पीटर ओ’टूल: ऑस्कर का सबसे बड़ा रिकॉर्ड इनके नाम, 8 बार नामांकित लेकिन कभी नहीं जीता
नई दिल्ली, 13 दिसंबर (आईएएनएस)। दुनिया ने पीटर ओ’टूल को 14 दिसंबर 2013 को खो दिया। हॉलीवुड का वो अभिनेता जिसने अभिनय को सिर्फ निभाया नहीं, बल्कि उसे सांस की तरह जिया। लॉरेंस ऑफ अरेबिया जैसी महान फिल्मों से दुनिया भर में पहचाने जाने वाले ओ’टूल का जीवन उतना ही नाटकीय था जितना उनके किरदार।
आयरलैंड में जन्मे पीटर का शुरुआती जीवन गरीबी, उथल-पुथल और अनिश्चितताओं से भरा था। थिएटर के मंच से हॉलीवुड तक का सफर आसान नहीं था, लेकिन उनमें एक आग थी। कला के लिए पागलपन जैसी ललक स्पष्ट दिखती थी। यही उन्हें भीड़ से अलग कर देती थी। वे जब कैमरे के सामने आते, तो लगता कि किरदार उनके भीतर की किसी दूसरी दुनिया से बाहर आ रहा है। उनके अभिनय में ऐसा तेज था कि दर्शक उनकी आंखों में छुपा दर्द, गुस्सा, रोमांच और बेचैनी सब महसूस कर लेते थे।
लेकिन जितनी रोशनी परदे पर थी, उतनी ही तन्हाई उनके निजी जीवन में थी। शराब ने उनके स्वास्थ्य को छलनी कर दिया, रिश्तों ने उन्हें टूटने से बचाने की कोशिश की लेकिन वे खुद से लगातार लड़ते रहे। उनके अंदर एक कलाकार था जो हर दिन दुनिया से आगे निकल जाना चाहता था, और एक इंसान था जो धीरे-धीरे अपनी ही परछाइयों में खोता जा रहा था। यही विरोधाभास पीटर ओ’टूल को इतना असाधारण बनाता है।
वे आठ बार ऑस्कर के लिए नामांकित हुए, लेकिन एक बार भी जीत नहीं पाए। फिर भी हॉलीवुड ने एक अनोखा सम्मान दिया—ऑनरेरी एकेडमी अवॉर्ड (मानद ऑस्कर अवॉर्ड)—क्योंकि ओ’टूल ने वह हासिल किया था जो ट्रॉफियां नहीं माप सकतीं और वह है दर्शकों के दिलों में बसने का हुनर। उन्होंने यह पुरस्कार अनमने भाव से स्वीकार किया, क्योंकि उन्हें लगता था कि अभी भी उनके भीतर बहुत कुछ बाकी है, कि उनका सफर अभी खत्म नहीं हुआ। यह जिद, यह जज्बा, यही उन्हें प्रेरक बनाता है।
अंतिम दिनों में वे अस्पताल के कमरे में थे, जहां रोशनी की जगह खामोशी का साया था। लेकिन दुनिया जानती थी कि यह वही आदमी है जिसने कैमरे की हर रोशनी को अपने अंदर जज्ब कर लिया था। 14 दिसंबर को जब उनका दिल धड़कना बंद हुआ, तो हॉलीवुड ने सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि एक दौर खो दिया—वह दौर जब कला दिल की गहराइयों से निकलती थी, और अभिनेता किरदारों की आत्मा बन जाते थे।
पीटर ओ’टूल की कहानी इसलिए दुखद है क्योंकि यह उस प्रतिभा की कहानी है जो अपनी ही आग में धीरे-धीरे जलती गई। वे चले गए, पर पर्दे पर उनकी आंखें आज भी चमकती हैं, जैसे कह रही हों—असली कलाकार कभी पूरी तरह विदा नहीं होते।
--आईएएनएस
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