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हद से ज्यादा थकान हो सकती है मायस्थीनिया के कारण क्या है इसके लक्षण आइये जाने

 

जयपुर । मायस्थीनिया रोग या तो पैदाइशी होता है या फिर अत्यधिक शारीरिक परिश्रम या अत्यधिक इंफेक्शन के कारण होता है। कभी-कभी ज्यादा ठंड या अ‍त्यधिक गर्मी इस बीमारी के होने कारण बनता है । नवयुवतियां भी प्रथम मासिक धर्म के पहले या बाद में मायस्थीनिया की शिकार हो सकती हैं। कभी-कभी जबरदस्त उत्तेजना या तनाव के कारण भी मायस्थीनिया पनपने का खतरा बन सकता है  है। मायस्थीनिया किसी भी उम्र  की महिला या पुरुष को हो सकता है, लेकिन पुरुषों की तुलना में यह रोग महिलाओं में ज्यादा होता है और कम उम्र में होता है ।

मायस्थीनिया के मरीजों के खून में एसीटाइल कोलीन रेसेप्टर नामक रासायनिक तत्व की कमी होती है, इस रासायनिक तत्व का काम शरीर की मांसपेशियों को क्रियाशील व ऊर्जा से भरपूर बनाए रखना है। इस तत्व की कमी के कारण मांसपेशियां ढीली व सुस्त हो जाती हैं जिसके कारण नतीजा यह निकलता है की मायस्थीनिया के रोगी को हल्का चलने या काम करने से ऐसा लगता है कि जैसे शरीर से प्राण ही निकल रहे हों ।

मायस्थीनिया का रोग बढ़ जाता है तो आंख की पलकें ऊपर की तरफ उठना बंद कर देती हैं और दोनों आंखों को काफी देर तक खुली रखना मुश्किल होता है और आगे चलकर पलकों का गिरना स्थायी हो जाता है। आंखें शराबियों की तरह लगने लगती हैं, क्योंकि आंखों का पूरी तरह से बंद होना कठिन होता है। इसके रोगी को पानी पीने में और खाना खाते समय दम घुटने का सा अहसास होता है ।

कई बार जैसे प्रेडनीसोलोन दवा शरीर में नमक और पानी को एकत्र कर देती है जिससे शरीर और चेहरा सूजा हुआ दिखाई देता ,  हमारे देश में कुछ चिकित्सक मायस्थीनिया रोग में दवा से इलाज को ही प्राथमिकता देते हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि दवा से इलाज को प्राथमिकता देने से एक तरफ समय और पैसे की बरबादी तो होती ही है, साथ ही साथ थाइमस ग्रंथि में छुपे हुए कैंसर वाले ट्यूमर की शुरुआती दिनों में नजरअंदाजी हो जाती है जिसकी वजह से मरीज को अपनी जान देकर कीमत चुकानी पड़ती है, जबकि मायस्थीनिया का ऑपरेशन एक सुरक्षित व प्रभावी इलाज है ।