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जब मन में हो विश्वास, तब हर बाधा बनती है अवसर, हर विजय के पीछे बस एक तत्व है विश्वास

 

जीवन में सफलता पाने और हर चुनौती को पार करने के लिए सबसे पहले खुद पर विश्वास करना सीखना चाहिए, उसके बाद ईश्वर पर अटल भरोसा करना चाहिए। यही वह आधार है जिस पर समस्त सृष्टि टिकी हुई है। इतिहास और वर्तमान दोनों में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जहां बिना किसी भौतिक पूंजी के, केवल अपनी क्षमताओं और विश्वास की ताकत से लोग ऊंचाइयों को छूते हैं। व्यापार, विज्ञान, आध्यात्मिकता हर क्षेत्र में यही विश्वास इंसान को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

मानव जीवन में तीन प्रकार की शक्तियां कार्यरत रहती हैं — शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक। ये तीनों शक्तियां तभी फलदायक सिद्ध होती हैं जब मनुष्य के भीतर गहरा और अटूट विश्वास मौजूद हो, न केवल ईश्वर पर, बल्कि खुद पर भी। जब यह विश्वास उत्पन्न होता है, तो भीतर छुपी शक्तियां जागृत हो जाती हैं और व्यक्ति अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ संकल्प के साथ बढ़ने लगता है।

विश्वास की भूमिका केवल आध्यात्मिकता तक सीमित नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक खोजें भी इसी आधार पर टिकी होती हैं। हर खोज, हर आविष्कार के पीछे एक मजबूत विश्वास होता है कि यह संभव है। इसलिए विश्वास को शक्ति के बीज के समान माना जाता है, जो अगर उपयुक्त वातावरण मिले तो वह पेड़ की तरह फल-फूल सकता है।

जब व्यक्ति में विश्वास होता है, तो उसके जीवन के तीन महत्वपूर्ण तत्व सक्रिय हो जाते हैं — संकल्प, साहस और विजय। विश्वास ही उसे कठिन परिस्थितियों का सामना करने और अंततः जीत हासिल करने का साहस देता है। यही वजह है कि महान व्यक्तित्वों ने अपने जीवन में सबसे पहले विश्वास को अपनी सफलता का मूल मंत्र माना।

महाभारत की कथा में भी विश्वास की महत्ता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। युद्ध के समय कौरव और पांडव दोनों के सामने ईश्वर थे, परंतु दुर्योधन ने श्रीकृष्ण की परम सत्ता को स्वीकार नहीं किया, जबकि अर्जुन ने उन्हें अपने अनंत रूपों में देखा और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। श्रीकृष्ण की मदद से पांडवों को विजय मिली, जिसकी जड़ केवल विश्वास था। ईश्वर पर विश्वास ही स्वयं पर विश्वास की नींव होता है। जिन्हें अपने आप पर भरोसा नहीं होता, वे ईश्वर पर भी भरोसा नहीं कर पाते। रामचरितमानस में श्रीराम अपने भक्तों से कहते हैं —

“करउ सदा तिनकी रखवारी, जिमि बालक राखहि महतारी।” (जो मुझ पर विश्वास करता है, मैं उसकी वैसे ही रक्षा करता हूं जैसे माता अपने बच्चे की करती है।) जो व्यक्ति ईश्वर में विश्वास रखता है, चाहे वह ईश्वर को किसी भी रूप में देखता हो — मूर्ति, चित्र या किसी अन्य रूप में — उसी विश्वास के सहारे वह आध्यात्मिक और नैतिक विकास करता है। पत्थर की मूर्तियों में भी वह श्रद्धा और विश्वास होता है, जिससे व्यक्ति उन विभिन्न रूपों के माध्यम से ईश्वर को महसूस करता है। अतः जीवन में सफलता और खुशहाली पाने के लिए सबसे जरूरी है — अपने आप पर, अपनी क्षमताओं पर और ईश्वर पर विश्वास। जब यह विश्वास अडिग होगा, तभी व्यक्ति हर कठिनाई से निकल सकता है और अपने जीवन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा सकता है।