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राजस्थान के जिस किले में हुई Humraaz फिल्म की शूटिंग वहा रखी दुनिया की सबसे बड़ी तोप, लेकिन चली सिर्फ एक बार, वीडियो में जाने वजह 

 

मनोरंजन न्यूज़ डेस्क - राजस्थान की राजधानी जयपुर के जयगढ़ किले में एक ऐसी तोप रखी हुई है, जिसे एशिया की सबसे बड़ी तोप माना जाता है। किले के अनुरूप ही इसका नाम 'जयबाण' रखा गया है। इस तोप के बारे में सुनकर दूर बैठा दुश्मन भी कांप उठता है। हैरानी की बात यह है कि इसका आज तक इस्तेमाल नहीं हुआ, इसके पीछे एक बड़ी कहानी है।

<a href=https://youtube.com/embed/TqcRw_2SJQk?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/TqcRw_2SJQk/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" style="border: 0px; overflow: hidden"" title="Jaigarh Fort Jaipur History | जयगढ़ किले का इतिहास, स्थापना, वास्तुकला, खजाना, विश्व की सबसे बड़ी तोप" width="695">
ये है तोप का इतिहास
18वीं सदी में बनी ये तोप जयपुर के राजाओं के लिए ब्रह्मास्त्र से कम नहीं थी। इस तोप को महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय के शासनकाल में युद्ध और सुरक्षा के लिए बनाया गया था। इसे आमेर के पास जयगढ़ किले के डूंगर गेट पर रखा गया था। इसके निर्माण के लिए 1720 के आसपास एक खास फैक्ट्री बनाई गई थी जहां लोहे को पिघलाने से लेकर तोप को ढालने तक की सारी प्रक्रियाएं वहीं होती थीं। इसके प्रमाण आज भी फैक्ट्री में मौजूद हैं। ये तोप इतनी विशाल है कि इसे उठाने में हाथी भी थक जाए। इस तोप की लंबाई 20.2 फीट है और इसका वजन 50 टन है और इसे गतिशीलता के लिए दो पहियों पर रखा गया था लेकिन फिर भी इसे ले जाना बहुत मुश्किल है।


तोप में 100 किलो बारूद का इस्तेमाल किया गया
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जयबाण तोप के परीक्षण के लिए 100 किलो बारूद और 50 किलो लोहे का इस्तेमाल किया गया था। परीक्षण इतना खतरनाक था कि गोला 35 किलोमीटर दूर जाकर गिरा, जहां एक गड्ढा बन गया और बारिश के पानी से तालाब बन गया। इस तोप की खासियत यह है कि इसका कभी इस्तेमाल नहीं किया गया। अब तोप को मौसम से बचाने के लिए इसके ऊपर टिन की छत बनाई गई है।


पर्यटकों की पसंदीदा जगह
यह तोप आज भी किले में सुरक्षित रखी गई है और आज तक इस पर जंग का एक भी दाग ​​नहीं लगा है। गुलाबी नगरी जयपुर में वैसे तो घूमने के लिए कई जगहें हैं, लेकिन सबसे मशहूर जयबाण तोप है। इसे देखने के लिए हजारों पर्यटक यहां आते हैं। इसकी प्राचीनता और विशालता देखकर वे खुश हो जाते हैं। विजयादशमी के दिन इस तोप की विशेष पूजा की जाती है।