Ada Jafarey Shayari: मशहूर शायरा अदा जाफ़री के लिखे वो बेहतरीन शेर जो बदल देगें आपके इश्क़ का नजरिया
अदा जाफ़री 22 अगस्त 1924 को उत्तर प्रदेश के शहर बदायूं में पैदा हुईं। 1947 में पाकिस्तान चली गईं। उनके कई काव्य संकलन एक जगह संकलित कर 'मौसम-मौसम' के नाम से प्रकाशित हो चुके हैं। इसी साल 12 मार्च को कराची में उन्होंने आखिरी सांस ली, तो आईये आज आपको पढ़ाएं इनके कुछ सबसे मशहूर शेर....
पयाम-ए-ज़िंदगी-ए-नौ न बन सकीं सद हैफ़
ये ऊदी ऊदी घटाएँ ये भीगी भीगी बहार
न होता ख़ानुमाँ तो ख़ानुमाँ-बर्बाद क्यों होती
'अदा' ये रंग लाई आरज़ू-ए-आशियाँ मेरी
इधर भी इक नज़र ऐ जल्वा-ए-रंगीन-ओ-बेगाना
तुलू-ए-माह का है मुंतज़िर मेरा सियह-ख़ाना
आमादा-ए-करम है ये किस की निगाह-ए-नाज़
दिल शिकवा-ए-सितम से पशेमाँ है आज क्यों
दिल की आज़ुर्दगी बजा लेकिन
वो भी महरूम-ए-यक-निगाह रहे
मस्ती भरी हवाओं के झोंके न पूछिए
फ़ितरत है आज साग़र-ओ-मीना लिए हुए
ये किस ने नक़ाब अपने रुख़ से उलट दी
गले मिल रहे हैं बहम कुफ़्र-ओ-ईमाँ
उम्मीद का घरौंदा पल में गिरा दिया है
तुझ को भी क्या किसी ने दिल से भुला दिया है
वो आएँगे तो आएँगे जुनून-ए-शौक़ उभारने
वो जाएँगे तो जाएँगे ख़राबियाँ किए हुए
शायद किसी ने याद किया है हमें 'अदा'
क्यों वर्ना अश्क माइल-तूफ़ाँ है आज फिर
और कुछ देर लब पे आह रहे
और कुछ उन से रस्म-ओ-राह रहे
किस को ख़बर हैं कितने बहकते हुए क़दम
मख़मूर अँखड़ियों का सहारा लिए हुए
फिर निगाहों को आज़मा लीजे
फिर वफ़ाओं पे इश्तिबाह रहे
सज्दे तड़प रहे हैं जबीन-ए-नियाज़ में
सर हैं किसी की ज़ुल्फ़ का सौदा लिए हुए
वो बे-नक़ाब सामने आएँ भी अब तो क्या
दीवानगी को होश की फ़ुर्सत नहीं रही
सदियों से मिरे पाँव तले जन्नत-ए-इंसाँ
मैं जन्नत-ए-इंसाँ का पता ढूँढ रही हूँ
ये फिर किस ने दुज़्दीदा नज़रों से देखा
मचलने लगे सैंकड़ों शोख़ अरमाँ
आप ही मरकज़-ए-निगाह रहे
जाने को चार-सू निगाह गई
तू ने मिज़्गाँ उठा के देखा भी
शहर ख़ाली न था मकीनों से
ख़लिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह गई
लीजिए उन से रस्म-ओ-राह गई
बे-नवा हैं कि तुझे सौ-ओ-नवा भी दी है
जिस ने दिल तोड़ दिए उस की दुआ भी दी है
मिज़ाज-ओ-मर्तबा-ए-चश्म-ए-नम को पहचाने
जो तुझ को देख के आए वो हम को पहचाने
वो तिश्नगी थी कि शबनम को होंट तरसे हैं
वो आब हूँ कि मुक़य्यद गुहर गुहर में रहूँ
अभी सहीफ़ा-ए-जाँ पर रक़म भी क्या होगा
अभी तो याद भी बे-साख़्ता नहीं आई