ChatGPT कितनी बिजली और पानी का करता है इस्तेमाल? सीईओ सैम ऑल्टमैन ने बताया
क्या आपने कभी सोचा है कि जब आप कोई प्रश्न पूछते हैं, तो ChatGPT के पीछे कितनी ऊर्जा और संसाधन खर्च होते हैं? एक अमेरिकी रिपोर्ट ने इस सवाल का जवाब दिया है और नतीजे चौंकाने वाले हैं। AI-ChatGPT जैसी तकनीकों को काम करने के लिए न केवल बिजली, बल्कि पानी की भी आवश्यकता होती है। यहाँ हम आपको बताएंगे कि ऐसा क्यों होता है और हमारे पर्यावरण के लिए इसका क्या अर्थ है।
वाशिंगटन पोस्ट और यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, रिवरसाइड की रिपोर्ट के अनुसार, जब आप ChatGPT से कोई प्रश्न पूछते हैं, तो उस प्रश्न का उत्तर तैयार करने में लगभग 500 मिलीलीटर पानी लगता है। यानी ChatGPT का उत्तर तैयार करने में आधा लीटर पानी खर्च होता है। हालाँकि, यह पानी मशीन द्वारा सीधे इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि AI को ठंडा रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
पानी की आवश्यकता क्यों है?
ChatGPT जैसे AI मॉडल बड़े कंप्यूटर सर्वर पर चलते हैं जिन्हें डेटा सेंटर कहा जाता है। ये सर्वर निरंतर प्रोसेसिंग करते हैं और इस प्रक्रिया के दौरान बहुत अधिक गर्मी उत्पन्न करते हैं। इस गर्मी को कम करने के लिए, इन डेटा सेंटर को ठंडा रखना आवश्यक है और इसके लिए पानी का उपयोग किया जाता है। सिस्टम दो प्रकार के होते हैं। पहला है वाष्पीकरण शीतलन प्रणाली। अन्य एयर कंडीशनिंग इकाइयाँ एसी आधारित प्रणालियाँ हैं। इस प्रक्रिया में, प्रत्येक प्रश्न का उत्तर तैयार करने में लगभग आधा लीटर पानी की खपत होती है।
AI कितनी बिजली की खपत करता है?
AI को चलाने के लिए पानी के साथ-साथ बिजली की भी आवश्यकता होती है। एक रिपोर्ट के अनुसार, OpenAI के ChatGPT का जितना अधिक उपयोग किया जाएगा, बिजली की माँग उतनी ही अधिक बढ़ेगी। यदि करोड़ों लोग प्रतिदिन ChatGPT का उपयोग करते हैं, तो एक पूरे शहर की बिजली की आवश्यकता हो सकती है। इससे पर्यावरण पर भारी दबाव पड़ सकता है, खासकर उन देशों में जहाँ बिजली कोयले या अन्य स्रोतों से उत्पन्न होती है।
पर्यावरण पर AI का प्रभाव
AI की बढ़ती लोकप्रियता एक ओर तकनीक में क्रांति ला रही है, वहीं दूसरी ओर यह पर्यावरण के लिए खतरा भी बन रही है। कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ पहले से ही पानी की कमी है, डेटा सेंटर जल संकट को और बढ़ा सकते हैं। AI सिस्टम को चलने के लिए निरंतर बिजली की आवश्यकता होती है, जिससे ऊर्जा स्रोतों पर दबाव पड़ता है। यदि बिजली नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त नहीं होती है, तो कार्बन उत्सर्जन बढ़ जाता है।