अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन, वायरल वीडियो में देखे कैसे जन्म लेता है ये 'मैं' रुपी राक्षस और कैसे करे नियंत्रण ?
मनुष्य का जीवन अनेक भावनाओं, विचारों और व्यवहारों का समुच्चय है। इनमें से कुछ भावनाएं उसके विकास का कारण बनती हैं, तो कुछ विनाश का रास्ता खोल देती हैं। इन्हीं विनाशकारी भावनाओं में से एक है अहंकार (Ego) – जिसे भारतीय दर्शन में मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कहा गया है। यह वह मानसिक विकार है, जो व्यक्ति को आत्ममुग्धता में डुबोकर उसे दूसरों से श्रेष्ठ समझने की भ्रांति देता है, और धीरे-धीरे उसे अकेला और खोखला बना देता है।
अहंकार क्या है?
अहंकार का सरल अर्थ है – "मैं" और "मेरा" की अत्यधिक भावना। जब व्यक्ति यह मानने लगता है कि उसका ज्ञान, उसका धन, उसका रूप, उसकी शक्ति या उसका पद दूसरों से कहीं अधिक है, तब उसके भीतर अहंकार जन्म लेता है। अहंकार व्यक्ति को वास्तविकता से दूर ले जाता है, जहां वह आलोचना को सहन नहीं कर पाता, दूसरों की उपलब्धियों को नकारता है, और हर समय स्वयं की श्रेष्ठता का प्रदर्शन करना चाहता है।
अहंकार कैसे उत्पन्न होता है?
अतिरिक्त प्रशंसा और चापलूसी: जब किसी व्यक्ति को निरंतर सराहना मिलती है, विशेष रूप से बिना कारण के, तो वह स्वयं को विशेष समझने लगता है। यह धीरे-धीरे उसे घमंडी बना देता है।
सफलता का गलत अर्थ निकालना: कई बार सफलता के साथ विनम्रता आनी चाहिए, लेकिन कुछ लोग उसे अपनी महानता मान बैठते हैं। यही सफलता अहंकार में तब्दील हो जाती है।
ज्ञान या पद का दुरुपयोग: जो लोग समाज में किसी ऊंचे पद पर होते हैं या जिनके पास विशेष ज्ञान होता है, वे कई बार दूसरों को तुच्छ समझने लगते हैं।
असुरक्षा की भावना: यह सुनने में अजीब लगे, लेकिन कई बार अहंकार वास्तव में अंदरूनी असुरक्षा से उपजता है। व्यक्ति अपनी कमियों को छिपाने के लिए खुद को श्रेष्ठ दिखाने की कोशिश करता है।
अहंकार से क्या हानि होती है?
संबंधों में खटास: अहंकारी व्यक्ति अपने आसपास के लोगों को नीचा दिखाता है, जिससे रिश्ते खराब होते हैं।
सीखने की प्रक्रिया रुक जाती है: जब कोई स्वयं को पूर्ण समझने लगता है, तब वह किसी की सलाह या आलोचना को स्वीकार नहीं करता।
आध्यात्मिक प्रगति में बाधा: भारतीय दर्शन में कहा गया है कि जब तक 'मैं' रहेगा, तब तक 'ईश्वर' नहीं आ सकता।
अहंकार पर कैसे पाए काबू?
स्व-मूल्यांकन करें: नियमित रूप से आत्म-विश्लेषण करें – क्या मैं दूसरों से खुद को बेहतर समझ रहा हूं? क्या मैं आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पा रहा?
ध्यान और प्रार्थना: ध्यान (Meditation) से व्यक्ति अपने अंतर्मन को शांत करता है। यह अहं को कम करने में सहायक होता है।
सेवा का अभ्यास करें: बिना किसी अपेक्षा के दूसरों की सेवा करना, विशेष रूप से उन लोगों की जो सामाजिक रूप से कमजोर हैं, अहंकार को पिघलाता है।
संतों और महापुरुषों के विचार पढ़ें: स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, संत कबीर जैसे विचारकों के जीवन से प्रेरणा लेकर विनम्रता सीखी जा सकती है।
हर सफलता पर ईश्वर का धन्यवाद दें: यह मानें कि जो कुछ भी है, वह प्रभु की कृपा से है। जब "मैं" की जगह "वह" आता है, तब अहंकार स्वतः नष्ट हो जाता है।