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अगर आपको भी बार-बार अपमान, भय या असुरक्षा महसूस होती है? हो सकता है आप में भी हो अहंकार, वीडियो में जानिए कैसे 

 

आज की तेज़ रफ्तार दुनिया में इंसान जितना बाहरी दुनिया में आगे बढ़ रहा है, उतना ही वह भीतर से उलझता जा रहा है। आधुनिक जीवनशैली, प्रतिस्पर्धा और सोशल मीडिया की आभासी दुनिया ने हमें दूसरों से तुलना करने और खुद को श्रेष्ठ साबित करने की एक अंतहीन दौड़ में डाल दिया है। इस दौड़ में सबसे बड़ा शत्रु जो हमारे भीतर पल रहा है, वह है — अहंकार (Ego)।अहंकार कोई साधारण मनोभाव नहीं, बल्कि एक मानसिक संरचना है जो व्यक्ति को स्वयं की एक झूठी और अतिशयोक्तिपूर्ण छवि में बांध देता है। जब हम खुद को "सर्वश्रेष्ठ", "सही", "अन्य से बेहतर" मानने लगते हैं, तो हम धीरे-धीरे असुरक्षा, भय, घृणा और भ्रम की ओर बढ़ने लगते हैं — और इन सभी नकारात्मक भावनाओं की जड़ में अहंकार ही होता है।

<a style="border: 0px; overflow: hidden" href=https://youtube.com/embed/YBUXd5NCp9g?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/YBUXd5NCp9g/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" title="अहंकार का त्याग कैसे करें | ओशो के विचार | Osho Hindi Speech | अहंकार क्या है और इसे कैसे पराजित करे" width="1250">
अहंकार से उपजती है असुरक्षा
जैसे ही व्यक्ति अपने “मैं” को केंद्र में रखकर सोचने लगता है, उसे हर बात में अपनी प्रतिष्ठा, पहचान और श्रेष्ठता की चिंता सताने लगती है। जब कोई उससे असहमति जताता है, उसकी आलोचना करता है या उससे बेहतर प्रदर्शन करता है, तो वह भीतर ही भीतर असुरक्षित महसूस करने लगता है। यह असुरक्षा उसे या तो चुपचाप भीतर ही भीतर तोड़ती है, या फिर प्रतिक्रिया के रूप में आक्रोश और आक्रामकता के रूप में बाहर आती है।

भय और घृणा को जन्म देता है "मैं श्रेष्ठ" का भाव
अहंकारी व्यक्ति हमेशा इस भय में जीता है कि कोई उसकी बनाई हुई श्रेष्ठता की छवि को तोड़ न दे। यह भय उसे सतर्क नहीं, बल्कि शंकालु बना देता है। वह दूसरों की सफलता को अपने लिए खतरा समझता है और धीरे-धीरे उनसे दूरी बना लेता है या उनसे नफरत करने लगता है। इस तरह अहंकार सीधे तौर पर घृणा और प्रतिस्पर्धात्मक द्वेष को जन्म देता है।

गलत धारणाओं का पोषण करता है अहंकार
जब व्यक्ति स्वयं को 'पूर्ण' मानने लगता है, तो वह किसी भी नई बात को स्वीकारने में हिचकिचाता है। वह खुद को बदलने, सीखने और आत्ममंथन से दूर हो जाता है। ऐसे में वह अपने आसपास की दुनिया और रिश्तों को अपनी ही सोच के फ्रेम में देखने लगता है, जिससे उसकी धारणाएं सीमित और अक्सर गलत बन जाती हैं। यह झूठा नजरिया रिश्तों में खटास, संवादहीनता और भावनात्मक दूरी का कारण बनता है।

समाधान क्या है?
अहंकार को पराजित करने का पहला कदम है — स्वीकार करना कि हम भी गलत हो सकते हैं। आत्मनिरीक्षण और विनम्रता इस मानसिक जड़ता को तोड़ सकती है। ध्यान, साधना, आत्मचिंतन और अच्छे विचारों की संगति इंसान को खुद से जोड़ती है और दूसरों को स्वीकार करने की शक्ति देती है।यह समझना ज़रूरी है कि विनम्रता कोई कमजोरी नहीं बल्कि उच्च आत्मबोध की निशानी है। जो व्यक्ति भीतर से मजबूत होता है, उसे अपनी श्रेष्ठता जताने की आवश्यकता नहीं पड़ती। ऐसे व्यक्ति सहज रूप से दूसरों को स्थान देते हैं, सीखते हैं और सच्चे अर्थों में सम्मान अर्जित करते हैं।