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Faiz Ahmad Faiz Biography in Hindi: क्रांति से कलियों तक की नब्ज रखने वाले शायर फैज अहमद फैज का जीवन परिचय 

 

फैज अहमद फैज उर्दू के सबसे अधिक लोकप्रिय शायरों में एक थे. उनकी शायरी ने उर्दू गजलों और नज्मों को एक नया अंदाज और एक नया आयाम दिया. फैज भारतीय उप महाद्वीप के सबसे महबूब शायरों में एक थे. फैज शायर के साथ-साथ पत्रकार, गीतकार और एक्टिविस्ट भी थे. उन्होंने उर्दू में एक ऐसी विधा को जन्म दिया जिसमें लहजा तो गजल का था लेकिन वो उनके दौर के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य से सरोकार भी रखती थी. फैज़ अहमद फैज एक पाकिस्तानी शायर थे। फ़ैज अहमद फ़ैज ने आधुनिक उर्दू शायरी को एक नई ऊंचाई दी। साहिर, क़ैफ़ी, फ़िराक़ आदि उनके समय के ही शायर थे। फ़ैज़ भारतीय उपमहाद्वीप के ऐसे दूसरे शायर थे, जिनका नाम नोबेल पुरस्कार के लिए नामित हुआ था। यह अलग बात है कि नोबेल नहीं मिल पाया, लेकिन उन्हें 1962 में लेनिन शांति पुरस्कार दिया गया, आईये जाने इनके जीवन के बारे में करीब से...

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

पूरा नाम फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
अन्य नाम फ़ैज़
जन्म 13 फ़रवरी, 1911
जन्म भूमि सियालकोट
मृत्यु 20 नवम्बर, 1984
मृत्यु स्थान लाहौर
कर्म भूमि पाकिस्तान
कर्म-क्षेत्र उर्दू शायर, वैचारिक लेखन
मुख्य रचनाएँ नक्श-ए-फरियादी, दस्त-ए-सबा, जिंदांनामा, दस्त-ए-तहे-संग, मेरे दिल मेरे मुसाफिर, सर-ए-वादी-ए-सिना आदि।
भाषा उर्दू, अंग्रेज़ी, अरबी, हिंदी, रूसी
विद्यालय लाहौर विश्वविद्यालय
शिक्षा एम. ए. (अंग्रेज़ी एवं अरबी)
पुरस्कार-उपाधि शांति पुरस्कार (पाकिस्तानी मानव अधिकार समाज), निगार पुरस्कार, निशान-ए-इम्तियाज, लेनिन शांति पुरस्कार (सोवियत संघ, 1963), नोबेल पुरस्कार के लिए नामित (1984)
नागरिकता पाकिस्तान
अनुवाद दागिस्तान के कवि रसूल गमज़ातोव की कुछ कविताएँ, बलूच कवि मीर खान नासिर की कविता ‘दीवा’
संपादन पाकिस्तान टाइम्स तथा इमरोज (दैनिक), लैला-ओ-निहार (साप्ताहिक)। निर्वासन के दिनों में मॉस्को, लंदन और बेरुत से ‘लोटस’ का संपादन।
अन्य जानकारी फ़ैज अहमद फ़ैज का शुमार एशिया के महानतम कवियों में किया जाता है। फ़ैज अहमद फ़ैज की शायरी का अनुवाद हिंदी, रूसी, अंग्रेज़ी आदि कई भाषाओं में हो चुका है।

 

फैज की संक्षिप्त जीवनी | Short Biography of Faiz 

फैज अहमद फैज ​का जन्म 3 फरवरी, 1911 को अविभाजित भारत के सियालकोट के नजदीक कस्बा कादिर खां में हुआ. उनके पिता का नाम चौधरी सुलतान मुहम्मद खां और माता का नाम सुल्तान फातिमा था. पाकिस्तानी हुकूमत ने 1951 और 1958 में उन्हें जेल भेजा और उनकी आवाज दबाने की भरपूर कोशिश की. 1965 और 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उन्होंने पाकिस्तानी फौज की हौसला अफजाई के लिए वतन परस्ती की नज्में लिखने से इनकार कर दिया, जिससे हुक्मरान उनसे नाराज होते चले गए. जिया उल हक ने फैज की शायरी को सार्वजनिक मंचों पर पढ़े जाने पर रोक लगा दी. इसके बावजूद, 1985 में फैज की पहली बरसी पर लाहौर में हजारों लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए इकट्ठा हुए. तानाशाह जिया उल हक के आदेश को धता बताते हुए गायिका इकबाल बानो ने इस विशाल जनसमूह के सामने फैज की नज्मों और गजलों की प्रस्तुति दी. फैज 1963 में लेनिन शांति पुरस्कार हासिल करने वाले पहले एशियाई कवि बने. उन्हें नोबल पुरस्कार के लिए भी नामांकित किया गया था.

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का जन्म | Faiz Ahmed Faiz Birth

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का जन्म 13 फ़रवरी 1911 को अविभाजित हिदुस्‍तान के शहर सियालकोट में जो अब पाकिस्तान में है, एक मध्‍यवर्गीय परिवार में हुआ था। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ पाकिस्तान के मशहूर शायर थे, जिन्होंने जिसने आधुनिक उर्दू शायरी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। 

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का परिवार | Faiz Ahmed Faiz Family 

इनके पिता का नाम चौधरी सुलतान मुहम्मद खां और माता का नाम सुल्तान फातिमा था। फैज़ अहमद फैज़ के पिता एक बैरिस्टर थे और उनका परिवार एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार था। 

फैज अहमद फैज का शुरुआती जीवन | Early Life of Faiz Ahmed Faiz 

फैज के पिता सुलतान मुहम्मद खां एक भूमिहीन किसान के बेटे थे. उन्होंने खुद मेहनत कर उर्दू, फारसी और अंग्रेजी भाषाएं सीखीं. वे अपनी मेहनत, अक्लमंदी और किस्मत के बल पर अफगानिस्तान के शाह के निजी दुभाषिए और मंत्री के ओहदे तक पहुंचे. सुलतान मुहम्मद ने इंग्लैंड जाकर कैम्ब्रिज से वकालत की पढ़ाई भी की. आगे चलकर सुलतान मुहम्मद वापस सियालकोट आ गए और अपनी वकालत जमाई. सियालकोट वापस लौटने पर उन्होंने सुल्तान फातिमा से निकाह किया जो उनकी सबसे छोटी पत्नी थीं. दोनों के एक पुत्र हुआ, जिसका नाम उन्होंने रखा फैज अहमद. उनके पिता की उर्दू अदब में गहरी रुचि थी और मुहम्मद इकबाल सहित कई नामचीन साहित्यकार उनकी मित्र मंडली में शामिल थे. छोटी उम्र में ही फैज ने कुरान शरीफ कंठस्थ करना शुरू किया. सियालकोट में अंजुमन-ए-इस्लामिया के सालाना प्रोग्राम में 4 साल के फैज ने जब तिलावते-कुरान पाक पेश की तो वहां मौजूद उस जमाने के मशहूर शायर अल्लामा इकबाल भी उनकी तारीफ किए बिना रह न सके.

फैज की शिक्षा | Education of Faiz Ahmed Faiz 

इसके बाद फैज ने मीर सियालकोटी के मकतब में दाखिला लिया, वहां उन्होंने अरबी और फारसी की शिक्षा ग्रहण की. 1921 में उनका दाखिला स्कॉट मिशन हाई स्कूल में कराया गया, जहां उन्होंने सैय्यद मीर हसन से तालीम हासिल की. मीर साहब का फैज के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा. 1927 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की, फिर सियालकोट के मरे कॉलेज में प्रवेश लिया और वहां से 1929 में फर्स्ट डिवीजन में इंटरमीडिएट पास किया. फैज ने 1931 में गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर से बीए और फिर अरबी में बीए ऑनर्स किया. उन्होंने 1933 में गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर से अंग्रेजी में एमए किया और 1934 में ऑरिएंटल कॉलेज लाहौर से अरबी में एमए में फर्स्ट डिवीजन हासिल की. उनके विद्यार्थी जीवन की एक विशेष घटना यहा है कि जब वह गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर में पढ़ते थे तो प्रोफेसर लेंग साहब उन्हें अंग्रेजी पढ़ाया करते थे, अंग्रेजी में फैज की योग्यता से वह इतने प्रसन्न थे कि उन्होंने बीए प्रथम वर्ष की परीक्षा में फैज को 165 अंक दिए. किसी विद्यार्थी ने आपत्ति जताई की आपने फैज को 150 में से 165 अंक कैसे दे दिए तो प्रोफेसर का उत्तर था- इसलिए की मैं इससे ज्यादा अंक नहीं दे सकता था.

फैज का निजी जीवन | Faiz Ahmed Faiz Personal Life 

अमृतसर में रहने के दौरान 1938 में फैज की मुलाकात एक अंग्रेजी महिला मिस एलिस जॉर्ज से हुई. ये मुलाकात कॉलेज में उनके सहकर्मी मुहम्मद दिन तासीर के घर पर हुई. तासीर ने इंग्लैंड में रहकर प्रगतिशील लेखक संघ का मैनिफेस्टो तैयार करवाया था. इंग्लैंड में ही तासीर ने एलिस की बड़ी बहन क्रिस्टोबेल से शादी की थी. एलिस भारत में अपनी बहन से मिलने आई थीं. इस बीच, 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया और एलिस इंग्लैंड नहीं लौट पाईं. एलिस खुद भी प्रगतिशील विचारों की थीं और 16 वर्ष की आयु से ही ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य थीं. उन्होंने कुछ समय के लिए इंग्लैंड में ही भारतीय स्वतंत्रता सेनानी कृष्णा मेनन के सचिव के रूप में भी काम किया था. 

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की शादी | Faiz Ahmed Faiz Marriage 

फैज और एलिस का निकाह अक्टूबर 1941 में मुहम्मद दिन तासीर के श्रीनगर स्थित घर पर हुआ. उनका निकाह नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता शेख अब्दुल्ला ने पढ़वाया था. फैज की दो बेटियां सलीमा हाशमी और मोनीजा हाशमी हुईं.  फैज और एलिस के आदर्श एक थे. दोनों के दिल में ही मानवता के प्रति प्रेम था और न्याय के लिए लड़ने का जज्बा था, इसलिए उनमें प्यार पनपते देर नहीं लगी. फैज की मां थोड़ी नाखुश जरूर थीं, लेकिन फैज की खुशी देखकर उन्होंने भी यह रिश्ता स्वीकार कर लिया. हां, उन्होंने अपनी होने वाली बहू को मुस्लिम नाम दिया –कुलसुम. 

फ़ैज़ की जुबानी में उनका बचपन | Faiz Ahmed Faiz Childhood 

मेरा जन्म उन्नीसवीं सदी के एक ऐसे फक्कड़ व्यक्ति के घर में हुआ था जिसकी ज़िंदगी मुझसे कहीं ज़्यादा रंगीन अंदाज़ में गुज़री। मेरे पिता सियालकोट के एक छोटे से गाँव में एक भूमिहीन किसान के घर पैदा हुए, यह बात मेरे पिता ने बताई थी और इसकी तस्दीक गाँव के दूसरे लोगों द्वारा भी हुई थी। मेरे दादा के पास चूँकि कोई ज़मीन नहीं थी इसलिए मेरे पिता गाँव के उन किसानों के पशुओं को चराने का काम करते थे जिनकी अपनी ज़मीन थी। मेरे पिता कहा करते थे कि पशुओं को चराने गाँव के बाहर ले जाते थे जहाँ एक स्कूल था। वह पशुओं को चरने के लिए छोड़ देते और स्कूल में जाकर शिक्षा प्राप्त करते, इस तरह उन्होंने प्राथमिक स्तर की शिक्षा पूरी की। चूँकि गांव में इससे आगे की शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी, वह गाँव से भाग कर लाहौर पहुँच गए। उन्होंने लाहौर की एक मस्जिद में शरण ली। मेरे पिता कहते थे कि वह शाम को रेलवे स्टेशन चले जाया करते थे और वहाँ कुली के रूप में काम करते थे। उस ज़माने में ग़रीब और अक्षम छात्र मस्जिदों में रहते थे और मस्जिद के इमाम से या आस-पास के मदरसों में निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करते थे। इलाक़े के लोग उन छात्रों को भोजन उपलब्ध कराते थे।

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का कैरियर | Faiz Ahmad Faiz Career

1935 में वह अमृतसर के मोहम्मडन एंग्लो ऑरिएंटल क़ॉलेज में अंग्रेजी विषय के प्राध्यापक नियुक्त हुए। उसके बाद मार्क्सवादी विचारधाराओं से बहुत प्रभावित हुए। “प्रगतिवादी लेखक संघ” से 1937 में जुड़े और उसके पंजाब शाखा की स्थापना सज्जाद ज़हीर के साथ मिलकर की जो उस समय के मार्क्सवादी नेता थे। 1937 से 1949 तक उर्दू साहित्यिक मासिक अदब-ए-लतीफ़ का संपादन किया। वे कुछ समय फ़ौज में भी नौकरी की। बाद में फौज की नौकरी से इस्तीफा देकर पाकिस्तान टाईम्स के संपादक बन गए। 1947 में देश का विभाजन हुआ तो उन्होंने सीमा के दोनों ओर हुए दंगों और खून-खराबे के बारे में जो सम्पादकीय लिखे, वे आज भी पढ़ने के लायक हैं। फैज ने कम समय में ही पत्रकारिता में अच्छा नाम कमाया. उन्होंने जो निर्भीक होकर पत्रकारिता की, लेकिन वह पाकिस्तानी हुकूमत को नागवार गुजरने लगी।

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का कार्यक्षेत्र | Faiz Ahmed Faiz Works

1942 से लेकर 1947 तक वे ब्रिटिश-सेना मे कर्नल रहे। फिर फौ़ज़ से अलग होकर ’पाकिस्‍तान टाइम्‍स’ और ’इमरोज़’ अखबारों के एडीटर रहे। लियाकत अली खाँ की सरकार के तख्तापलट की साजिश रचने के जुर्म में वे 1951-1955 तक कैद में रहे। इसी दौरान लिखी गई कविताएँ बाद में बहुत लोकप्रिय हुईं, जो "दस्ते सबा" तथा "जिंदानामा" में प्रकाशित हुईं। बाद में वे 1962 तक लाहौर में पाकिस्तान आर्टस काउनसिल मे रहे। 1963 में उनको सोवियत-संघ (रूस) ने लेनिन शांति पुरस्कार प्रदान किया। भारत के साथ 1965 के युद्ध के समये वे पाकिस्तान के सूचना मंत्रालय मे काम कर रहे थे।

अमृतसर में लेक्चरर की नौकरी | Faiz Ahmed Faiz Teacher Career 

1934 में शिक्षा समाप्त हुई तो नौकरी शुरू हुई. 1935 में वह अमृतसर के मोहम्मडन एंग्लो ऑरिएंटल क़ॉलेज में अंग्रेजी विषय के प्राध्यापक नियुक्त हुए. अमृतसर में उस कॉलेज के प्रिंसिपल थे महमूद उज्जफर. वे और उनकी पत्नी डॉ. राशिद कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रेरित थे. इनके सम्पर्क में आकर फैज ने ट्रेड यूनियन की गतिविधियों में शामिल होना शुरू किया. अमृतसर में ही सआदत हसन मंटो उनके छात्र बने और आगे जाकर यह रिश्ता दोस्ती में बदल गया. अमृतसर में ही फैज अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़ गए.

फौज में नौकरी | Faiz Ahmed Faiz Army Career

1940 में फैज लाहौर के हेली कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाने लगे. अब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो चुका था. बुद्धिजीवियों के लिए सरकारी नौकरी के नए-नए रास्ते खुल गए थे. फैज अहमद फैज ने शिक्षा-कार्य छोड़ दिया और वह 1942 में कैप्टन के पद पर फौज में भर्ती होकर लाहौर से दिल्ली आ गए. 1943 में कैप्टन से मेजर और 1944 में मेजर से कर्नल बन गए.

फैज का पत्रकारिता में योगदान | Faiz Ahmed Faiz Contribution/Career In Journalism 

1946 में कांग्रेस छोड़कर मुस्लिम लीग में आए प्रगतिशील विचारक मियां इफ्तिखारुद्दीन ने पाकिस्तान टाइम्स अंग्रेजी अखबार शुरू किया. यह अखबार उन दिनों के मशहूर अखबार द हिंदू के जवाब में शुरू किया गया था. फैज को इसका मुख्य संपादक बनने को कहा गया तो वे फौज की नौकरी से इस्तीफा देकर संपादक बन गए. 1947 में देश का विभाजन हुआ तो उन्होंने सीमा के दोनों ओर हुए दंगों और खून-खराबे के बारे में जो सम्पादकीय लिखे, वे आज भी पठनीय हैं. उन्हीं दिनों आई फैज की नज्म सुब्ह-ए-आजादी में उनके विचार साफ जान पड़ते हैं. उन्होंने लिखा- वो इंतजार था जिसका, ये वो सहर तो नहीं. फैज ने कम समय में ही पत्रकारिता में अच्छा नाम कमाया. उन्होंने जो निर्भीक पत्रकारिता की, वह पाकिस्तानी हुकूमत को नागवार गुजरने लगी.

1951 और 1955 में जेल | Faiz Ahmed Faiz In Jail

इस बीच एक ऐसी घटना हुई, जिससे फैज की जिंदगी खतरे में पड़ गई. लेकिन वह बच निकले और इस घटना ने उनकी शोहरत को चार चांद लगा दिए. चौधरी लियाकत खां पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे. विभाजन के कारण भारत और पाकिस्तान दोनों जगह अशांति थी और पाकिस्तान की स्थिति विशेष रूप से अस्थिर थी.

सैय्यद सज्जाद जहीर जो कम्युनिस्ट नेता और प्रगतिशील आंदोलन के अगुवा थे, उन्हें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने सैय्यद मतल्ली, सिब्ते हसन और डॉक्टर अशरफ के साथ पाकिस्तान में इंकलाब करने भेजा था. सज्जाद जहीर के फैज अहमद फैज के साथ घनिष्ठ संबंध थे और फैज चूंकि फौज में अफसर रह चुके थे, इसलिए पाकिस्तान के फौजी अफसरों से उनके गहरे संबंध थे. 

1951 में सज्जाद जहीर और फैज अहमद फैज को दो फौजी अफसरो के साथ रावलपिंडी साजिश केस में गिरफ्तर कर लिया गया. उन पर लियाकत अली खां की हुकूमत का तख्ता पलटने की कोशिश करने का आरोप लगाया गया. इस केस में फैज अहमद फैज करीब 4 साल जेल में बंद रहे. 

लगभग 3 महीने उन्होंने सरगोधा और लायलपुर की जेलों में कैदे-तनहाई में गुजारने पड़े. इस दौरान बाहरी दुनिया से उनका संबंध कट गया था. मित्रों और बीवी-बच्चों से मिलने की इजाजत नहीं थी, यहां तक कि वह अपने कलम का भी इस्तेमाल नहीं कर सकते थे. जेल में रहते हुए उन्होंने जो कुछ लिखा वह दस्ते-सबा और जिंदां नामा में प्रकाशित हुआ. 

1955 में जेल से बाहर आने पर फैज ने फिर पाकिस्तान टाइम्स में काम शुरू किया. 1956 में फैज प्रगतिशील लेखक संघ के एक सम्मेलन में भाग लेने भारत आए. इसके बाद 1958 में फैज अफ्रीकी-एशियाई लेखकों के सम्मेलन में भाग लेने ताशकंद गए. इसी दौरान, जनरल अयूब खां ने तख्तापलट कर दिया. 

फैज को गिरफ्तार से बचने के लिए पाकिस्तान नहीं लौटने की सलाह दी गई. लेकिन वे पाकिस्तान लौटे. वापस आते ही कुछ दिनों में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. फैज छह महीने तक जेल में रहे. यहां उन्होंने एक और मशहूर नज्म लिखी जो पूरी दुनिया में पसंद की गई.- निसार मैं तेरी गलियों पे ऐ वतन कि जहां, चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले.

बेरूत में बिताए साल 

1977 में पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक के नेतृत्व में सैन्य विद्रोह हुआ. फैज फिर से फौजी हुकूमत के निशाने पर आ गए. 1979 में वे बेरूत चले गए जहां वे एफ्रो-एशियाई लेखक संघ के जर्नल लोटस के लिए लिखने लगे. 1982 तक वे बेरूत में रहने के बाद पाकिस्तान लौट आए.

फैज का लेनिन शांति पुरस्कार | Faiz Ahmed Faiz Lenin Peace Prize

जेल से छूटने के बाद फैज कराची आ गए. कराची का मौसम उन्हें रास नहीं आया और वे पत्नी एलिस के साथ वापस लाहौर लौट आए. 1962 में उन्हें लेनिन शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया, यह पुरस्कार सोवियत संघ में नोबल के समकक्ष माना जाता था. पुरस्कार मिलने के बाद उन्हें दुनिया के कई देशों में गोष्ठियों औऱ सम्मेलनों में शामिल होने के लिए बुलाया जाने लगा. इसी दौरान लेबनान से उनका खास रिश्ता बना, जो आगे चलकर कई साल तक उनका घर रहा. 1971 में पाकिस्तान का विभाजन हुआ और बांग्लादेश बना. इसके बाद पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो के नेतृत्व में बनी नागरिक सरकार ने फैज को सांस्कृतिक सलाहकार की जिम्मेदारी दी. 1972 में वे राष्ट्रीय कला परिषद पाकिस्तान के अध्यक्ष बने. फैज के जीवन में आने वाले कुछ साल कमोबेश शांति से गुजरे.

फैज का उर्दू साहित्य में योगदान | Faiz Ahmed Faiz Contribution In Literature

फैज ने 1928 में पहली गजल और 1929 में पहली नज्म कही. फैज का पहला कविता संग्रह जुलाई 1945 में प्रकाशित हुआ, जिसका नाम था नक्शे- फरियादी. इस छोटे से संग्रह की कुछ अच्छी नज्मों ने ही फैज को और लोकप्रिय बना दिया. मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग- एक ऐसी ही नज्म है, जिसका एक-एक शेर आज भी उनके चाहने वालों के दिमाग में छाया हुआ है. चंद रोज और मेरी जान- इस संग्रह की दूसरी मशहूर नज्म है. 

हालांकि, 1952 में प्रकाशित दस्त-ए-सबा के बाद उनकी प्रसिद्धि और फैल गई, इस संग्रह की नज्में और गजलें उन्होंने जेल में बंद रहने के दौरान लिखी थीं. फैज मुशायरों के बजाय अदबी महफिलों के शायर थे. वे धीमी आवाज में नज्म पढ़ते थे. उन्हें मिर्जा गालिब और इकबाल की कतार का शायर कहा जाता है. कम ही लोग यकीन करेंगे कि फैज साहब ने अपनी मशहूर नज्म मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग… प्यार में पड़कर नहीं बल्कि कार्ल मार्क्स का कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो पढ़कर लिखी थी. 

फैज की शायरी रुमानियत, जीवन के यथार्थ, बदलाव की बयार का खूबसूरत मेल थी. इस कारण फैज को जो प्रसिद्धि मिली वह बढ़ती ही चली गई. पांचवें दशक से उनकी मृत्यु यानी नौवें दशक तक वे उर्दू अदब में छाए रहे और आज भी दुनिया भर में फैले अपने प्रशंसकों के दिलों में जिंदा हैं.

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के पुरुस्कार व सम्मान | Faiz Ahmed Faiz Awards

  • 1963 में उन्हें सोवियत रशिया से लेनिन शांति पुरस्कार प्रदान किया गया।
  • 1984 में नोबेल पुरस्कार के लिये भी उनका नामांकन किया गया था।
  • 1990 निशान ए इम्तियाज़ 
  • 2006 Avicenna Prize

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का पाकिस्तान को योगदान | Faiz Ahmed Faiz Contribution To Pakistan 

पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो कि बहुत ही कम चीजों के लिए प्रसिद्ध हैं और बहुत ही कम लोग पाकिस्तान के हुए हैं जिनकी वजह से पाकिस्तान को जाना जाता है क्योंकि मुख्यता पाकिस्तान का नाम आतंकवादियों के साथ ही लिया जाता है। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ पाकिस्तान के एक मशहूर शायर हैं जिन्होंने पाकिस्तान का नाम पूरे विश्व में ऊंचा किया। इन्होंने पाकिस्तान का सांस्कृतिक सहायक बनकर पाकिस्तान की स्थापत्य कला जोकि धीरे-धीरे विलुप्त हो रही थी को बचाया और सांस्कृतिक रूप से पूरे पाकिस्तान को जोड़ने का एक सफल प्रयास भी किया। 

इन्होंने अपनी शायरियों की मदद से अपने विरोधियों का डटकर विरोध किया और यही कारण था कि जिया उल हक जैसे सैन्य शासक का विरोध करने में भी यह पीछे नहीं हटे। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ को 1963 में शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और इसके अलावा उन्हें निशाने इम्तियाज से 1990 में सम्मानित किया गया था। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का नाम अपने शांतिपूर्वक आंदोलन करने के ढंग के कारण लिया जाता है। इनके द्वारा लिखी गई शायरियो और कविताओं को आज संपूर्ण विश्व में पढ़ा जाता है जिससे कि पाकिस्तान का नाम पूरी दुनिया में भी रोशन होता है और वह भी साहित्य की वजह से ना कि आतंकवादियों की वजह से। 

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की कुछ प्रमुख रचनाएं | Faiz Ahmed Faiz Books

हालांकि यह बात कहने में कोई दो शक नहीं है कि फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ द्वारा बहुत सारी कविताएं और शायरियां लिखी गई थी। परंतु हम आपके सामने उनकी कुछ ऐसी शायरियों और कविताओं को पेश कर रहे हैं जो कि काफी विशेष और काफी प्रसिद्ध मानी जाती हैं...

  • अब कहां रसम घर लुटाने की
  • बेदम हुए बीमार दवा क्यों नहीं देते
  • यहां मौसम ए गुल गरजे तर्बखेज बहुत हैं
  • चलो फिर से मुस्कुराए
  • चंद रोज और मेरी जान फकत चंद ही रोज
  • यह फसल उम्मीदों की हमदम
  • खत्म हुई बारिश से संघ
  • तुम जो पल को टहल  जाओ तो यह लमहे पी
  • जिस रोज काजा आएगी
  • कब याद में तेरा साथ नहीं और कब हाथ में तेरा हाथ नहीं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की रचनाएँ | Faiz Ahmed Faiz Writings

  • तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • अब कहाँ रस्म घर लुटाने की -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • रंग है दिल का मेरे -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • तेरी सूरत जो दिलनशीं की है -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • अब वही हर्फ़ ए जुनूँ -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • मुझ से पहली सी मोहब्बत -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • ढाका से वापसी पर -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • खुर्शीदे-महशर की लौ -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • निसार मैं तेरी गलियों के ए वतन -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • तेरे ग़म को जाँ की तलाश -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • रक़ीब से -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • बहार आई -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • नौहा -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • आप की याद आती रही रात भर -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • ख़्वाब बसेरा -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • जब तेरी समन्दर आँखों में -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • चंद रोज़ और मेरी जान फ़क़त -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • ये शहर उदास इतना ज़ियादा -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • चश्मे-मयगूँ ज़रा इधर कर दे -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • गर्मी ए शौक़ -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • मेरे दर्द को जो ज़बाँ मिले -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • ख़ुदा वो वक़्त न लाये -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • गुलों में रंग भरे, बादे-नौबहार -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • मेरी तेरी निगाह में जो लाख -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • मेरे दिल ये तो फ़क़त एक घड़ी है -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • तुम मेरे पास रहो -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • तुम आए हो न शबे-इंतज़ार -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • दिल में अब यूँ तेरे भूले -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • चाँद निकले किसी जानिब -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • दश्ते तन्हाई में ऐ जाने जहाँ -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • कोई आशिक़ किसी महबूब से -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • आइए हाथ उठाएँ हम भी -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • दोनों जहान तेरी मुहब्बत में -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • मेरे दिल मेरे मुसाफ़िर -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • नहीं निगाह में मंज़िल -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • न गँवाओ नावके -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • नसीब आज़माने के दिन -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • तनहाई -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • फिर हरीफ़े-बहार हो बैठे -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • नज़्रे ग़ालिब -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • फिर लौटा है ख़ुरशीदे -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • फ़िक्रे दिलदारी -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • बात बस से निकल चली है -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • इन्तिसाब -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • मुलाक़ात -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • सोचने दो -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • बेदम हुए बीमार दवा क्यों नही -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • बहुत मिला न मिला ज़िन्दगी से -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • मौज़ू ए सुख़न -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • ख़त्म हुई बारिशे संग -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • जिस रोज़ क़ज़ा आएगी -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • क्या करें -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • यह फ़स्ल उमीदों की हमदम -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • शीशों का मसीहा कोई नहीं -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • हम लोग -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • सरे वादिये सीना -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • ईरानी तुलबा के नाम -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • सुबहे आज़ादी -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • एक मन्जर -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • जैसे हम-बज़्म हैं फिर यारे -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • ऐ रोशनियों के शहर -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • यहाँ से शहर को देखो -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • एक शहरे आशोब -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • ज़िन्दां की एक शाम -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • हम जो तारीक राहों में मारे गए -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • फ़िलिस्तीनी बच्चे के लिए लोरी -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • सरोद -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • बेज़ार फ़ज़ा दरपये आज़ार सबा है -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • वासोख़्त -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • मन्ज़र -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • शहर में चाके गिरेबाँ -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • रंग पैराहन का -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • वफ़ाये वादा नहीं -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • हर सम्त परीशाँ तेरी आमद -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • क़र्ज़े निगाहे यार -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • कब याद में तेरा साथ नहीं -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • जमेगी कैसे बिसाते याराँ -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • शफ़क़ की राख में -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • यह मौसमे गुल गर चे तरबख़ेज़ -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • हम मुसाफ़िर युँही मस्रूफ़े सफ़र -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • हज़र करो मेरे तन से -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
  • दिले मन मुसाफ़िरे मन -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़


फैज का निधन | Death of Faiz Ahmed Faiz 

1984 में फैज को नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया. इसके कुछ ही दिन बाद 20 नवम्बर, 1984 को लाहौर में उनका निधन हो गया. अपनी मौत से कुछ दिन पहले फैज ने जो आखिरी शेर कहा, वो यह था- 

अजल के हाथ कोई आ रहा है परवाना न जाने आज की फेहरिस्त में रकम क्या है

Faiz Ahmed Faiz FAQs 

Q. फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ कौन थे?
Ans. फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ एक पाकिस्तानी शायर थे
Q. फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ चर्चाओं में क्यों रहे?
Ans. अपनी विवादित कविता “हम देखेंगे” के कारण यह चर्चाओं में रहे
Q. फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का जन्म कब और कहां हुआ था?
Ans. इनका जन्म 1911 में पाकिस्तान के सियालकोट जिले में हुआ था जो कि उस समय भारत में ही था
Q. फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने किसके विरोध में “हम देखेंगे” कविता लिखी थी?
Ans. इन्होंने पाकिस्तान के सैन्य शासक जिया उल हक के विरोध में “हम देखेंगे” नामक कविता लिखी थी
Q. फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ को कब जेल में रहना पड़ा?
Ans. सन 1951 से लेकर 1955 तक फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ को जेल में रहना पड़ा था