×

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन जरूर करें ये काम, बिना रुकावट पूरे होंगे हर काम

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्कः हिंदू धर्म में जन्माष्टमी के त्योहार को बेहद ही खास माना जाता है इस दिन भक्त भगवान की पूजा पाठ करते हैं और उपवास भी रखते हैं पंचांग के अनुसार हर वर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का पर्व देशभर में धूमधाम के साथ मनाया जाता है इस दिन श्रीकृष्ण के बाल गोपाल स्वरूप की पूजा आराधना की जाती है और उपवास भी रखा जाता है

मान्यता है कि इस दिन पूजा पाठ और उपवास के साथ कुछ विशेष उपायों को अपनाया जाए तो भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं उनकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं ऐसे में जन्माष्टमी के दिन पूजा आराधना के बाद श्रीकृष्ण चालीसा का पाठ करना चाहिए इससे भक्तों को लाभ प्राप्त होगा तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं श्री कृष्ण चालीसा पाठ। 

श्रीकृष्ण चालीसा-

॥ दोहा ॥

बंशी शोभित कर मधुरएनील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्बा फलएपिताम्बर शुभ साज॥
जय मनमोहन मदन छविएकृष्णचन्द्र महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनयएराखहु जन की लाज॥

चौपाई
जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नट.नागर नाग नथैया।कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।आओ दीनन कष्ट निवारो॥

वंशी मधुर अधर धरी तेरी।होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो।आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोलए चिबुक अरुणारे।मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
रंजित राजिव नयन विशाला।मोर मुकुट वैजयंती माला॥

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।कटि किंकणी काछन काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे।छवि लखिए सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलकए अलक घुंघराले।आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पानए पुतनहि तारयो।अका बका कागासुर मारयो॥

मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला।भै शीतलए लखितहिं नन्दलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई।मसूर धार वारि वर्षाई॥
लगत.लगत ब्रज चहन बहायो।गोवर्धन नखधारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो।कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा।सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहारयो।कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥

मात.पिता की बन्दि छुड़ाई।उग्रसेन कहं राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो।मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी।लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भिन्हीं तृण चीर सहारा।जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥

असुर बकासुर आदिक मारयो।भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥
दीन सुदामा के दुःख टारयो।तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे।दुर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखि प्रेम की महिमा भारी।ऐसे श्याम दीन हितकारी॥

भारत के पारथ रथ हांके।लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाये।भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥
मीरा थी ऐसी मतवाली।विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा सांप पिटारी।शालिग्राम बने बनवारी॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो।उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करी तत्काला।जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला।बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥

अस नाथ के नाथ कन्हैया।डूबत भंवर बचावत नैया॥
सुन्दरदास आस उर धारी।दयादृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो।क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै।बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥

॥ दोहा ॥
यह चालीसा कृष्ण काएपाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फलएलहै पदारथ चारि॥