बचपन से बुढ़ापे तक कब डगमगाता है आत्मविश्वास? वायरल फुटेज में जानें हर उम्र के लोगों में टूटते हौसले के पीछे छिपे भावनात्मक कारण
आत्मविश्वास यानी खुद पर विश्वास—यह वो भाव है जो व्यक्ति को कठिन से कठिन हालात में भी संभालकर रखता है। लेकिन जीवन के अलग-अलग चरणों में यह आत्मबल कई बार डगमगाने लगता है। चाहे वह स्कूल जाता बच्चा हो, करियर के मोड़ पर खड़ा नौजवान हो या जीवन के उत्तरार्ध में पहुंचा कोई बुजुर्ग—हर उम्र में ऐसे मोड़ आते हैं जब आत्मविश्वास टूटता है और व्यक्ति खुद से ही सवाल करने लगता है।
बच्चों में कब डगमगाता है आत्मविश्वास?
बचपन वह समय होता है जब आत्मविश्वास की नींव रखी जाती है। यह उम्र सीखने, गलती करने और अनुभव लेने की होती है। लेकिन कुछ स्थितियां बच्चों का आत्मबल हिला सकती हैं।
पढ़ाई में पिछड़ना या बार-बार डांट सुनना: जब कोई बच्चा लगातार कम अंक लाता है या उसकी तुलना दूसरों से की जाती है, तो वह खुद को कमजोर मानने लगता है।
माता-पिता या अध्यापकों की उपेक्षा: यदि बच्चे की बातों को बार-बार अनसुना किया जाए, तो वह खुद को महत्वहीन समझने लगता है।
सामाजिक तुलना: अन्य बच्चों से तुलना करना, चाहे रंग, पहनावे या बोलने के ढंग पर हो, बच्चे के आत्म-सम्मान को गहरा आघात पहुंचा सकता है।
बच्चों को संवेदनशीलता, सहयोग और प्रोत्साहन की ज़रूरत होती है, ताकि वे अपने आत्मविश्वास को मज़बूत कर सकें।
नौजवानों में आत्मविश्वास कैसे टूटता है?
किशोरावस्था और युवावस्था में व्यक्ति अपने जीवन के सबसे निर्णायक मोड़ों से गुजरता है—चाहे वह शिक्षा का चुनाव हो, करियर की दिशा हो या निजी रिश्तों का प्रबंधन। यह दौर सबसे अधिक असमंजस और तनाव से भरा होता है।
कैरियर को लेकर असफलता: परीक्षा में फेल होना, नौकरी न मिलना या मनचाही फील्ड न चुन पाना आत्मबल पर भारी पड़ सकता है।
ब्रेकअप या रिश्तों में अस्थिरता: प्यार में असफलता या दोस्ती में धोखा आत्मसम्मान को बुरी तरह चोट पहुंचाता है।
परिवार या समाज की उम्मीदों का बोझ: जब नौजवान अपने मन के मुताबिक जीवन नहीं जी पाते और दूसरों की अपेक्षाओं में उलझ जाते हैं, तो उनका आत्मविश्वास बिखरने लगता है।
इस उम्र में सही मार्गदर्शन और भावनात्मक समर्थन आत्मविश्वास बनाए रखने में मदद करता है।
बुजुर्गों में आत्मबल क्यों होता है कमजोर?
जीवन की ढलती शाम में, जब व्यक्ति बहुत कुछ देखकर, सहकर थक चुका होता है, तब भी आत्मविश्वास डगमगा सकता है।
शारीरिक कमजोरी और बीमारी: बार-बार बीमार पड़ना या दूसरों पर निर्भर होना आत्मसम्मान को आहत करता है।
परिवार में उपेक्षा: जब बुजुर्गों की राय नहीं सुनी जाती या उन्हें अकेला छोड़ दिया जाता है, तो वे खुद को बोझ समझने लगते हैं।
पिछले फैसलों पर पछतावा: जीवन में किए गए चुनावों या गलतियों को लेकर पछताने से आत्मग्लानि बढ़ती है और आत्मविश्वास कम हो जाता है।
बुजुर्गों को यह महसूस कराना बेहद ज़रूरी है कि उनका अनुभव, विचार और उपस्थिति आज भी समाज और परिवार के लिए मूल्यवान है।