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कब से आरंभ हो रही नवरात्रि, जानिए कलश स्थापना का मुहूर्त और विधि

 

ज्योतिष न्यूज़डेस्क: व्रत त्योहारों को हिंदू धर्म में खास माना गया हैं वही पितरों को समर्पित श्राद्ध पक्ष आरंभ हो चुका हैं इसके समापन के बाद ही शक्ति स्वरूप मां दुर्गा की आराधना का महापर्व आरंभ हो जाएगा। आश्विन मास में पड़ने वाले नौ दिनों के दुर्गा पूजा के इस पर्व को शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता हैं ये पर्व देशभर में मनाया जाता हैं। इन दिनों में देवी मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती हैं इसके लिए घरों में कलश स्थापना और अखंड ज्योतिष प्रज्जवलित की जाती हैं

इस बार शारदीय नवरात्रि 7 अक्टूबर को गुरुवार के दिन से आरंभ होने जा रही हैं और 15 अक्टूबर को समाप्त होगी। इसी दिन दशहरे का त्योहार भी मनाया जाएगा। तो आज हम आपके नवरात्रि में कलश स्थापना के मुहूर्त और विधि के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं। 


जानिए कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त—
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती हैं और इसी दिन अखंड दीपक भी जलाया जाता हैं इसके बाद नौ दिनों तक ये कलश स्थापित रहता हैं आखिरी दिन इसका विसर्जन किया जाता हैं इस बार शारदीय नवरात्रि पर कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 9:33 बजे से 11: 31 बजे तक रहेगा। इसके बाद दोपहर 3:33 बजे से शाम 5:05 बजे तक रहेगा। मगर बेहतर है कि आप सुबह के समय ये स्थापना करें। 

जानिए पूजन की विधि—
कलश स्थापना के लिए सबसे पहले उस स्थान की सफाई करें जहां आप मां की पूजा करना चाहते हैं इसके बाद एक चौकी पर नया लाल वस्त्र बिछाकर माता की तस्वीर स्थापित करें और श्री गणेश को याद करते हुए उनसे अपने पूजन कार्य को निर्विघ्न पूर्ण करने की प्रार्थना करें। इसके बाद सबसे पहल देवी की तस्वीर के सामने अखंड ज्योति जला दें। इसके बाद एक मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालें उसमें जौ के बीच डालें एक कलश या घर के लोटे को अच्छे से साफ करके उस पर कलावा बांधें।

स्वास्तिक बनाएं और कलश में थोड़ा गंगाजल डालकर पानी भरें। इसके बाद कलश में साबुत सुपारी, अक्षत और दक्षिणा डालें। फिर कलश के ऊपर आम के पांच पत्ते लगाएं। और कलश को बंद करके इसके ढक्कन के ऊपर अनाज भरें। अब एक जटा वाले नारियल को लाल चुनरी से लपेटकर अनाज भरे ढक्कन के ऊपर रखें। अब इस कलश को जौ वाले मिट्टी के पात्र के बीचोबीच रख दें। इसके बाद सभी देवी देवताओं का आवाह्न करें और माता के समक्ष नौ दिनों की पूजा और व्रत का संकल्प करें। इसके बाद विधिवत पूजा करें।