआत करने के लिए उनके पिता ने हमेशा उनका पीछा किया था। उन्होंने कलम का नाम गुलज़ार दीनवी अपनाया, जिसे बाद में उन्होंने बदलकर केवल गुलज़ार कर दिया। गुलज़ार साहब को भला कौन नहीं जानता। गुलज़ार साहब ने अपने काम से पूरी दुनिया में अपनी अलग छाप छोड़ी है। गुलज़ार ने जिस गाने को छूआ उसको उन्होंने हमेशा के अमर कर दिया। गुलजार हिंदी शायरी के बहुमूल्य हीरा हैं। Hindi Shayari by Gulzar के इस ब्लॉग में आप जानेंगे इनकी सदाबहार शायरियों के बारे में। यह लोकप्रिय Hindi Shayari by Gulzar आपका मन मोह लेंगी। इस ब्लॉग में विस्तार से जानते हैं इनकी शायरियों के बारे में
पढ़ना तुम्हें नहीं आता किताब क्या करे
आँखें तुम भूल गए हिजाब क्या करे-गुलज़ार
कुछ दिखाई नहीं देता अँधेरे के सिवा
सब उजड़ गया एक बसेरे के सिवा
जला दी मैंने तमाम घर की चीज़ें
एक नाम लिखा था “माँ” उस कागज़ के सिवा-गुलज़ार
गुज़रा वक़्त याद करके रोना नहीं तुम
गुज़रा इसलिए के वक़्त अच्छा आने वाला है-गुलज़ार
कोई नाम ना ले मेरा उसके साथ
ज़मीन आसमान को अलग ही रहने दो-गुलज़ार
कभी जुगनू कभी सपनो सा लगता है
वो एक ना जाने कितनो सा लगता है
अंधों को भी उसमे एक रौशनी दिखती है
गैरों को भी वो अपनों सा लगता है-गुलज़ार
सुबह ना आयी कई बार नींद से जागे
थी एक रात की ये ज़िन्दगी गुज़ार चले
उठाए फिरते थे एहसान दिल का सीने पर
ले तेरे क़दमों में ये क़र्ज़ भी उतार चले-गुलज़ार
एक ख्वाब ने आँखें खोली है
क्या मोड़ आया है कहानी में
वो भीग रही है बारिश में
और आग लगी है पानी में-गुलज़ार
पहले तो बेगानी नगरी में
हम को किसी ने पुछा ना था
सारा शहर जब मान गया तो
लगता है क्यों कोई रूठा ना था-गुलज़ार
कब तक होश संभाले कोई
होश उड़े तो उड़ जाने दो
दिल कब सीधी राह चला है
राह मुड़े तो मुड़ जाने दो-गुलज़ार
हीर हीर ना आखो अड़ियो
मैं ते साहिबा होई
घोड़ी लेके आवे ले जाए
मैनु ले जाए मिर्ज़ा कोई
ले जाए मिर्ज़ा कोई-गुलज़ार
ये मर्ज़ मोहब्बत का बड़ा मीठा है
इस मर्ज़ का हम इलाज़ क्यों करें
तुम हमारे हो काफी है ये
फिर इश्क़ की हम तलाश क्यों करें-गुलज़ार
खुदा कुछ गुनाहों की माफ़ी नहीं देता
हमने आज खुद को गुनहगार कर दिया
पुरानी गलतियां भूलने की कोशिश थी
नए इश्क़ ने और बर्बाद कर दिया-गुलज़ार
कंगन के निशान गए नहीं अभी
हाथों से जिन्हें छुपा रही हो
मेरे बिना तो एक पल गवारा ना था
आज अकेले कहाँ जा रही हो-गुलज़ार
हलके हलके पर्दो में
मुस्कुराना अच्छा लगता है
रौशनी जो देता हो तो
दिल जलाना अच्छा लगता है-गुलज़ार
शाम है तो शाम सही
रात ना होने देना
आस की सांस चलती रहे
मात ना होने देना
जिन आँखों में नींद नहीं है
उन आँखों में ख्वाब था कोई
ख्वाब वो ख्वाब तुम खोने ना देना-गुलज़ार
मरने से मुझे कोई डर तो नहीं
हाँ तेरे बिन मुश्किल होगी
जीना भी पड़े तो भी मुझको
हाँ तेरे बिन मुश्किल होगी-गुलज़ार
झुकी हुई निगाह में कहीं मेरा ख्याल था
दबी दबी हंसी में इक हसीन सा गुलाल था
मैं सोचता था मेरा नाम गुनगुना रही है वो
ना जाने क्यों लगा मुझे के मुस्कुरा रही है वो-गुलज़ार
दो सोंधे सोंधे से जिस्म जिस वक़्त
इक मुट्ठी में सो रहे थे
लबों की मध्यम तवील सरगोशियों में
सांसें उलझ गयी थी
ऊंधे हुए साहिलों पे जैसी कही दूर
ठंडा सावन बरस रहा था
बस एक रूह जागती थी
बता तो उस वक़्त मैं कहाँ था
बता तो उस वक़्त तू कहाँ थी-गुलज़ार
मंज़िल भी यहाँ सबको नहीं मिलती
सफर हर किसी के अच्छे नहीं होते
रास्तों में अक्सर छोड़ जाते हैं लोग
मिलने वाले सभी अच्छे नहीं होते-गुलज़ार
कहाँ छुपा दी है रात तूने
कहाँ छुपाए हैं टूटे अपने
गुलाबी हाथों के ठन्डे फाये
कहाँ है तेरे लबों के चेहरे
कहाँ तू आज तू कहाँ है
ये मेरे बिस्तर पे कैसा सन्नाटा सो रहा है-गुलज़ार