भारत के जाने माने साहित्यकार रबीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय
माँ भारती के शिखर-पुत्रों में से एक, कवि कुलगुरु रबीन्द्रनाथ टैगोर संवेदना, रचनात्मकता, नैतिकता और प्रगतिशीलता के ज्वलंत प्रेरक पुंज थे. वे राष्ट्रीय गान के रचनाकार और साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता भी थे. वह बंगाली कवि, ब्रह्म समाज के दार्शनिक, चित्रकार और संगीतकार थे. वह एक सांस्कृतिक समाज सुधारक भी थे. आज भी रविन्द्रनाथ टैगोर को उनके काव्य गीतों और साहित्य रचना के लिए जाना जाता है. उनके साहित्य आध्यात्मिक और मर्यादा पूर्ण रूप से अपने कार्यों को प्रस्तुत करते थे. वे अपने समय की उन महान शख्सियत में से है जिन्होंने साहित्य के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया.
अपनी साहित्यिक परिभाषा के कारण ही उन्हें अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिकों के साथ उनकी बैठक विज्ञान और आध्यात्मिकता के बीच संघर्ष के रूप में जानी जाती है. रविन्द्रनाथ टैगोर ने अपने साहित्यिक परिश्रम से दुनिया के सभी हिस्सों में अपनी विचारधारा को फैलाने का कार्य किया. उन्होंने जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में भाषण दिए तथा सम्पूर्ण विश्व का दौरा किया. वे नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले ही गैर यूरोपीय थे. भारतीय राष्ट्रगान जन गण मन के अलावा उन्होंने “अमर सोनार बांग्ला” की रचना की थी. जिसे बांग्लादेश के राष्ट्रीय गान के रूप में अपनाया गया. श्रीलंका के राष्ट्रीय गान का भी रविन्द्रनाथ टैगोर की कलम से सृजन हुआ है, आईये जाने इनके बारे में विस्तार से ......
| रबीन्द्रनाथ ठाकुर |
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| पूरा नाम | रबीन्द्रनाथ ठाकुर |
| अन्य नाम | रबीन्द्रनाथ टैगोर, गुरुदेव |
| जन्म | 7 मई, 1861 |
| जन्म भूमि | कलकत्ता, पश्चिम बंगाल |
| मृत्यु | 7 अगस्त, 1941 |
| मृत्यु स्थान | कलकत्ता, पश्चिम बंगाल |
| अभिभावक | देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी |
| पति/पत्नी | मृणालिनी देवी |
| कर्म भूमि | पश्चिम बंगाल |
| कर्म-क्षेत्र | साहित्य की सभी विधाएँ |
| मुख्य रचनाएँ | राष्ट्र-गान जन गण मन और बांग्लादेश का राष्ट्र-गान 'आमार सोनार बांग्ला', 'गीतांजलि', पोस्टमास्टर, मास्टर साहब, गोरा, घरे-बाइरे आदि। |
| विषय | साहित्य |
| भाषा | हिन्दी, अंग्रेज़ी, बांग्ला |
| विद्यालय | सेंट ज़ेवियर स्कूल, लंदन कॉलेज विश्वविद्यालय |
| पुरस्कार-उपाधि | सन 1913 ई. में 'गीतांजलि' के लिए नोबेल पुरस्कार, नाइटहुड (जलियाँवाला कांड के विरोध में उपाधि वापिस की) |
| विशेष योगदान | राष्ट्र गान के रचयिता |
| नागरिकता | भारतीय |
| अन्य जानकारी | 1901 में टैगोर ने पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित शांतिनिकेतन में एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना की। जहाँ उन्होंने भारत और पश्चिमी परंपराओं के सर्वश्रेष्ठ को मिलाने का प्रयास किया। |
रविंद्र नाथ टैगोर जन्म और प्रारंभिक शिक्षा (Rabindranath Tagore Birth and Initial Life)
रवीना टैगोर का जन्म 7 मई 1861 में कोलकाता के जोड़ासाँको की हवेली में हुआ था. उनके पिता का नाम देवेंद्र नाथ टैगोर था. इनके पिता ब्रह्म समाज के एक वरिष्ठ नेता और सादा जीवन जीने वाले व्यक्तित्व थे. इनकी माता का नाम शारदा देवी था. वे एक धर्म परायण महिला थी. परिवार के 13 बच्चों में सबसे छोटे रविन्द्रनाथ टैगोर ही थे. बचपन में ही टैगोर की माता जी का निधन हो गया था. जिसकी वजह से उनका पालन पोषण नौकरों द्वारा ही किया गया. रबिन्द्रनाथ की प्रारंभिक शिक्षा सेंट जेवियर स्कूल में हुई.
रवींद्रनाथ टैगोर का परिवार (Rabindranath Tagore family)
टैगोर के परिवार में उनकी माँ, उनके पिता, और भाई-बहन मौजूद थे। Rabindranath Tagore के सबसे बड़े भाई “द्विजेंद्रनाथ” एक दार्शनिक और कवि थे। उनके एक अन्य भाई, “सत्येंद्रनाथ”, पूर्व में “अखिल-यूरोपीय भारतीय सिविल सेवा” में नियुक्त होने वाले पहले भारतीय व्यक्ति रह चुके थे। उनके एक अन्य भाई, ज्योतिंद्रनाथ, एक संगीतकार, और नाटककार थे। साथ ही उनकी बहन स्वर्णकुमारी एक उपन्यासकार बनीं।
रबिन्द्रनाथ टैगोर का विवाह (Rabindranath Tagore Marriage)
वर्ष 1883 रबिन्द्रनाथ टैगोर का विवाह म्रणालिनी देवी से हुआ. उस समय म्रणालिनी देवी सिर्फ 10 वर्ष की थी. रविंद्र नाथ टैगोर ने 8 वर्ष की उम्र में ही कविता लिखने का कार्य शुरू कर दिया था और 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने भानु सिन्हा के छद्म नाम के तहत कविताओं का प्रकाशन भी शुरू कर दिया था. वर्ष 1871 में रविंद्र नाथ टैगोर के पिता ने इनका एडमिशन लंदन के कानून महाविद्यालय में करवाया. परंतु साहित्य में रुचि होने के कारण 2 वर्ष बाद ही बिना डिग्री प्राप्त किये वे वापस भारत लौट आए.
वर्ष 1877 में रविंद्रनाथ टैगोर ने एक लघु कहानी ‘भिखारिणी’ और कविता संग्रह, ‘संध्या संघ’ की रचना की. रविंद्रनाथ टैगोर ने महाकवि कालिदास की कविताओं को पढ़कर ही प्रेरणा ली थी. वर्ष 1873 में रबिन्द्रनाथ टैगोर ने अपने पिता के साथ देश के विभिन्न राज्यों का दौरा किया. इस दौरान रवीना टैगोर ने विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक और साहित्यिक ज्ञान को जमा किया. अमृतसर के प्रवास के दौरान उन्होंने सिख धर्म को बहुत ही गहराई से अध्ययन किया. और उन्होंने सिख धर्म पर कई कविताएं और लेखों को लिखा.
शान्ति निकेतन की स्थापना (Establishment of Shanti Niketan)
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1901 में शांतिनिकेतन आश्रम चले गए, वहां उन्होंने उपनिषदों से पारंपरिक ’गुरु-शिष्य’ शिक्षण विधियां पर आधारित एक प्रायोगिक स्कूल की स्थापना की। उनका प्रकृति साथ विशेष लगाव था इसलिए शान्तिनिकेतन में उन्होंने प्राकृतिक माहौल बनाया और सघन पेङ-पौधों के बीच पुस्तकालय का निर्माण कराया। उनको यह विश्वास था कि यह शिक्षण के प्राचीन तरीके अंग्रेजों द्वारा प्रदान की गई आधुनिक शिक्षा प्रणाली की तुलना में इससे छात्रों को अधिक फायदा होगा। परन्तु उसी समय उनकी पत्नी और उनके दो बच्चों की मृत्यु हो गई। जिससे टैगोर व्याकुल हो गए। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1921 में ’विश्वभारती विश्वविद्यालय’ की स्थापना की।
एक कवि के रूप में रवीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore as a poet)
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने सभी साहित्यिक विधाओ को सफलतापूर्वक लिखा था। टैगोर सर्वप्रथम एक कवि थे तथा उन्होंने 50 से भी अधिक कविताएँ लिखीं थीं। टैगोर की पारंपरिक बंगाली भाषा में 1910 में सर्वश्रेष्ठ और सर्वप्रसिद्ध कविता ’गीतांजलि’ प्रकाशित हुई। इसमें प्रकृति, आध्यात्मिकता और जटिल मानवीय भावनाओं पर आधारित 157 कविताएँ शामिल थीं। भारत के साथ-साथ विदेशों में भी गीतांजलि के प्रकाशन के बाद उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ गई। इसी कारण 1913 में रवीन्द्रनाथ टैगोर को ’गीताजंलि’ कविता संग्रह के लिए साहित्य में प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वह साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले गैर-यूरोपीय थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने प्राचीन कवियों कबीर और रामप्रसाद सेन से प्रेरणा ली। उनकी कविताओं की तुलना अक्सर शास्त्रीय कवियों की 15 वीं और 16 वीं शताब्दी की रचनाओं से की जाती है।
प्रमुख कविताएँ
- मानसी (1890)
- सोनार तारी (1894)
- गीतांजलि (1910)
- गीतिमाल्या (1914)
- बालका (1916)
- तलगाच
- भानुसिम्हा ठाकुर पदबली
- कबी-कहिनी
- जीते नहीं दीबो
- प्रभात संगीत
- संध्या संगीत
- भगना हृदय
- बंगमाता
- चित्तो जेठा भयुन्यो
- दुई बीघा जोमी
- जीवन की धारा
- वीरपुरुष
रवीन्द्रनाथ टैगोर की पुस्तकें (Rabindranath Tagore books)
रवीन्द्रनाथ टैगोर की विशिष्ट कथा शैली आज भी पाठकों के लिए चुनौतीपूर्ण है। उनके लेखन ने राष्ट्रवाद के भविष्य के खतरों के साथ-साथ अन्य महत्त्वपूर्ण सामाजिक समस्याओं को संबोधित किया है। उनकी पुस्तक ’शेशेर कोबिता’ ने कविता और मुख्य पात्र के लयबद्ध वर्णन के माध्यम से अपनी कहानी प्रस्तुत की। रवीन्द्रनाथ टैगोर की पुस्तकें है.....
- गीतांजलि (1910)
- शेशेर कबिता (1929)
- चोखेर बाली (1903)
- डाकघर (1912)
- मानसी (1890)
- रचनात्मक एकता (1922)
- वसंत का चक्र (1917)
- भिखारिनी
- भूखे पत्थर (1920)
- साधना, जीवन का अहसास (1913)
- राष्ट्रवाद (1917)
- लघु कथाएँ
- गीताबितान (1932)
- मनुष्य का धर्म (1931)
- द होम एंड द वर्ल्ड (1916)
- गेला (1910)
- आवारा पक्षी (1916)
- माली (1913)
- काबुलीवाला
- गाने की पेशकश (1910)
- द हंग्री स्टोन्स एंड अदर स्टोरीज़ (1916)
- रवीन्द्रनाथ टैगोर की चुनिंदा कहानियां (2004)
- द ब्रोकन नेस्ट (1901)
- रवीन्द्रनाथ टैगोर: एन एंथोलॉजी (1997)
- रवीन्द्रनाथ टैगोर की चुनिंदा लघु कथाएँ (1917)
- टैगोर की कहानियां (1918)
- द एसेंशियल टैगोर (2011)
- गमेरे लड़कपन के दिन
- फलों का जमावड़ा (1916)
- सोनार तोरी (1894)
- बंगाल की झलक (1921)
- मेरे संस्मरण (1912)
- रवीन्द्रनाथ टैगोर की संपूर्ण कृतियाँ (सचित्र संस्करण)
- रवीन्द्रनाथ टैगोर : चयनित कविताएं और गीत (2006)
- योगयोग (1929)
- गल्पगुच्छा
- मलबे (1926)
- प्रेमी का उपहार और पार (1918)
- वोकेशन (1909)
- सहज पथ
- चार अध्याय
- भानुसिम्हा ठाकुरर पदबली (1884)
- चतुरंगा
- नौकाडुंबी (1906)
- रवीन्द्रनाथ टैगोर : अचलायतन
- रेड ओलियंडर्स (1925)
- रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविताओं और नाटकों का संग्रह (1936)
- दुई बीघा जोमी
- एल कार्टेरो डेल रे
- घर आ रहा है
भारतीय राष्ट्रगान (जन-गण-मन) के रचयिता
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत के लिए राष्ट्रगान – ’जन गण मन’ लिखा था। उन्होंने बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत ’आमार सोनार बांग्ला’ भी लिखा था। इसके साथ ही श्रीलंका का राष्ट्रगान भी टैगोर द्वारा लिखे गए एक बंगाली गीत पर आधारित था।
रवींद्रनाथ टैगौर का साहित्यिक जीवन (Literary Life of Rabindranath Tagore)
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कई कविताएँ, उपन्यास और लघु कथाएँ लिखीं, जिनमें उन्होंने उस समय प्रचलित सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह और दहेज प्रथा को उजागर किया। उनको बचपन से ही कविता, छन्द और भाषा में अत्यंत रुचि थी। उन्होंने इतिहास, भाषा विज्ञान और आध्यात्मिकता से जुङी बहुत-सी किताबें लिखी थीं। टैगोर जी ने बांग्ला साहित्य को नये आयाम दिये और एक आधुनिक साहित्य के रचयिता बने। उन्होंने अपनी रचनाओं से भारतीय सांस्कृतिक चेतना को उजागर किया। वह बंगाली साहित्य में अमूल्य योगदान देने वाले युगदृष्टा बने।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की पहली भाषा बंगाली थी, उन्होंने अपना लेखन बंगाली में शुरू किया, लेकिन बाद में उनमें से कई का अंग्रेजी में अनुवाद किया। उन्होंने 2,230 गीतों की रचना की, जिन्हें अक्सर ’रवींद्र संगीत’ कहा जाता है।
टैगोर ने छोटी सी उम्र में लघु कथाएँ लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने लेखन करियर की शुरूआत 1877 में ’भिखारिणी’ नामक लघु कथा से की, जो उनकी पहली रचना थी। उन्होंने अपनी कहानियों में सामाजिक मुद्दों और गरीब आदमी की समस्याओं को उजागर किया। उन्होंने हिंदू विवाहों और कई अन्य रीति-रिवाजों के नकारात्मक पक्ष के बारे में भी लिखा, जो उस समय देश की परंपरा का हिस्सा थे। उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध लघु कथाएँ हैं – ’काबुलीवाला, ’खुदिता पासन’, ’अटृटुजू’, ’हेमंती’ और ’मुसलमानिर गोलपो।’
टैगोर ने भारतीय पौराणिक कथाओं और समकालीन सामाजिक मुद्दों पर आधारित कई नाटक लिखे। जब वह किशोर थे, तब उन्होंने अपने नाटक का काम अपने भाई के साथ शुरू किया। 20 वर्ष की आयु में उन्होंने ’वाल्मीकि प्रतिभा’ नाटक लिखा।
प्रसिद्ध नाटक
- मुक्तधारा (1922)
- राजा (1910)
- रक्तकरावी (1926)
- अचलयातन (1912)
- डाकघर (1912)
प्रसिद्ध कहानी व उपन्यास
- गोरा (1910)
- नौकादुबी
- योगायोग (1929)
- जोगजोग
- चतुरंगा
- बहू ठाकुरनीर हाट (1881)
- घारे बायरे
- पोस्ट मास्टर
- काबुलीवा
- चोखेर बाली
- घाटेर कथा
रबिन्द्रनाथ टैगोर की प्रमुख रचनाये (Rabindranath Tagore Literary Works)
- रविंद्रनाथ टैगोर ने कई कविताओं, उपन्यासों और लघु कथाएं लिखीं. लेकिन साहित्यिक कार्यों की अधिक संख्या पैदा करने की उनकी इच्छा केवल उनकी पत्नी और बच्चों की मौत के बाद बढ़ी. उनके कुछ साहित्यिक कार्यों का उल्लेख नीचे दिया गया है:
- रविंद्रनाथ टैगोर ने बाल्यकाल से ही लेखन का कार्य प्रारंभ केर दिया था. रविंद्रनाथ टैगोर ने हिंदू विवाहों और कई अन्य रीति-रिवाजों के नकारात्मक पक्ष के बारे में भी लिखा जो कि देश की परंपरा का हिस्सा थे. उनकी कुछ प्रसिद्ध लघु कथाओं में कई अन्य कहानियों के बीच ‘काबुलिवाला’, ‘क्षुदिता पश्न’, ‘अटोत्जू’, ‘हैमांति’ और ‘मुसलमानिर गोल्पो’ शामिल हैं
- ऐसा कहा जाता है कि उनके कार्यों में, उनके उपन्यासों की अधिक सराहना की जाती है. रविंद्रनाथ ने अपने साहित्यों के माध्यम से अन्य प्रासंगिक सामाजिक बुराइयों के बीच राष्ट्रवाद के आने वाले खतरों के बारे में बात की.
- उनके अन्य प्रसिद्ध उपन्यासों में ‘नौकादुबी’, ‘गोरा’, ‘चतुरंगा’, ‘घारे बायर’ और ‘जोगजोग’ शामिल हैं.
- रवींद्रनाथ ने कबीर और रामप्रसाद सेन जैसे प्राचीन कवियों से प्रेरणा ली और इस प्रकार उनकी कविता अक्सर शास्त्रीय कवियों के 15 वें और 16 वीं शताब्दी के कार्यों की तुलना में की जाती है. अपनी खुद की लेखन शैली को शामिल करके, उन्होंने लोगों को न केवल अपने कार्यों बल्कि प्राचीन भारतीय कवियों के कार्यों पर ध्यान देने योग्य बनाया. रबिन्द्रनाथ टैगोर ने कुल 2230 गीतों की रचना की.
- रवींद्रनाथ टैगोर की प्रमुख रचनायें बालका’, ‘पूरबी’, ‘सोनार तोरी’ और ‘गीतांजली’ शामिल हैं.
राजनीतिक दृष्टिकोण (Rabindranath Tagore Political View)
रबिन्द्रनाथ टैगोर ने अपने गीतों के माध्यम से ब्रिटिश प्रशासन को आजादी के लिए नतमस्तक किया. उन्होंने भारतीय राष्ट्रवादियों का भी समर्थन किया और सार्वजनिक साम्राज्यवाद की सार्वजनिक आलोचना की. रबिन्द्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली का भी पुरजोर विरोध किया. वर्ष 1915 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में उन्हें प्राप्त नाइट की पदवी को वापस कर दिया था. इस पदवी को राजा जॉर्ज पंचम ने रबिन्द्रनाथ टैगोर को प्रदान किया था.
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान (Contribution to the Indian Independence Movement)
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी कविताओं और गीतों के माध्यम से भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में आवाज उठाई। उन्होंने भारतीय राष्ट्रवादियों का समर्थन किया और ब्रिटिश साम्राज्यवाद की आलोचना की। उन्होंने भारतीयों पर जबदस्ती ठोपी जा रही अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली की भी आलोचना की। उन्होंने ब्रिटिश शासन को भारतीय जनता की ’सामाजिक बुराई’ की संज्ञा दी तथा उन्होंने अपने लेखन में भारतीय राष्ट्रवादियों के पक्ष में आवाज उठाई। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1905 में बंगाल विभाजन के बाद बंगाल की जनता को एकजुट करने के लिए ’बांग्लार माटी बांग्लार जोल’ गीत लिखा था। इसके अतिरिक्त उन्होंने जातिवाद के खिलाफ ’राखी उत्सव’ का प्रारंभ किया, उनसे प्रेरित होकर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के लोगों ने एक-दूसरे की कलाई पर रंग-बिरंगे धागे बांधे। 3 जून 1915 को रवीन्द्रनाथ टैगोर को ’किंग जॉर्ज पंचम’ द्वारा ’नाइटहुड’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। जिसको उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड’ (अमृतसर) के विरोध के रूप में त्याग दिया।
रवीन्द्रनाथ टैगोर को मिले पुरस्कार (Rabindranath Tagore gets Awards)
- 14 नवंबर, 1913 को रवीन्द्रनाथ टैगोर को सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक लोकप्रय रचना ’गीताजंलि’ के लिए साहित्य में ’नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उसके बाद वे पूरे विश्व में विख्यात हो गए।
- 20 दिसंबर, 1915 को कलकत्ता विश्वविद्यालय ने टैगोर जी को साहित्य के लिए ’डॉक्टर’ की उपाधि से सम्मानित किया।
- टैगोर को 3 जून 1915 को ’किंग जॉर्ज पंचम’ (ब्रिटेन) द्वारा ’नाइटहुड’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। 1919 में ’जलियांवाला बाग हत्याकांड’ के बाद उन्होंने इस उपाधि को त्याग दिया।
- 1940 में ’ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी’ ने उन्हें शांतिनिकेतन में आयोजित एक विशेष समारोह के दौरान ’डॉक्टरेट ऑफ लिटरेचर’ के साथ प्रस्तुत किया।
रवींन्द्रनाथ टैगोर मृत्यु (Rabindranath Tagore Death)
रवीन्द्रनाथ टैगोर का निधन 7 अगस्त 1941 को कोलकत्ता में हुआ. यह भारतीय साहित्य के लिए अभूतपूर्व क्षति थी. वर्षों पुराने दर्द और लंबे समय से चली आ रही बीमारी के बाद, रवींद्रनाथ टैगोर का 80 वर्ष की आयु में 7 अगस्त साल 1941 को निधन हो गया।
रवींद्रनाथ टैगोर की विरासत (Rabindranath Tagore Legacy)
- रवींद्रनाथ टैगोर ने जिस तरह से बंगाली साहित्य को माना और देखा जाता था, उसे पूरी तरह से बदल दिया था क्योंकि उन्होंने पाठकों पर अपनी एक चिरस्थायी छाप छोड़ी थी।
- महान लेखक को श्रद्धांजलि देने के लिए आज कई देशों में उनकी प्रतिमाएं लगाई जाती हैं, और साथ ही उनके सम्मान में कई वार्षिक कार्यक्रमों की मेजबानी भी की जाती है।
- कई प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय लेखकों द्वारा कई अनुवादों के कारण उनके कई कार्यों को वैश्विक बना दिया गया है।
- टैगोर को समर्पित आज पांच संग्रहालय मौजूद हैं। इनमें से तीन भारत में स्थित हैं, जबकि शेष दो बांग्लादेश में हैं। इन संग्रहालयों में उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ रखी गयी हैं, और हर साल यहाँ लाखों लोग उन्हें देखने आते हैं।
FAQ (Frequently Asked Questions)
रविंद्र नाथ टैगोर को साल 1913 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार मिला था।
रबीन्द्रनाथ टैगोर को भारत साल साल 1954 में मिला।
रवींद्रनाथ टैगोर एक कवि, कथाकार , उपन्यासकार , नाटककार , निबन्धकार ,चित्रकार और एक कलाकार थे, जिन्होंने 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में संगीत, बंगाली साहित्य और भारतीय कला को फिर एक बिलकुल नए रूप से तैयार किया था।
उन्हें साल 1915 में ब्रिटिश प्रशासन की ओर से ‘नाइट हुड’ की उपाधि दी गयी थी।
रविंद्रनाथ टैगोर ने साल 1921 में “शान्ति निकेतन” विद्यालय की स्थापना की थी।
रविंद्रनाथ टैगोर ने भारत और बांग्लादेश का राष्ट्रीयगान लिखा है।
रविंद्र नाथ टैगोर ने “जन गण मन” गान 27 दिसंबर, साल 1911 में पहली बार सबके सामने गाया था, और 24 जनवरी 1950 को इसे भारतीय राष्ट्रगान के रूप में अपना लिया गया था।
रवींद्रनाथ टैगोर की मृत्यु 7 अगस्त 1941 को हुई थी।