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क्या सच में विषैला होता है गेहूं, कहीं हम भी तो नहीं खा रहे ये विषाक्त

 

अभी कुछ समय पहले की ही बात है जब गेहूं ने काफी बुरे दिन देखने थे, इसकी खपत खत्म हो गई थी, लस मुक्त आहार पर लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हुई थी। वहीं कहीं भी जाओं कोई ना कोई गेहूं के छिपे हुए खतरों के लिए वार्निंग देता रहता है। लेकिन आखिर गेहूं का यह खतरा है क्या? हां, इसमें कार्ब्स की मात्रा काफी ज्यादा है और हम इसे सबसे ज्यादा कन्जयूम करते हैं, लेकिन क्या गेहूं सच में विषैला है?

यह भी अलग अलग लोगों पर निर्भर करता है। यह बिल्कुल यही है कि सैलिएक डिज़ीज से पीड़ित व्यक्ति के लिए गेहूं एक विषाक्त ही है। जब आपको सैलिएक रोग होता है, तो आपका इम्यून सिस्टम एंटीबॉडी पैदा करता है जो आंतों के अस्तर पर हमला करते है, जब आप लस युक्त कुछ भी खाते हैं। फिर आपके क्षतिग्रस्त आंतों को कई पोषक तत्वों, विशेष रूप से कैल्शियम और लोहे को अवशोषित करने में परेशानी होती है।

यह निश्चित रूप से चिंता का कारण है कि पिछले 20 वर्षों में सैलीएक बीमारी के मामले दोगुनी हो गए हैं, लेकिन फिर भी यह अभी पूरी पॉपुलेशन के सिर्फ एक प्रतिशत हिस्से को ही प्रभावित करता है। नेशनल फाउंडेशन फॉर सेलिएक अनेयरनेस के मुताबिक, संयुक्त राज्य में लगभग 18 मिलियन लोगों में नॉन-सैलिएक ग्लूटन सेंसिटिविटी है, यह ऐसी स्थिति है जिसमें ग्लूटन खपत अस्थमा, इरिटेबल बाउल सिंड्रोम जैसी किसी भी समस्या का कारण बन सकता है।

हालांकि लाखों ऐसे लोग मिल जाएंगे जो ये कह सकते हैं कि अपनी डाइट से गेहूं को हटाकर उन्हें राहत मिली है, मगर इसमें उन्मूलन आहार के अलावा कोई निश्चित परीक्षा नहीं है, इसलिए इसमें कुछ असहमति है कि क्या यह एक वास्तविक विकार है। गेहूं विरोधी आंदोलन में सबसे आगे थे मशहूर किताब ब्हीट बैली के लेखक विलियम डेविस। डेविस का मानना था कि सिर्फ सैलिएक और ग्लूटन सेंसिटिविटी से परेशान लोगों के लिए ही नहीं गेहूं हर किसी के लिए विषाक्त है।

इसका मुख्य कारण गेहूं का औद्योगिक आधुनिकीकरण है। 1950 के दशक में वैज्ञानिकों ने इसे मजबूत, कठिन और बेहतर बनाने के लिए इसका क्रॉस-प्रजनन शुरू कर दिया। वहीं डेविस का ये भी कहना है कि उन्होंने ग्लूटन प्रोटीन को भी बदल कर एक नया कम्पाउंड पेश किया है जिसकी वजह से गेहूं को पचाना लगभग इम्पॉसिबल है। में लगभग असंभव बना देता है। उन्होंने कहा कि ग्लियादिन, एक ऐसा इफेक्ट है जो गेहूं को एडिक्टिव बनाता है।

डेविस का तो यही कहना है कि हमें गेहूं को पूरी तरह से अवोइड कर देना चाहिए, क्योंकि यह विषाक्त है, लेकिन कुछ वैज्ञानिक समुदाय के सदस्य हैं जो डेविस के सिद्धांतों से पूरी तरह से सहमत नहीं हैं। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की वेलनेस लेटर में एक लेख इस तथ्य को बताता है कि भ्ले ही इसका कंजम्पशन कम हो, लेकिन मोटापे का स्तर फिर भी बढ़ रहा है, इसलिए सिर्फ गेहूं खलनायक नहीं हो सकता।

लेखकों का कहना है कि आधुनिक गेहूं के खिलाफ मामला बनाने के लिए पर्याप्त क्लीनिकल एवीडेंसेज नहीं हैं। यह सच है कि हम बहुत अधिक रिफाइन्ड गेहूं के उत्पादों का उपयोग करते हैं, लेकिन अनरिफाइन्ड गेहूं भी हमारे आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहीं कहा जा सकता है कि केवल समय और अधिक शोध ही यह बता पाएगा कि क्या ग्लूटन फ्री क्रेज वैज्ञानिक रूप से वैध है या नहीं।