जन्मदिन विशेष में जानिये आचार्य रजनीश का ओशो बनने का सफर, प्रांरभिक जीवन और कुछ अनसुलझे राज उनकी मृत्यु के बारे में
ओशो/रजनीश एक भारतीय रहस्यमयी गुरु और अध्यात्मिक शिक्षक थे. जिन्होंने गतिशील ध्यान को आध्यात्मिक अभ्यास का जरिया बनाया था. वह एक विवादास्पद नेता, वक्ता और योगी थे. उनके लाखों अनुयायी थे और इतनी ही संख्या में आलोचक/ विरोधी भी थे. ओशो ने रूढ़ीवादी समाज का विभिन्न विषयों पर विरोध किया. उन्होंने समाज में मौजूद धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंडों पर कई सवाल उठाए. ओशो एक अंतरराष्ट्रीय लोकप्रियता प्राप्त आध्यात्मिक गुरु थे, तो आईये आज आपको मिलाएं इनके जीवन परिचय से....
| बिंदु(Points) | जानकारी (Information) |
|---|---|
| नाम (Name) | ओशो और आचार्य रजनीश |
| वास्तविक नाम (Real Name) | चन्द्र मोहन जैन |
| जन्म (Birth) | 11 दिसंबर 1931 |
| जन्म स्थान (Birth Place) | रायसेन, मध्यप्रदेश |
| कार्यक्षेत्र (Profession) | धर्मगुरु |
| पिता का नाम (Father Name) | बाबूलाल जैन |
| माता का नाम(Mother Name) | सरस्वती जैन |
| मृत्यु (Death) | 19 जनवरी 1990 |
| मृत्यु कारण(Death Cause) | कंजेस्टिव हार्ट फैल्योर |
| मृत्यु स्थान(Death Place) | पुणे, महाराष्ट्र |
ओशो रजनीश का जन्म | Osho Rajneesh Birth
ओशो रजनीश का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के एक छोटे से भारतीय गांव कुचवाड़ा में बाबूलाल और सरस्वती जैन के ग्यारह बच्चों के रूप में हुआ था. उनका वास्तविक नाम चंद्र मोहन जैन था.
ओशो रजनीश का परिवार | Osho Rajneesh Family
इनके पिता एक कपड़ा व्यापारी थे. ओशो ने अपना प्रारंभिक बचपन अपने दादा दादी के साथ बिताया और उनके साथ रहने में काफी स्वतंत्रता का आनंद लिया. उन्होंने अपने भविष्य के जीवन पर एक बड़ा प्रभाव डालने के लिए अपने शुरुआती जीवन के अनुभवों को श्रेय दिया था.
ओशो रजनीश की शिक्षा | Osho Rajneesh Education
ओशो अपने बचपन से ही सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर प्रश्न पूछते रहते थे. वे जबलपुर के हितकारिणी कॉलेज में अध्ययन कर रहे थे और उन्होंने कॉलेज के ही एक प्रशिक्षक के साथ किसी विषय पर बहस की थी जिसके कारण उन्हें वहां से निकाल दिया गया था. जिसके बाद उन्होंने वर्ष 1955 में डी.एन. जैन कॉलेज से फिलोसोफी में B.A. किया. वे छात्र जीवन से ही लोगों को भाषण देते थे. वर्ष 1957 में सागर यूनिवर्सिटी से उन्होंने फिलोसॉफी में डिस्टिंक्शन के साथ M.A. किया.
ओशो का अर्थ | Osho Meaning In Hindi
1960 के दशक में ओशो “आचार्य रजनीश” के नाम से प्रचलित थे। जबकि 1970 से लेकर 1980 तक उन्हें “भगवान रजनीश” के नाम से ख्याति मिली। लेकिन बाद में इन्हें Osho के नाम से जाना जाने लगा और अब भी वह इसी नाम से मशहूर हैं। ओशो नाम से जुड़ी एक प्रचलित मान्यता के अनुसार Osho शब्द का उद्गम “ओशनिक” से हुआ है, जिसका प्रयोग विलियम जेम्स ने अपनी कविता में किया था। जेम्स की इस कविता का शीर्षक था “ओशनिक एक्सपीरियंस”
“ओशनिक” शब्द का मतलब होता है, “सागर में विलीन हो जाना”
ऐसे में “ओशो” शब्द का अर्थ निकलता है, “सागर में विलीन हो जाने वाला”
ओशो रजनीश की प्रसिद्धि | Osho Rajneesh Journey
रजनीश स्वयं को 20वीं सदी के सबसे बड़े तमाशेबाज़ों में से एक मानते हैं। अपने बुद्धि कौशल से उन्होंने विश्वभर में अपने अनुययियों को जिस सूत्र में बांधा वह काफ़ी हंगामेदार साबित हुआ। उनकी भोगवादी विचारधारा के अनुयायी सभी देशों में पाये जाते हैं। रजनीश ने पुणे में 'रजनीश केन्द्र' की स्थापना की और अपने विचित्र भोगवादी दर्शन के कारण शीघ्र ही विश्व में चर्चित हो गये। एक दिन बिना अपने शिष्यों को बताए वे चुपचाप अमेरिका चले गए। वहाँ पर भी अपना जाल फैलाया। मई 1981 में उन्होंने ओरेगोन (यू.एस.ए.) में अपना कम्यून बनाया। ओरेगोन के निर्जन भूखण्ड को रजनीश ने जिस तरह आधुनिक, भव्य और विकसित नगर का रूप दिया वह उनके बुद्धि चातुर्य का साक्षी है। रजनीश ने सभी विषयों पर सबसे पृथक् और आपत्तिजनक भी विचार व्यक्ति किये हैं, वह उनकी एक अलग छवि बनाते हैं। उन्होंने पुरातनवाद के ऊपर नवीनता तथा क्रान्तिकारी विजय पाने का प्रयास किया है।
ओशो रजनीश की रचनाएँ | Osho Rajneesh Writings
रजनीश की कई कृतियाँ चर्चित रहीं हैं, इनमें 'सम्भोग से समाधि तक', 'मृत्यु है द्वार अमृत का', संम्भावनाओं की आहट', 'प्रेमदर्शन' के नाम प्रमुख हैं। अपना निज़ी अध्यात्म गढ़कर उसका 'काम' के साथ समन्वय करके रजनीश ने एक अदभुत मायालोक की सृष्टि की है।
ओशो द्वारा लिखी गई प्रसिद्ध किताबें | Osho Rajneesh Famous Books
- ग्लिप्सेंस ऑफ माई गोल्डन चाइल्डहुड
- द बुक ऑफ सीक्रेट
- टैरोट इन द स्पिरिट ऑफ़ जैन
- लव फ्रीडम
- करेज द लॉ ऑफ लिविंग लाइफ डेंजरसली
- ब्लू मेडिटेशन
- बीइंग इन लव
ओशो की पुस्तके | Osho Books in Hindi
- अकथ कहानी प्रेम की: फरीद-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks
- अकथ कहानी प्रेम की: फरीद-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks
- अजहूं चेत गंवार: पलटू-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं इक्कीस OSHO Talks
- अंतर की खोज: जीवन के विभिन्न पहलुओं पर सूरत में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं चार OSHO Talks
- अंतर्यात्रा: ध्यान साधना शिविर, आजोल में ध्यान-प्रयोगों एवं प्रश्नोत्तर सहित हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं आठ OSHO Talks
- अंतर्वीणा: विभिन्न मित्रों व प्रेमियों को ओशो द्वारा लिखे गए 150 पत्रों का संग्रह
- अथातो भक्ति जिज्ञासा, भाग 1: शांडिल्य के भक्ति-सूत्रों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 40 OSHO Talks में से 20 (01 से 20) OSHO Talks का संग्रह
- अथातो भक्ति जिज्ञासा, भाग 2: शांडिल्य के भक्ति-सूत्रों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 40 OSHO Talks में से 20 (21 से 40) OSHO Talks का संग्रह
- अध्यात्म उपनिषद: ध्यान साधना शिविर, माउंट आबू में हुई सीरीज के अंतर्गत अध्यात्म उपनिषद के सूत्रों पर दी गईं सत्रह OSHO Talks
- अनंत की पुकार: ओशो के कार्य में संलग्न कार्यकर्ताओं के बीच लोनावला, नारगोल, माथेरान एवं मुंबई में प्रश्नोत्तर सहित दी गईं चौदह OSHO Talks का संग्रह
- अनहद में बिसराम: प्रश्नोत्तर सीरीज के अंतर्गत पुणे में दी गईं दस OSHO Talks
- अपने माहिं टटोल: ध्यान साधना शिविर, उदयपुर में प्रश्नोत्तर सहित हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks
- अमी झरत बिगसत कंवल: दरिया-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं चौदह OSHO Talks
- अमृत की दिशा: ध्यान साधना पर पुणे एवं मुंबई में दी गईं पांच OSHO Talks का संग्रह
- अमृत द्वार: जीवन के विभिन्न पहलुओं पर पुणे में प्रश्नोत्तर सहित हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं पांच OSHO Talks
- अमृत वाणी: ओशो द्वारा विविध बिंदुओं पर लिखे गए तैंतीस क्रांति-सूत्रों का संग्रह
- अरी, मैं तो नाम के रंग छकी: जगजीवन साहिब के वचनों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks
- असंभव क्रांति: ध्यान साधना शिविर, माथेरान में प्रश्नोत्तर सहित हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks
- आंखों देखी सांच: जीवन के विभिन्न पहलुओं पर पुणे में प्रश्नोत्तर सहित हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं पांच OSHO Talks
- आपुई गई हिराय: प्रश्नोत्तर सीरीज के अंतर्गत पुणे में दी गईं दस OSHO Talks
- ईशावास्योपनिषद: ध्यान साधना शिविर, माउंट आबू में हुई सीरीज के अंतर्गत ईशावास्योपनिषद के सूत्रों पर दी गईं तेरह OSHO Talks
- उड़ियो पंख पसार: प्रश्नोत्तर सीरीज के अंतर्गत पुणे में दी गईं दस OSHO Talks
- उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र: प्रश्नोत्तर सीरीज के अंतर्गत पुणे में दी गईं दस OSHO Talks
- उपासना के क्षण: मित्रों व प्रेमियों के छोटे-छोटे समूहों के बीच प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दी गई ग्यारह अंतरंग वार्ताओं का संग्रह
- एक एक कदम: सामाजिक और राजनैतिक समस्याओं पर प्रश्नोत्तर सहित दी गईं सात OSHO Talks का संग्रह
- एक ओंकार सतनाम: गुरु नानकदेव के ‘जपुजी’ पर पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं बीस OSHO Talks
- एक नया द्वार: जीवन के विभिन्न पहलुओं पर इंदौर में दी गईं पांच OSHO Talks का संग्रह
ओशो रजनीश का करियर | Osho Rajneesh Career
वर्ष 1958 में ओशो जबलपुर विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के लेक्चरर के रूप में कार्य करने लगे और 1960 में वे प्रोफेसर बन गए. जबलपुर विश्वविद्यालय में पढ़ाने के साथ-साथ उन्होंने पूरे भारत की यात्रा की. समाजवाद और पूंजीवाद की अवधारणाओं पर ओशो व्याख्यान देने लगे. जिसके कारण वे पूरे भारत में आचार्य रजनीश के नाम से प्रसिद्ध हो गए. उनका मानना था कि भारत केवल पूंजीवाद, विज्ञान, प्रौद्योगिकी के नियंत्रण के माध्यम से ही समृद्ध हो सकता है.
ओशो ने भारतीय रूढ़िवादी धर्मों और अनुष्ठानों की आलोचना भी की. उनका कहना था की सेक्स अध्यात्मिक विकास को प्राप्त करने की दिशा में पहला कदम है. उनकी इस बयान पर काफी आलोचना भी हुई परंतु समाज का एक बड़ा हिस्सा उनकी ओर आकर्षित होने लगा था. भारत के समृद्ध लोग उनकी ओर आकर्षित होकर उनसे परामर्श के लिए उनके पास आने लगे.
वर्ष 1962 में जीवन जाग्रति केंद्र आयोजित किए और ध्यान पर केंद्रित शिक्षाओं का प्रचार करने लगे. 1966 तक वह एक अध्यात्मिक गुरु बन गए और उन्होंने आध्यात्मिक शिक्षा के लिए पूरी तरह समर्पित होने के लिए अपनी नौकरी को छोड़ दिया. ओशो बहुत ही खुले दिमाग और स्पष्ट विचारों के व्यक्ति थे और अन्य आध्यात्मिक गुरुओं से अलग थे. वर्ष 1968 में उन्होंने एक सेक्स पर आधारित व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन किया था. जिसे बाद में ‘फ्रॉम सेक्स टू सुपरकोनियनेस’ के रूप में प्रकाशित किया गया. जिसके कारण ओशो को भारत के नेताओं द्वारा और भारतीय प्रेस द्वारा सेक्स गुरु कहा जाने लगा.
वर्ष 1970 में ओशो ने एक गतिशील ध्यान विधि लोगों के समक्ष प्रस्तुत की. ओशो के अनुसार यह विधि से ध्यान करके व्यक्ति दिव्यता का अनुभव प्राप्त कर सकता है. इसी वर्ष ओशो अपने शिष्यों के साथ मुंबई गए. वर्ष 1971 में ओशो को भगवान श्री रजनीश के नाम से पहचाना जाने लगा. ओशो के अनुसार ध्यान केवल एक अभ्यास नहीं है बल्कि जागरूकता की वह स्थिति है जिसे हर पल बनाए रखना आवश्यक है. ओशो ने 100 तरीकों से ध्यान लगाने के तरीके ईजाद किए थे. ओशो की सन्यास की व्याख्या मूल रूप से पारंपरिक पूर्वी दृष्टिकोण से संबंधित थी. जिसके अनुसार सन्यास में भौतिक संसार के त्याग की आवश्यकता होती है. उनके सत्रों में उनके अनुयायियों ने यौन संभोग में भी शामिल किया.
वर्ष 1974 में ओशो पुणे चले गए और उन्होंने वहां 7 साल का समय व्यतीत किया. इस दौरान उनके अनुयायियों की संख्या में बहुत विस्तार हुआ. वह हर दिन सुबह 90 मिनट का भाषण योग, जैन तंत्र और सूफीवाद आदि विषयों पर देते थे व अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं में अपना भाषण देते थे. उनके इन भाषणों का बाद में 50 भाषाओं में अनुवाद किया गया था. ओशो को समाज के रूढ़ीवादी गुट अनैतिक और विवादास्पद माना जाता रहा. उन्हें उस समय स्थानीय सरकार द्वारा कहीं परेशानियों का सामना करना पड़ा. जिसके कारण आश्रम को बनाए रखना मुश्किल हो रहा था और उन्होंने उसे स्थानांतरित करने का फैसला लिया.
जिसके बाद वह अपने दो हजार शिष्यों के साथ अमेरिका चले गए. वर्ष 1981 में सेंट्रल ओरेगॉन में 100 स्क्वायर मीटर का खेत लिया और उसे रजनीशपुरम नामक शहर बनाने की कवायद की. रजनीशपुरम अमेरिका में शुरू होने वाला सबसे बड़ा अध्यात्मिक समुदाय बन गया. लाखों की संख्या में उनके अनुयाई प्रतिवर्ष आश्रम में आते थे. आगामी समय में ओशो ने अपने शिष्यों से बातचीत को सीमित कर दिया था और उनके आश्रम की गतिविधियां भी गोपनीय हो गई. जिसके कारण सरकारी एजेंसियां ओशो और उनके अनुयायियों के लिए संदिग्ध हो गई.
ओशो से जुड़े विवाद | Osho Rajneesh Controversies
वर्ष 1980 के मध्य में, आश्रम और स्थानीय सरकारी समुदाय के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए और यह पता चला कि आश्रम के सदस्य वायरटैपिंग से मतदाता धोखाधड़ी और आग लगने से लेकर हत्या के लिए विभिन्न गंभीर अपराधों में शामिल थे. आश्रम के कई नेता पुलिस से बचने के लिए भाग गए. ओशो (राजनीश) ने भी संयुक्त राज्य अमेरिका से भागने की कोशिश की लेकिन 1985 में गिरफ्तार कर लिया गया. ओशो पर जुर्माना लगाया गया और संयुक्त राज्य अमेरिका छोड़ने पर सहमति व्यक्त कराई गई.
अगले कई महीनों में उन्होंने नेपाल, आयरलैंड, उरुग्वे और जमैका समेत दुनिया भर के कई देशों की यात्रा की लेकिन उन्हें लंबे समय तक किसी भी देश में रहने की अनुमति नहीं थी. ओशो को “गतिशील मध्यस्थता” की तकनीक पेश करने का श्रेय दिया जाता है जो असहनीय आंदोलन की अवधि के साथ शुरू होता है जो कैथारिस की ओर जाता है, और उसके बाद मौन और स्थिरता की अवधि होती है. यह तकनीक पूरी दुनिया से अपने शिष्यों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गई. ओशो और उनके अनुयायियों ने वास्को काउंटी, ओरेगन में एक समुदाय बनाया, जिसे 1980 के दशक में “राजनीशपुरम” कहा जाता था. अपने शिष्यों के साथ काम करते हुए, ओशो ने आर्थिक रूप से अस्थिर भूमि के विशाल एकड़ को एक संपन्न समुदाय में परिवर्तित कर दिया जिसमें सामान्य शहरी आधारभूत संरचना जैसे अग्नि विभाग, पुलिस, रेस्तरां, मॉल और टाउनहाउस शामिल थे.
ओशो का भारत आगमन | Coming Back to India
वर्ष 1987 में पुणे आश्रम लौट आए. उन्होंने ध्यान पढाना शुरू कर दिया और व्याख्यान दिए लेकिन वह एक बार सफलता का आनंद लेने में सक्षम नहीं था. फरवरी 1989 में उन्होंने “ओशो रजनीश” नाम लिया, जिसे उन्होंने सितंबर में “ओशो” तक छोटा कर दिया.
ओशो रजनीश के जीवन से जुड़ी कुछ ख़ास बातें | Osho Rajneesh Interesting Facts
ओशो एक विवादास्पद रहस्य दर्शी आध्यात्मिक गुरु थे। उनके जीवनकाल में बहुत सारी महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हुई।
ओशो की विरासत
ओशो के आश्रम की संपत्ति कई हजार करोड़ रुपए हैं। यहां तक कि किताबों समेत अन्य संसाधनों से आश्रम को 100 करोड़ रुपए रॉयल्टी भी मिलती है। ओशो की यह पूरी वसीयत ओशो इंटरनेशनल के नियंत्रण में है।
ओशो की प्रेमिका | Osho Rajneesh Love Story
कहा जाता है कि वह ओशो एक लड़की से बेहद प्रेम करते थे। उसकी तस्वीर ओशो के बटुए में रखी हुई थी। हालांकि समय ही उस लड़की की मृत्यु हो गई। ओशो एक बेहतरीन बांसुरी वादक भी थे लेकिन कहा जाता है कि उस लड़की की मृत्यु के बाद उन्होंने बांसुरी बजाना भी छोड़ दिया।
ओशो की कुण्डली
कहा जाता है कि एक बार ओशो जब अपने ननिहाल में थे तब उनकी नानी ने एक सुप्रसिद्ध ज्योतिषी से उनकी कुंडली बनाने के लिए कहा था। ज्योतिषी ने कहा कि वह 7 वर्ष बाद ही ओशो की कुंडली बनाएंगे क्योंकि उनका मानना था कि वह 7 वर्ष से ज्यादा जीवित नहीं रह पाएंगे। लेकिन ज्योतिषी ने आखिर में यह बात भी कही थी कि अगर यह लड़का 7 वर्ष से अधिक जीवित रह गया तो एक महान व्यक्तित्व बनकर उभरेगा और आखिरकार यही हुआ।
ओशो रजनीश ने पढ़ी थी डेढ़ लाख किताबें | Osho Rajneesh And Books
कहा जाता है कि ओशो रजनीश ने अपने जीवन काल में तकरीबन 1 लाख 50 हजार किताबें पढ़ी थी। ओशो ने दुनियाभर के लेखकों और दार्शनिकों के विचारों को पढ़ने और समझने का प्रयास किया और आखिर में उसे ही आत्मसात किया जिसे जरूरी समझा। और जो चीजें उन्हें पसंद नहीं आई उन्होंने उसे पीछे छोड़ दिया। कहा जाता है कि ओशो केवल पत्र और कविताएं लिखा करते थे। उन्होंने स्वयं कभी कोई किताब नहीं लिखी। हालांकि आज मार्केट में जितनी भी किताबें उनके नाम से बिक रही हैं वह सब उनके दिए गए भाषणों के स्रोत से ली गई हैं, उन्हें ओशो ने नहीं लिखा।
ओशो का अमेरिका प्रवास | Osho Rajneesh In America
साल 1980 में तत्कालीन सत्तासीन राजनीतिक पार्टी जनता पार्टी के साथ मतभेद होने के कारण ओशो अमेरिका चले गए। अमेरिका जाने के बाद इन्होंने वहां के ओरेगॉन प्रांत में अपने आश्रम की स्थापना की जिसे “रजनीशपुरम” नाम दिया गया। ओशो का आश्रम तकरीबन 65 हज़ार एकड़ में फैला हुआ था। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह जमीनें ओशो को उनके भक्तों ने खरीद कर दी थी और उन्हें यहां अपना आश्रम स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया था।
ओशो के शिष्य ओशो के इस आश्रम को एक शहर के रूप में रजिस्टर कराना चाहते थे लेकिन वहां के स्थानीय लोगों ने इसका विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। अमेरिका आने के बाद उसने 1981 से लेकर 1985 तक का समय यही व्यतीत किया। ओशो महंगी घड़ियां, महंगी रोल्स रॉयस कारें और डिजाइनर कीमती पहनावे के कारण हमेशा सुर्खियों में बने रहते थे। अमेरिका में भी ओशो का जीवन बेहद विवादास्पद रहा। साल 1985 में उनके आश्रम में सामूहिक फूड प्वाइजनिंग की घटना घटित हुई जिसके कारण ओशो को संयुक्त राज्य अमेरिका से बाहर निष्कासित कर दिया गया।
अक्टूबर 1985 में ही अमेरिकी सरकार ने ओशो के ऊपर प्रवास नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाकर उन्हें न्यायिक हिरासत में ले लिया गया। इस दौरान ओशो रजनीश को 4 लाख अमेरिकी डॉलर पेनाल्टी भुगतनी पड़ी और 5 साल तक अमेरिका वापस न लौट आने की भी सजा मिली। अमेरिका से बाहर निकलने के बाद ओशो कई सारे यूरोपीय देशों में गए लेकिन अमेरिकी सरकार के दबाव के कारण किसी भी राष्ट्र ने उन्हें शरण नहीं दी। तकरीबन 21 देशों ने ओशो को अपने देश से निष्कासित कर दिया। आखिरकार नेपाल में उन्हें कुछ समय के लिए जगह मिली। आखिरकर साल 1985 में ही वह भारत वापस लौट आए।
ओशो की मृत्यु | Osho Rajneesh Death
19 जनवरी 1990 को 58 वर्ष की आयु में ओशो ने अपनी आखिरी सांस ली. ओशो की मृत्यु को लेकर संदेहास्पद तथ्य मौजूद हैं. पुणे में उनका आश्रम आज ओशो इंटरनेशनल ध्यान रिज़ॉर्ट के रूप में जाना जाता है. यह भारत के मुख्य पर्यटन आकर्षण में से एक है और हर साल दुनिया भर से लगभग दो लाख लोगों आते है.
ओशो रजनीश की रहस्यमय मृत्यु | Osho Rajneesh Death Controversies
ओशो को देश निकाला देना और देश में उनका लौटना प्रतिबंधित कर देना यहां तक तो ठीक था लेकिन कहा जाता है कि तत्कालीन अमेरिकी सरकार ने ओशो को जान से मारने की पूरी प्लानिंग कर रखी थी। ऐसा कहा जाता है कि जेल में हिरासत के दौरान ओशो को जेल के अधिकारियों ने थेलियम नाम का धीमा जहर दे दिया था। जिसका असर 6 महीने में ही उनके ऊपर दिखाई देने लगा। साल 1987 में ओशो महाराष्ट्र के पुणे स्थित अपने आश्रम में लौट आए। आश्रम लौटने के बाद उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती गई और शारीरिक रूप से कमजोर होते गए। आखिरकार 19 जनवरी 1989 को ओशो की मृत्यु हो गई। “सू एपलटन” नाम की एक लेखिका ने ओशो की मृत्यु को लेकर एक पुस्तक लिखी है, जिसका शीर्षक है “दिया अमृत पाया ज़हर।” इस पुस्तक के भीतर से लेखिका ने रोनाल्ड रीगन सरकार द्वारा ओशो को थेलियम जहर देने की बात कही है।
ओशो रजनीश की मृत्यु के दिन की घटना | Osho Rajneesh Death Day
कहा जाता है, कि 19 जनवरी 1989 को ओशो के आश्रम से डॉक्टर गोकुल गोकाणी को फोन कॉल आया था। फोन कॉल पर उनसे कहा गया कि वह अपना इमरजेंसी किट लेकर तुरंत ओशो के आश्रम पहुंचे। कहा जाता है कि जब डॉक्टर ओशो के आश्रम पहुंचे तो उनसे उनसे यह कहा गया कि ओशो अपना देह त्याग रहे हैं। लेकिन उन्हें ओशो के पास नहीं जाने दिया गया इस दौरान वह आश्रम के बाहर ही टहलते रहे।घटना के तकरीबन कुछ घंटों बाद डॉक्टर गोकुल गोकाणी को यह खबर मिली कि ओशो की मौत हो गई है। वहां मौजूद लोगों ने डॉक्टर को ओशो का डेथ सर्टिफिकेट जारी करने के लिए कहा और साथ ही यह भी दबाव डाला कि मृत्यु के कारण में दिल का दौरा लिखा जाए।
ओशो की मौत के महज़ एक घंटे के अन्दर ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया जबकि उनके आश्रम में सन्यासियों की मृत्यु को उत्सव की तरह मनाया जाता था। कहा जाता है कि उस दौरान को ओशो की मां भी आश्रम में मौजूद थी लेकिन उन तक भी हो ओशो के मृत्यु की तुरंत खबर नहीं पहुंची। शायद इसीलिए कहा जाता है कि ओशो का जीवन जितना रहस्यमय था उनकी मृत्यु भी उतनी ही रहस्यमय थी। ओशो ने दुनिया को नव सन्यास की प्रेरणा दी और अपने दार्शनिक विचारों को खुलकर दुनिया के सामने रखा। भले ही इसका खामियाजा विरोध से लेकर उनकी मौत तक निकला।
पुणे में आश्रम की स्थापना | Osho Rajneesh Pune Ashram
साल 1970 में वे कुछ समय के लिए मुंबई रुके और अपने अनुयायियों को नव संन्यास की शिक्षा दी। और एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक की तरह कार्य प्रारंभ किया। यहीं से एक महिला लक्ष्मी कुरवा जो बाद में मां योगा लक्ष्मी बन गई थी। वही रजनीश की सचिव बन गई और मुंबई में स्थापित होने के लिए फंड इकट्ठा करना शुरू कर दिया। 1974 में रजनीश पुणे आ गए और यहां उन्होंने कोरेगांव पार्क इलाके में भव्य आश्रम की स्थापना की। जिसके बाद उनके अनुयायियों में विदेशियों की संख्या बढ़ने लगी। इस आश्रम को आज 'ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट' के नाम से जाना जाता है।
अमेरिका प्रवास और रजनीशपुरम की स्थापना | Osho Rajneesh In USA
तत्कालीन जनता पार्टी के साथ मतभेदों और शारीरिक अस्वस्थता के चलते ओशो 1980 में अमेरिका चले गए थे। स्वस्थ होने के बाद 1981 में वहां उन्होंने ओरेगॉन संयुक्त राज्य की वास्को काउंटी में रजनीशपुरम की स्थापना की। जो 64000 एकड़ में फैला था। यह भूमि 60 लाख डॉलर में खरीदी गई थी। यहां रजनीश मंदिर का शानदार सभागृह बनाया गया था। जिसमें 25000 लोगों के एक साथ बैठने की व्यवस्था थी। इसके अलावा रजनीशपुरम में सुख सुविधाओं से लैस होटल, जैन उद्यान अपनी पुलिस ,अपना न्यायालय, और अपना अस्पताल भी था। यहां शॉपिंग मॉल और हवाई अड्डा भी बनाया गया था। यहां उनके अनुयाई खेती भी करते थे। इस बंजर जगह को उनके अनुयायियों ने एक पूरे सुख सुविधाओं से लैस शहर में तब्दील कर दिया था। यहां करीब 7000 लोग रह रहे थे। उनके शिष्यों ने इस आश्रम को रजनीशपुरम नाम से शहर के तौर पर रजिस्टर्ड कराना चाहा था। परंतु स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया। उनके शिष्यों में विदेशी और भारतीय धनी और ग्लैमरस जीवन जीने वाले लोग शामिल थे।
दुनिया की सबसे महंगी रॉल्स रॉयस की 90 कारें | Osho Rajneesh Car Collection
ओशो का दर्शन पारंपरिक भारतीय विचारधारा से दूर भोग और ऐश्वर्य का जीवन जीने का उपदेश देता था। इसलिए उनके अनुयायियों में विदेशी धनी, और ग्लैमरस जीवन जीने वाले लोग शामिल थे। रजनीश के ऐसे समर्थकों ने उन्हें महंगे तोहफे चढ़ावे के तौर पर दिए गए। उनके पास दुनिया की सबसे महंगी कारों में से एक कही जाने वाली रॉल्स रॉयस की संख्या भी 90 थी। हालांकि वे ज्यादातर किसी एक कार में ही सफर किया करते थे। जब वह कार से सफर कर रहे होते तो उनके पीछे पूरी लंबी पंक्ति में बाकी की रॉल्स रॉयस कारें चल रही होतीं थीं। रजनीश को इस पर खासा गर्व था। वे कहते थे कि उनके भक्त चाहते हैं ,कि उनके पास 365 रॉल्स रॉयस कारें हों और वह हर दिन अलग-अलग कार में बैठे। इससे उनके भक्तों को सुख मिलता है और वह उनका सुख नहीं छीनना चाहते। वे महंगी घड़ियों, डिजाइनर कपड़ों, लक्जरी लाइफ और रॉल्स रॉयस कारों की वजह से वह हमेशा चर्चा में रहे। उस समय के सुपर स्टार विनोद खन्ना और परवीन बाबी उनके भक्तों में से एक थे। सुपर स्टार विनोद खन्ना ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण 4 साल संन्यासी बन उनके ओरेगॉन स्थित आश्रम में माली का कार्य करते हुए और लोगों के जूठे बर्तन धोते हुए बिताया था।
Osho Rajneesh FAQ
Ans. ओशो का असली नाम चंद्र मोहन जैन है।
Ans. ओशो ने आध्यात्मिक आंदोलन की शुरुआत की थी।
Ans. अमेरिका में वे रजनीशपुरम नामक शहर बनाना चाहते थे।
Ans. भारत में उनका आश्रम पुणे में है।