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उच्च का ग्रह भी क्यों हो जाता है निष्क्रिय, जानिए छिपे कारण, सच जानकर चौंक जाएंगे

 

ज्योतिष विज्ञान में ग्रहों की स्थिति, गति और उनका भावों में प्रभाव व्यक्ति के जीवन को गहराई से प्रभावित करता है। अक्सर लोगों को यह भ्रम होता है कि अगर किसी कुंडली में कोई ग्रह उच्च का है, तो वह हमेशा शुभ फल ही देगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कई बार उच्च का ग्रह भी निष्क्रिय यानी 'डिबिलिटेटेड' की तरह व्यवहार करने लगता है? यह बात जितनी चौंकाने वाली है, उतनी ही महत्वपूर्ण भी है। इस लेख में हम जानेंगे कि जब कोई ग्रह उच्च का होते हुए भी निष्क्रिय या अशक्त हो जाता है, तो उसके पीछे क्या रहस्य छिपे होते हैं।

उच्च ग्रह का अर्थ क्या होता है?

जब कोई ग्रह अपनी सर्वोत्तम स्थिति में होता है, जैसे:

  • सूर्य मेष में

  • चंद्रमा वृष में

  • मंगल मकर में

  • बुध कन्या में

  • गुरु कर्क में

  • शुक्र मीन में

  • शनि तुला में

तो उन्हें उच्च का ग्रह कहा जाता है। इन स्थितियों में ग्रह अपने पूर्ण बल के साथ कार्य करते हैं और व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता, सफलता, समृद्धि और स्थिरता लाते हैं।

फिर क्यों हो जाते हैं निष्क्रिय?

अब बड़ा सवाल यह उठता है कि जब ग्रह उच्च का है तो वो निष्क्रिय क्यों हो जाता है? इसके पीछे कुछ गहरे ज्योतिषीय कारण होते हैं, जो अक्सर आम व्यक्ति की समझ से बाहर रहते हैं:

  1. दृष्टि दोष (Aspect Affliction):
    अगर उच्च का ग्रह शनि, राहु, केतु या मंगल जैसे पाप ग्रहों की दृष्टि में आ जाए, तो वह अपने फल नहीं दे पाता। उसकी शक्ति कम हो जाती है।

  2. संयोग में नीच ग्रह:
    अगर उच्च का ग्रह किसी नीच ग्रह के साथ युति में हो, तो वो अपनी ऊर्जा खोने लगता है। विशेषकर अगर वह छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो।

  3. अतिनिकटता से सूर्य के साथ युति (Combust):
    अगर उच्च का ग्रह सूर्य के बहुत करीब आ जाए, तो वह अस्त (combust) हो जाता है, जिससे उसकी शक्ति नष्ट हो जाती है।

  4. शत्रु ग्रहों की युति या दृष्टि:
    अगर उच्च ग्रह अपने शत्रु ग्रह के साथ युति में हो या उसकी दृष्टि में हो, तो वो प्रभावहीन हो सकता है।

  5. दशा और गोचर का प्रभाव:
    अगर उस समय उस ग्रह की दशा या गोचर नहीं चल रही हो, तो वह ग्रह निष्क्रिय रह सकता है, चाहे वह उच्च का ही क्यों न हो।

उदाहरण से समझें

अगर आपकी कुंडली में मंगल मकर राशि में है (जो कि उच्च का है), लेकिन वह 8वें भाव में स्थित है और उस पर शनि की दृष्टि है, तो वह अपनी ऊर्जा खो देगा। वह साहस, पराक्रम या भूमि-संपत्ति से जुड़ा सकारात्मक फल नहीं देगा।

निष्कर्ष

ग्रहों की स्थिति को केवल उच्च-नीच के आधार पर नहीं देखा जा सकता। उसकी वास्तविक शक्ति भाव, दृष्टि, युति, दशा और गोचर से निर्धारित होती है। इसलिए यह जरूरी है कि किसी योग्य ज्योतिषाचार्य से ही कुंडली का विश्लेषण करवाएं।