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Amrita Pritam Poem: प्रसिद्ध कवयित्री, उपन्यासकार और निबंधकार अमृता प्रीतम की लिखी कुछ सबसे बेहतरीन कवितायेँ 

 

अमृता प्रीतम (Amrita Pritam) का जन्म 31 अगस्त 1919 को पंजाब (पाकिस्तान) और मृत्यु 31 अक्टूबर, 2005 दिल्ली में हुई थी। ये प्रसिद्ध कवयित्री, उपन्यासकार और निबंधकार थीं, जिन्हें 20वीं सदी की पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री माना जाता है। इनकी लोकप्रियता सीमा पार पाकिस्तान में भी बराबर है। इन्होंने पंजाबी जगत् में छ: दशकों तक राज किया। अमृता प्रीतम ने कुल मिलाकर लगभग 100 पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा 'रसीदी टिकट' भी शामिल है। अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं, जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। अपने अंतिम दिनों में अमृता प्रीतम को भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान 'पद्म विभूषण' भी प्राप्त हुआ। उन्हें 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से पहले ही अलंकृत किया जा चुका था, तो आईये आपको मिलाएं  इनकी मशहूर कविताओं से..............

अश्वमेध यज्ञ

एक चैत की पूनम थी
कि दूधिया श्वेत मेरे इश्क़ का घोड़ा
देश और विदेश में विचरने चला...

सारा शरीर सच-सा श्वेत
और श्यामकर्ण विरही रंग के...

एक स्वर्णपत्र उसके मस्तक पर
'यह दिग्विजय घोड़ा –
कोई सबल है तो इसे पकड़े और जीते'

और जैसे इस यज्ञ का एक नियम है
वह जहाँ भी ठहरा
मैंने गीत दान किये
और कई जगह हवन रचा
सो जो भी जीतने को आया वह हारा।

आज उमर की अवधि चुक गई है
यह सही-सलामत मेरे पास लौटा है,
पर कैसी अनहोनी –
कि पुण्य की इच्छा नहीं,
न फल की लालसा बाक़ी
यह दूधिया श्वेत मेरे इश्क़ का घोड़ा
मारा नहीं जाता - मारा नहीं जाता
बस सही-सलामत रहे,
पूरा रहे!
मेरा अश्वमेध यज्ञ अधूरा है,
अधूरा रहे!

नाग पंचमी

मेरा बदन एक पुराना पेड़ है...
और तेरा इश्क़ नागवंशी –
युगों से मेरे पेड़ की
एक खोह में रहता है।

नागों का बसेरा ही पेड़ों का सच है
नहीं तो ये टहनियाँ और बौर-पत्ते –
देह का बिखराव होता है...

यूँ तो बिखराव भी प्यारा
अगर पीले दिन झड़ते हैं
तो हरे दिन उगते हैं
और छाती का अँधेरा
जो बहुत गाढ़ा है
– वहाँ भी कई बार फूल जगते हैं।

और पेड़ की एक टहनी पर –
जो बच्चों ने पेंग डाली है
वह भी तो देह की रौनक़...

देख इस मिट्टी की बरकत –
मैं पेड़ की योनि में आगे से दूनी हूँ
पर देह के बिखराव में से
मैंने घड़ी भर वक़्त निकाला है

और दूध की कटोरी चुराकर
तुम्हारी देह पूजने आई हूँ...

यह तेरे और मेरे बदन का पुण्य है
और पेड़ों को नगी बिल की क़सम है
और – बरस बाद
मेरी ज़िन्दगी में आया –
यह नागपंचमी का दिन है...

आदि स्मृति

काया की हक़ीक़त से लेकर —
काया की आबरू तक मैं थी,
काया के हुस्न से लेकर —
काया के इश्क़ तक तू था।

यह मैं अक्षर का इल्म था
जिसने मैं को इख़लाक दिया।
यह तू अक्षर का जश्न था
जिसने 'वह' को पहचान लिया,
भय-मुक्त मैं की हस्ती
और भय-मुक्त तू की, 'वह' की

मनु की स्मृति
तो बहुत बाद की बात है...

मेरा पता

आज मैंने
अपने घर का नम्बर मिटाया है
और गली के माथे पर लगा
गली का नाम हटाया है
और हर सड़क की
दिशा का नाम पोंछ दिया है
पर अगर आपको मुझे ज़रूर पाना है
तो हर देश के, हर शहर की,
हर गली का द्वार खटखटाओ
यह एक शाप है, यह एक वर है
और जहाँ भी
आज़ाद रूह की झलक पड़े
— समझना वह मेरा घर है।