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चैत्र नवरात्रि: सौभाग्य की देवी महागौरी, जाने कैसे प्राप्त हुआ इनको गौर वर्ण

 

जयपुर। देवी महागौरी ने हिमालय पर्वत में  शिवजी को पति रुप में पाने के लिए कठिन तपस्या की जिस कारण से इनका शरीर धूल- मिट्टी के कारण मलिन हो गया इनकी तपस्या पूरी होने के बाद भगवान शिव ने गंगाजल से इनको स्नान कराया जिसके कारण देवी को गौर वर्ण की प्राप्त हुई। जिससे इनका नाम महागौरी पड़ा।

इनकी पूजा नवरात्रि में आठवें दिन महागौरी शक्ति के रुप में की जाती है। इनके नाम से ही इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण का माना जाता  है, जिस कारण से इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है।

माता महागौरी की पूजा करें इस मंत्र से

श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दघान्महादेवप्रमोददा॥

  • देवी महागौरी का गौर वर्ण होने के साथ ही ये श्वेत वस्त्र धारण करती है व श्वेत आभूषण से श्रृंगार करती हैं। इनकी चार भुजाए, जिसमें देवी की दाहिना हाथ अभय मुद्रा में तो दूसरे हाथ मे त्रिशूल  धारण किये है बाए हाथ मे डमरू ओर नीचे का बाया हाथ वर मुद्रा मे अभय देने वाला है। देवी महागौरी का वाहन वृषभ है इसीलिए वृषारूढ़ा भी कहा गया है।

  • माता महागौरी की पूजा करने से सिद्धियो की प्राप्ति होती है। ये अपने भक्तो के दुख को दूर करती है व इनकी उपासना करने से हर असंभव काम संभव हो जाते है। देवी की आराधना करने से भक्त को अमोघ ओर शुभ फल मिलता है और जीवन की सारी परेशानी व बाधा का अंत होता है।

  • देवी महागौरी की पूजा नवरात्रि की अष्टमी तिथि के दिन की जाती है, इनको नारियल का भोग लगाया जाता है। नैवेद्य रूप में नारियल ही ब्राह्मण को दिया जाता है।