Dushyant Kumar Shayari: दुष्यंत कुमार की क्लासिक और मशहूर रचनाएं, जो जीत लेगी आपका दिल
दुष्यंत कुमार को हिंदी ग़ज़लों का प्रणेता माना जाता है, उन्होंने अपनी ग़ज़लों के माध्यम से आम लोगों की पीड़ा को सरल शब्दों में व्यक्त किया है। उर्दू के अलावा हिंदी में ग़ज़ल कहने का तरीका अपने आप में नया था, जिसे दुष्यंत कुमार ने न केवल रचा बल्कि उसे लोकप्रिय भी बनाया, तो आईये आपके सामने पेश हैं दुष्यंत कुमार की उन्हीं ग़ज़लों के कुछ चुनिंदा शेर...
ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा
मैं सज्दे में नहीं था आप को धोका हुआ होगा
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए
एक आदत सी बन गई है तू
और आदत कभी नहीं जाती
तुम्हारे पावँ के नीचे कोई ज़मीन नहीं
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
न हो क़मीज़ तो पाँव से पेट ढक लेंगे
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए
नज़र-नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं
ज़रा सी बात है मुँह से निकल न जाए कहीं
यहाँ तक आते आते सूख जाती है कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा
तिरा निज़ाम है सिल दे ज़बान-ए-शायर को
ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीअ’त से उछालो यारो