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इन प्राचीन परम्पराओं से रखें अपनी सेहत का ख्याल और रहें स्वस्थ

 

हम अपने आप को स्वस्थ रखने के लिए बहुत सारे आयुर्वेदिक उपाय करते हैं हालाँकि हम जानते हैं की यह आयुर्वेदिक औषधियां और उपाय हमारे पूर्वजों की ही देन है और आजकल अक्सर लोग इन्ही औषधिक तरीकों का इस्तेमाल कर अपनी स्वस्थ सम्बन्धी समस्याओं को दूर करना चाहते हैं तो जब हम इन पुराने औषधिक तरीकों का इस्तेमाल कर अपने स्वास्थ में आयी समस्याओं को दूर करने के लिए तैयार हैं तो क्यों न उन्ही पुराने तरीकों का इस्तेमाल कर के खुद को स्वस्थ रखने की कोशिश करें जिससे इन औषधियों के इस्तेमाल करने की नौबत ही ना आये| जानते हैं कौन से हैं ये पारम्परिक तरीके जिनसे हम अपने स्वास्थ को सही रख सकते हैं|

अब लोग अपने घरों में चलते वक़्त पैरों में चप्पल पहन लेते हैं पर जो भी पुराने लोग हैं वो अपने घरों में चप्पलों का इस्तेमाल नहीं करते| घर में चप्पल पहन कर ना चलने का लोगों का कारण उनकी साफ़ सफाई है पर यह बात बहुत कम लोग जानते हैं की नंगे पैर चलने से आपके पैरों की नसों का मसाज होता है जिससे यह लाभ होता है कि वो नसे शरीर के जिन अंगों से जुडी हुई होती हैं वह अंग और भी सही तरह से और सक्रियता से काम करने लगते हैं|

प्राचीन सभ्यताओं के अनुसार हमें अपनी दिनचर्या में योग और व्यायाम जैसी चीज़ों को शामिल करना चाहिए क्यूंकि इससे व्यक्ति का शारीरिक, आध्यात्मिक, मानसिक और भावनात्मक विकास होता है| और ये सभी चीज़ें हमारे तन, मन, और आत्मा को एक सूत्र में बांधने का काम करते हैं| सदियों से प्राणायाम और ध्यान हमारे स्वास्थ सम्बन्धी समस्याओं के साथ साथ मानसिक तनाव को दूर करने के लिए भी बहुत कारगर सिद्ध हुआ है| इससे हमारे शरीर को ऊर्जा मिलती है और साथ ही यह हमारे मन को अनुशासित बनाने में भी कारगर सिद्ध होता है|

आज के वक़्त में डाइनिंग टेबल पर खाना खाने का काफी प्रचलन है पर पुराने समय में लोग ज़मीन पर बैठ कर खाना खाया करते थे| ज़मीन पर बैठ कर खाना खाना भी योगासन की ही एक मुद्रा है जिससे भोजन की पाचनक्रिया में मदद मिलती है| जब लोग मिटटी के बर्तनों में खाना पकाया करते थे तब के खाने अधिक पोषक तत्वों से भरपूर होते थे क्यूंकि मिटटी के बर्तनों में बने खानों में सभी प्रकार के खनिज आ जाते थे जो हमारे स्वास्थ के लिए काफी लाभदायक होता है|

प्राचीन विज्ञान के अनुसार हमें खाना अपने हाथ से ही खाना चाहिए क्यूंकि उससे भी भोजन पचाने की प्रक्रिया में मदद मिलती है क्यूंकि हमारी उंगलियों की मुद्राएं हमारी पाचन क्रिया पर प्रभाव डालती हैं|

वैसे तो आज के वक़्त में ये सारी विधियां तो नहीं अपना सकते क्यूंकि लोगों में काम की इतनी व्यस्तता है की उसके कारण मिटटी के बर्तन में खाना बनाने जैसी परम्पराओं को अपनी जीवनशैली में शामिल कर पाना थोड़ा मुश्किल है| मिटटी के बर्तन में खाना बनाने में ज़्यादा समय खर्च होता है और खाना बनाने में इतना समय खर्च करना आज की जीवनशैली के लिए मुमकिन नहीं है| पर फिर भी इनमे कुछ ऐसी चीज़ें भी शामिल हैं जिन्हे हम अपनी जीवन शैलीओ में शामिल कर सकते हैं जैसे की हर रोज़ व्यायाम करना और अपने घर में बिना चप्पलों के चलना जो की हमारे स्वास्थ के लिए लाभदायक है|