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नवरात्रि में कन्या पूजन और भोज के समय ध्यान रखें ये बातें, माता रानी की होगी कृपा

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म शास्त्रों में नवरात्रि को विशेष माना गया हैं नवरात्रि के अवसर पर कन्या पूजन या कन्या भोज खास होता हैं नवरात्रि में देवी मां दुर्गा के सभी भक्त छोटी कन्याओं को देवी के अवतार के रूप में पूजते हैं हिंदू धर्म के लोगों की सदियों से कन्या पूजन और कन्या भोज करने की परंपरा हैं

कन्या भोज विशेष रूप से कलश स्थापना और नौ दिनों का चक्र रखने वालों के लिए महत्वपूर्ण होता हैं। परंपरा अनुसार भविष्य पुराण और देवी भागवत पुराण में नवरात्रि के आखिरी दो दिनों में कन्या पूजन का वर्णन किया गया हैं इस विवरण के अनुसार कन्या भोज के बिना नवरात्रि का त्योहार अधूरा रहता हैं, तो आज हम आपको इससे जुड़ी जानकारी प्रदान कर रहे हैं। 

नवरात्रि पर्व के किसी भी दिन या किसी भी समय कन्या पूजा कर सकते हैं मगर कथा अनुसार अष्टमी और नवमी, नवरात्रि के अंतिम दो दिन कन्या पूजन के लिए अच्छे होते हैं जिन नौ कन्याओं को कन्या भोज के लिए सभी कन्याओं को अलग अलग नामों से पुकारा जाता हैं उन्हें मां दुर्गा के नौ रूपों के रूप में पूजा जाता हैं कथाओं और कहानियों में लड़कियों की उम्र के अनुसार उनके नाम भी दिए गए हैं। दो साल की बच्ची कन्या कुमारी, तीन साल की कन्या त्रिमूर्ति, चार साल की कन्या कल्याणी, पांच साल की कन्या रोहिणी, छल साल की कन्या कालिका, सात साल की कन्या चंडिका, आठ साल की कन्या शाम्भवी, नौ साल की कन्या को दुर्गा और दस साल की कन्या को सुभद्रा माना जाता हैं। 

मान्यताओं के अनुसार 2 से 10 साल की उम्र की नौ लड़कियों को भोज के लिए बुलाया जाता हैं क्योंकि ये संख्या मां दुर्गा के अवतारों का प्रतिनिधित्व करती हैं। भोजन प्रात: स्नान करने के बाद ही करना चाहिए और कन्याओं के पैर धोना भी जरूरी हैं इसलिए पैर साफ करने के बाद ही उन्हें बिठाकर भोजन कराएं। साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि जिस जगह पर भोज होगा वो भी साफ हो। वही कन्या भोज में एक छोटे लड़के को नौ लड़कियों के साथ रखने की प्रथा हैं बालक को भैरव बाबा का रूप या लंगूर कहा जाता हैं। इस भोजन में प्याज और लहसुन का परहेज करें।