2 मिनट के इस शानदार वीडियो में जानिए 10 असरदार उपाय जिन्हें करते ही बरसने लगेगी नारायण की कृपा, कभी नहीं होगी धन की कमी 

 
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हिंदू धर्म में गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान हरि की पूजा करने से जीवन की समस्याओं से मुक्ति मिलती है। गुरुवार का दिन गुरु बृहस्पति का दिन होता है, इसलिए यह दिन विशेष रूप से ज्ञान, शिक्षा, समृद्धि और शांति से जुड़ा होता है। अगर कोई व्यक्ति परेशानियों का सामना कर रहा है तो वह गुरुवार के दिन मंत्रों का जाप करके अपनी समस्याओं से मुक्ति पा सकता है। गुरुवार के दिन कुछ खास मंत्रों का जाप करने से सभी तरह की परेशानियों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। तो आइए जानते हैं इस दिन किन मंत्रों का जाप करना चाहिए।

<a href=https://youtube.com/embed/K-gyz9D_qLE?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/K-gyz9D_qLE/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" style="border: 0px; overflow: hidden"" title="गरुड़ पुराण के अनुसार अच्छा वक्त आने से पहले मिलते हैं ये 8 संकेत। सकारात्मक संकेत | Garud Puran |" width="1250">
गुरुवार के दिन इन मंत्रों का जाप 
ॐ सर्वज्ञा सर्व देवता सवरूप अवतारा,
सत्य धर्म शांति प्रेमा स्वरूप अवतारा,

सत्यम शिवम् सुन्दरम स्वरुप अवतारा,
अनंत अनुपम ब्रह्म स्वरूप अवतारा,
ॐ परमानंद श्री शिरडी नाथाय नमः

दन्ताभये चक्र दरो दधानं,
कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया
लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।

ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।
यद्दीदयच्दवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।।

ॐ देवानां च ऋषीणां च गुरु कांचन संन्निभम्।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।।

ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:॥
ॐ गुं गुरवे नम:॥
ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:॥
ॐ ह्रीं क्लीं हूं बृहस्पतये नमः

ॐ अंगिरो जाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नो गुरु प्रचोदयात्।।

शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥

ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।
यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।।

ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।

ध्याये न्नृसिंहं तरुणार्कनेत्रं सिताम्बुजातं ज्वलिताग्रिवक्त्रम्।
अनादिमध्यान्तमजं पुराणं परात्परेशं जगतां निधानम्।।