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आज है भगवान जगन्नाथ की 'स्नान पूर्णिमा', आखिर रथ यात्रा से 15 दिन पहले क्यों रहते हैं भगवान बीमार, बहुत रोचक है इतिहास, जानिए यहां

 

भारत की धार्मिक परंपराएं अपने आप में अनोखी और रहस्यमयी होती हैं। ओडिशा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर भी कुछ ऐसी ही अद्भुत परंपराओं के लिए जाना जाता है। यहां स्नान पूर्णिमा के दिन एक विशेष आयोजन होता है, जिसे देखकर पहली बार में कोई भी चकित रह जाए। इस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा का राजकीय स्नान होता है, और फिर भगवान बीमार पड़ जाते हैं। जी हां, भगवान स्वयं बीमार पड़ते हैं और फिर 15 दिनों तक भक्तों को दर्शन नहीं देते। इसे ‘अनासर काल’ कहा जाता है। आइए जानते हैं इस परंपरा का गहरा धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व।

क्या होती है स्नान पूर्णिमा?

हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को भगवान जगन्नाथ जी की विशेष स्नान यात्रा निकाली जाती है, जिसे ‘स्नान पूर्णिमा’ कहा जाता है। इस दिन भगवान को 108 कलशों से स्नान कराया जाता है। यह स्नान बहुत ही विशेष विधि से होता है जिसमें गंगाजल, चंदन, द्रव्य, पुष्प और औषधियों का प्रयोग किया जाता है। यह माना जाता है कि इस दिन भगवान जगन्नाथ का जन्म हुआ था, इसलिए यह ‘जन्म स्नान’ के रूप में भी मनाया जाता है।

भगवान जगन्नाथ क्यों पड़ते हैं बीमार?

भारी स्नान और जलविहार के बाद भगवान को ‘स्नान ज्वर’ हो जाता है। शास्त्रों और लोक परंपरा में इसे प्रतीकात्मक रूप से दर्शाया गया है कि भगवान भी हमारी तरह शरीरधारी हैं और उनके साथ भी मौसमी बदलाव असर डालते हैं। स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ जी को शीत लग जाती है और वे अस्वस्थ हो जाते हैं। इसके बाद भगवान को ‘अनासर गृह’ में ले जाया जाता है, जो मंदिर का एक विशेष कक्ष है। वहां उनकी सेवा एक वैद्य (राज वैद्य) द्वारा की जाती है और उन्हें विशेष जड़ी-बूटियों और औषधीय काढ़े का सेवन कराया जाता है।

15 दिन तक नहीं होते दर्शन: भक्त करते हैं प्रतीक्षा

भगवान के बीमार होने के कारण 15 दिनों तक भक्तों को दर्शन नहीं होते। इस समय को ‘अनासर काल’ कहा जाता है। इस दौरान भगवान को चंदन, तुलसी, औषधियों और आराम देने वाले भोज्य पदार्थ अर्पित किए जाते हैं। भगवान का श्रृंगार और पूजा का क्रम अंदर ही चलता है, लेकिन गर्भगृह बंद रहता है। भक्तगण मंदिर के बाहर से भगवान की जलझुलनी सेवा और उनका स्मरण करते हैं। यह समय भक्तों की आस्था की परीक्षा का समय होता है।

इसके बाद आता है रथ यात्रा का पावन पर्व

इन 15 दिनों की ‘अनासर अवधि’ के बाद भगवान जब स्वस्थ होते हैं, तो पुरी में भव्य रथ यात्रा का आयोजन होता है। इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ तीनों अलग-अलग रथों पर सवार होकर अपने मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) की ओर प्रस्थान करते हैं। यह यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को होती है, और इसे देखने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचते हैं।

धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

भगवान का बीमार पड़ना और फिर स्वस्थ होकर यात्रा पर निकलना — यह पूरी परंपरा भक्तों को यह सिखाती है कि ईश्वर भी हमारे जीवन के हर भाव से जुड़े हुए हैं। वे केवल पूजनीय नहीं, बल्कि हमारे जैसे अनुभूति करने वाले, हमारे दुख-दर्द समझने वाले सजीव और स्नेही रूप में हमारे सामने हैं। इसके अलावा यह परंपरा हमें सिखाती है कि धैर्य और प्रतीक्षा भी भक्ति का एक महत्वपूर्ण रूप है। जब भगवान स्वयं 15 दिन तक नहीं मिलते, तब भक्तों की श्रद्धा और भी प्रगाढ़ होती है।