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क्या तेज़ गर्मी में बड़ जाती है आर्थराइटिस के मरीज़ों परेशानी,जाने क्या है एक्सपर्ट की राय 

 

देश के कई इलाकों में तापमान बढ़ रहा है। भीषण गर्मी के कारण लोगों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। गर्मी के कारण त्वचा संबंधी समस्याएं, आंखों में जलन जैसी समस्याएं आम हैं, लेकिन क्या बढ़ती गर्मी गठिया के मरीजों के लिए भी खतरनाक है? क्या गर्मी गठिया के मरीजों की परेशानी बढ़ा सकती है? आइए इस बारे में विशेषज्ञों से जानते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि गठिया के कारण मरीज के जोड़ों में दर्द रहता है। कई मामलों में यह दर्द बहुत तेज हो जाता है और मरीज इसे सहन नहीं कर पाता। गठिया का दर्द उस जगह होता है जहां दो हड्डियां आपस में जुड़ती हैं। जैसे घुटने, कोहनी और कंधे, हालांकि गठिया के कारण सबसे ज्यादा परेशानी घुटनों में होती है। गठिया के कई प्रकार होते हैं, जिनमें ऑस्टियोआर्थराइटिस और रुमेटॉयड गठिया सबसे आम हैं।

कुछ दशक पहले तक गठिया बुजुर्गों में ज्यादा होता था, लेकिन अब यह समस्या कम उम्र में भी होने लगी है। क्या अत्यधिक गर्मी का असर होता है? हमने वैशाली स्थित मैक्स अस्पताल के ऑर्थोपेडिक्स और जॉइंट रिप्लेसमेंट विभाग के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. अखिलेश यादव से बात की। डॉ. अखिलेश कहते हैं कि गर्मी के मौसम में गठिया के मरीजों को कोई खास परेशानी नहीं होती, लेकिन अचानक गर्मी और सर्दी नुकसान पहुंचा सकती है। उदाहरण के लिए अगर गठिया का मरीज चिलचिलाती धूप से अचानक घर आकर एसी में बैठ जाए तो उसे परेशानी हो सकती है। अचानक और लंबे समय तक एसी में बैठने से गठिया की समस्या बढ़ने का खतरा रहता है। जिन लोगों को गठिया की गंभीर समस्या है, उन्हें शरीर को अच्छी तरह से ढककर एसी में बैठना चाहिए।

अगर इस मौसम में जोड़ों के दर्द की समस्या बढ़ रही है तो मरीज को तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए। बढ़ते गठिया के मरीज पिछले कुछ सालों से भारत में गठिया के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में हर साल 14 से 15 फीसदी लोग इस समस्या के इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाते हैं। पिछले 2 दशकों में गठिया के मरीजों की संख्या में 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। खराब जीवनशैली, खान-पान की खराब आदतें और गलत पोस्चर भी इस बीमारी के बढ़ने की बड़ी वजह हैं। कैसे करें इससे बचाव डॉ. अखिलेश यादव कहते हैं कि एक बार किसी व्यक्ति को गठिया हो जाए तो उसे सिर्फ नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाइयां दी जाती हैं और कई तरह की थेरेपी भी हैं। अगर समस्या गंभीर है तो मरीज की सर्जरी की जाती है।