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नवरात्रि में करें विन्ध्येश्वरी चालीसा का पाठ, करियर में मिलेगी खूब तरक्की

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्कः हिंदू धर्म में पर्व त्योहारों को बहुत ही खास माना जाता है वही अभी नवरात्रि का पर्व आने वाला है यह त्योहार मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा आराधना को समर्पित होता है इस दौरान भक्त देवी मां के हर रूप को प्रसन्न करने के लिए उपवास रखते हैं और उनकी विधि विधान से पूजा करते हैं मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान अगर पूरी निष्ठा और विश्वास के साथ माता रानी की पूजा की जाए तो देवी मां प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाती है

इस साल शारदीय नवरात्रि का आरंभ 26 सिंतबर से होने जा रहा है और इसका समापन 5 अक्टूबर को जाएगा। ऐसे में नवरात्रि के नौ दिनों में अगर देवी मां दुर्गा के विन्ध्येश्वरी रूप की पूजा आराधना की जाए और उनकी विशेष चालीसा का पाठ किया जाए तो देवी मां जल्द प्रसन्न होकर अपनी कृपा भक्तों पर बरसाती है जिससे करियर में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती है और खूब तरक्की भी मिलती है तो आज हम आपके लिए लेकर आए है मां विन्ध्येश्वरी चालीसा का संपूर्ण पाठ, तो आइए जानते हैं। 

मां विन्ध्येश्वरी चालीसा-

॥ दोहा ॥
नमो नमो विन्ध्येश्वरीए
नमो नमो जगदम्ब ।
सन्तजनों के काज मेंए
करती नहीं विलम्ब ॥

जय जय जय विन्ध्याचल रानी।
आदिशक्ति जगविदित भवानी ॥

सिंहवाहिनी जै जगमाता ।
जै जै जै त्रिभुवन सुखदाता ॥

कष्ट निवारण जै जगदेवी ।
जै जै सन्त असुर सुर सेवी ॥

महिमा अमित अपार तुम्हारी ।
शेष सहस मुख वर्णत हारी ॥

दीनन को दुरूख हरत भवानी ।
नहिं देखो तुम सम कोउ दानी ॥

सब कर मनसा पुरवत माता ।
महिमा अमित जगत विख्याता ॥

जो जन ध्यान तुम्हारो लावै ।
सो तुरतहि वांछित फल पावै ॥

तुम्हीं वैष्णवी तुम्हीं रुद्रानी ।
तुम्हीं शारदा अरु ब्रह्मानी ॥

रमा राधिका श्यामा काली ।
तुम्हीं मातु सन्तन प्रतिपाली ॥

उमा माध्वी चण्डी ज्वाला ।
वेगि मोहि पर होहु दयाला ॥ 10

तुम्हीं हिंगलाज महारानी ।
तुम्हीं शीतला अरु विज्ञानी ॥

दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता ।
तुम्हीं लक्ष्मी जग सुख दाता ॥

तुम्हीं जाह्नवी अरु रुद्रानी ।
हे मावती अम्ब निर्वानी ॥

अष्टभुजी वाराहिनि देवा ।
करत विष्णु शिव जाकर सेवा ॥

चौंसट्ठी देवी कल्यानी ।
गौरि मंगला सब गुनखानी ॥

पाटन मुम्बादन्त कुमारी ।
भाद्रिकालि सुनि विनय हमारी ॥

बज्रधारिणी शोक नाशिनी ।
आयु रक्षिनी विन्ध्यवासिनी ॥

जया और विजया वैताली ।
मातु सुगन्धा अरु विकराली ॥

नाम अनन्त तुम्हारि भवानी ।
वरनै किमि मानुष अज्ञानी ॥

जापर कृपा मातु तब होई ।
जो वह करै चाहे मन जोई ॥ 20

कृपा करहु मोपर महारानी ।
सिद्ध करहु अम्बे मम बानी ॥

जो नर धरै मातु कर ध्याना ।
ताकर सदा होय कल्याना ॥

विपति ताहि सपनेहु नाहिं आवै ।
जो देवीकर जाप करावै ॥

जो नर कहँ ऋण होय अपारा ।
सो नर पाठ करै शत बारा ॥

निश्चय ऋण मोचन होई जाई ।
जो नर पाठ करै चित लाई ॥

अस्तुति जो नर पढ़े पढ़अवे ।
या जग में सो बहु सुख पावे ॥

जाको व्याधि सतावे भाई ।
जाप करत सब दूर पराई ॥

जो नर अति बन्दी महँ होई ।
बार हजार पाठ करि सोई ॥

निश्चय बन्दी ते छुट जाई ।
सत्य वचन मम मानहु भाई ॥

जापर जो कछु संकट होई ।
निश्चय देविहिं सुमिरै सोई ॥ 30

जा कहँ पुत्र होय नहिं भाई ।
सो नर या विधि करे उपाई ॥

पाँच वर्ष जो पाठ करावै ।
नौरातन महँ विप्र जिमावै ॥

निश्चय होहिं प्रसन्न भवानी ।
पुत्र देहिं ता कहँ गुणखानी ॥

ध्वजा नारियल आन चढ़ावै ।
विधि समेत पूजन करवावै ॥

नित प्रति पाठ करै मन लाई ।
प्रेम सहित नहिं आन उपाई ॥

यह श्री विन्ध्याचल चालीसा ।
रंक पढ़त होवे अवनीसा ॥

यह जन अचरज मानहु भाई ।
कृपा दृश्टि जापर होइ जाई ॥

जै जै जै जग मातु भवानी ।
कृपा करहु मोहि निज जन जानी ॥ 40