अच्छी यादें फीकी क्यों पड़ जाती हैं और बुरी हमेशा याद क्यों रहती हैं? वायरल फुटेज में कारण जान आप भी रह जाएंगे दंग
हम सबने महसूस किया है कि कोई दुखद अनुभव, कोई तकलीफ देने वाली बात या बुरी घटना हमें बरसों तक याद रहती है, जबकि खुशहाल लम्हे और अच्छी यादें धीरे-धीरे धुंधली हो जाती हैं। अक्सर लोग कहते हैं – "अच्छा तो जल्दी भूल जाते हैं, लेकिन बुरा कभी नहीं भूलता।" सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? क्या हमारे दिमाग में कुछ ऐसा होता है जो बुरी यादों को ज़्यादा गहराई से संजोता है? इस विषय पर वैज्ञानिकों ने काफी शोध किए हैं और उनके जवाब चौंकाने वाले हैं।
यादों का विज्ञान क्या कहता है?
यादों का सीधा संबंध हमारे मस्तिष्क में स्थित हिप्पोकैम्पस और अमिगडाला नामक भागों से होता है। हिप्पोकैम्पस यादों को व्यवस्थित करने का काम करता है, जबकि अमिगडाला भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से जुड़ा होता है। जब कोई घटना होती है, तो उसका असर इन दोनों पर पड़ता है – और यहीं से तय होता है कि वह याद हमारे दिमाग में कितनी गहराई से बैठने वाली है।
बुरी यादों में क्यों होती है ज्यादा पकड़?
जब कोई नकारात्मक या बुरा अनुभव होता है – जैसे किसी दुर्घटना की खबर, अपमान, असफलता या धोखा – तो हमारा शरीर उसे "fight or flight" यानी ‘लड़ो या भागो’ वाली स्थिति के रूप में पहचानता है। इससे शरीर में कोर्टिसोल और एड्रेनालिन जैसे स्ट्रेस हार्मोन तेजी से सक्रिय हो जाते हैं। ये हार्मोन हमारे दिमाग को सतर्क कर देते हैं और उस अनुभव को तेजी से और गहराई से याद रखने में मदद करते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार, यह प्रक्रिया हमारे जीवित रहने की प्रवृत्ति से जुड़ी होती है। अगर कोई बुरा अनुभव हमें भविष्य में खतरे से बचा सकता है, तो शरीर उसे याद रखने की कोशिश करता है – ताकि हम दोबारा वैसी गलती न करें। उदाहरण के लिए, अगर किसी ने कभी आग से जलने का दर्द महसूस किया हो, तो अगली बार वह आग के पास जाते ही सतर्क हो जाएगा।
अच्छी यादें क्यों हो जाती हैं धुंधली?
इसके विपरीत जब हम किसी सुखद अनुभव से गुजरते हैं – जैसे किसी दोस्त की शादी में मस्ती करना, किसी परीक्षा में सफलता पाना या किसी अपने के साथ बिताया अच्छा समय – तो ये घटनाएं शरीर में डोपामिन और ऑक्सीटोसिन जैसे हार्मोन को बढ़ाती हैं, जो सुख और संतुष्टि से जुड़ी होती हैं। लेकिन इनका प्रभाव ज्यादा देर तक नहीं टिकता, और शरीर इसे ‘सुरक्षित’ अनुभव मानता है – इसलिए उन्हें गहराई से याद रखने की जरूरत नहीं समझता।यही कारण है कि हम किसी पार्टी का स्वादिष्ट खाना तो जल्दी भूल जाते हैं, लेकिन वहीं किसी गलत बात पर मिली डांट हमें लंबे समय तक सालती रहती है।
सोशल मीडिया और डिजिटल लाइफ का असर
आज के समय में जब सोशल मीडिया हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है, बुरी खबरें और नेगेटिव कंटेंट ज्यादा तेजी से वायरल होते हैं। जब हम दिनभर ऐसी चीजें देखते हैं, तो हमारा दिमाग उन्हें ज़्यादा प्राथमिकता से स्टोर करता है। यह आदत हमारी मानसिक स्थिति पर भी असर डालती है और हमें नेगेटिव सोच की ओर झुका देती है।
समाधान क्या है?
हालांकि बुरी यादों को पूरी तरह मिटाना संभव नहीं है, लेकिन उन्हें काबू में रखा जा सकता है। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ध्यान (Meditation), सकारात्मक सोच, थेरैपी, और खुलकर बातचीत जैसे उपाय मदद कर सकते हैं। साथ ही, अच्छी यादों को बार-बार याद करना, उन्हें तस्वीरों, वीडियो या डायरी में संजोना भी दिमाग को पॉजिटिव दिशा में मोड़ने में सहायक होता है।