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शरीर को क्रायोजेनिक्स में रखना नहीं है आसान इसके लिए कई चुनौतियों का करना पड़ता है सामना

 

जयपुर। लोगों में आज कर अजब गजब सा शौक चढ़ा है और यह एक विज्ञान में बहुत ही शानदार तकनीक है। इस तकनीक का नाम है क्रायोजेनिक्स। यह फिहलाल तो अमरीका और कनाड़ा में ही है। इस तकनीक से 150 से अधिक लोगों ने अपने शरीर तरल नाइट्रोजन से ठंडा कर रखवाए हैं। इसके अलावा 80 लोगों ने सिर्फ़ अपना मस्तिष्क सुरक्षित रखवाया है। इस तकनीक से पूरे शरीर को जमा कर सुरक्षित रखने में 1,60,000 डॉलर ख़र्च होते है। मस्तिष्क को सुरक्षित रखने में 64,000 डॉलर का ख़र्चा आता है। बता दे कि इस तकनीक से कई सालों तक शरीर को सुरक्षित किया जा सकता है।

वैज्ञानिकों इस तकनीक पर दावा किया कि इस तकनीक से इंसान के मृत शरीर को जीवित किया जा सकता है। हालांकि इस तकनीक पर दावा नहीं किया जा सकता है। क्योंकि इस पर फिहलाल शोध चल रहा है। इस तकनीक में कई चुनौतियां भी है।  क्रायोजेनिक तकनीक से शरीर सुरक्षित रखने के समर्थक तीन बातों पर ज़ोर देते हैं। पहली चुनौति यह है कि किसी को क़ानूनी तौर पर मृत घोषित करने में समय लगता है और मरने के तुरंत बाद यह ध्यान रखा जा सकता है कि मस्तिष्क के ऑक्सीजन स्तर को बरक़रार रखे। इससे होने वाला नुक़सान कम किया जा सकता है।

इस चुनौति में को पार करने के लिए जब एक ख़रगोश के मस्तिष्क में क्रायो-प्रोटेक्टेंट तरल डालकर कोशिकाओं को नष्ट होने से बचा लिया गया था। दूसरी चुनौति यह है कि शरीर को ठंडा रखने से कोशिकाओं की रासायनिक प्रक्रियाओं की रफ़्तार धीमी हो जाती है। इससे शरीर के अंग ख़राब नहीं होते है अगर यह तुरंत नहीं किया गया तो हो सकता है कि शरीर सड़ सकता है और बदबू मार सकता है और तीसरी और अंतिम चुनौति है कि इस तरह ठंडा रखने से शरीर को जो नुक़सान होता है, भविष्य में नैनोटेक्नोलॉजी की मदद से उसे ठीक किया जा सकता है लेकिन इस तरह कि तकनीक फिहलाल इजात नहीं की गई है।