Mrs Movie Review: देश के हर हाउसवाइफ और हसबैंड को देखनी चाहिए ये फिल्म, रिव्यु में जाने घर-घर की इस कहानी में क्या है खास
मनोरंजन न्यूज़ डेस्क - आज घर में औरतें काम नहीं करेंगी, हम खुद खाना बनाएंगे। तुम बस 8-10 प्याज काट लो, मटन धो लो, थोड़ा लहसुन काट लो, मसाले निकाल लो, बर्तन धो लो, वरुण वडोला इस फिल्म में यही डायलॉग बोलते हैं। फिर वो मटन पकाते हैं और किचन की ऐसी हालत कर देते हैं कि जिन औरतों से उन्होंने कहा था कि वो आज काम नहीं करेंगी। उन्हें किचन ठीक करने में कई घंटे लगाने पड़ते हैं। ये एक सीन इस पूरी फिल्म और कई गृहणियों की कहानी बयां करता है और इस कहानी को देखने के लिए ये फिल्म देखना जरूरी है। ये फिल्म जी5 पर आई है। इसमें कुछ कमियां हैं लेकिन इस फिल्म का इरादा साफ है और इसलिए ये देखने लायक है।
कहानी- ये फिल्म मशहूर मलयालम फिल्म 'द ग्रेट इंडियन किचन' की रीमेक है। ये कहानी है ऋचा यानी सान्या मल्होत्रा की जो एक डांसर है लेकिन उसकी अरेंज मैरिज एक डॉक्टर से हो जाती है। इसके बाद उसे अपना डांस भूलकर सिर्फ घर के कामों में डूबना पड़ता है। वो अपने सपनों को भूल जाती है। उसे ऐसा लगता है जैसे वो इस घर में सिर्फ़ काम करने के लिए आई है। इसके बाद क्या वो अपने सपनों को साकार करने की हिम्मत जुटा पाती है? इसके लिए आपको ये फिल्म देखनी चाहिए।
फिल्म कैसी है?
ये एक अच्छी फिल्म है, जिससे कई लोग खुद को जोड़ पाएंगे। ऐसा कई घरों में होता है और इसीलिए ऐसी कहानियां बनती हैं। फिल्म शुरू से ही मुद्दे पर आ जाती है और फिल्म की शुरुआत सान्या की शादी से होती है, लेकिन फिर घर का बहुत ज़्यादा काम दिखाया जाता है जो एक पॉइंट के बाद इरिटेटिंग हो जाता है। आपको लगता है कि कहानी आगे बढ़नी चाहिए, फिर कहानी आगे बढ़ती है और सान्या के ज़रिए आप उन करोड़ों गृहणियों की भावनाओं को महसूस करते हैं जो अपना ज़्यादातर समय किचन में बिताती हैं।
ये फिल्म आपको बहुत कुछ महसूस कराती है लेकिन ऐसा सिर्फ़ आख़िरी आधे घंटे में होता है। इस हिस्से को बढ़ाया जाना चाहिए था या फिल्म की लंबाई कम होनी चाहिए थी लेकिन कुल मिलाकर फिल्म अपने उद्देश्य में सफल होती है और आप समझ जाते हैं कि ये क्या कहना चाहती है और उम्मीद है कि ये फिल्म कुछ महिलाओं की ज़िंदगी में बदलाव ज़रूर लाएगी।
अभिनय- सान्या मल्होत्रा का काम कमाल का है. वो बहुत स्वाभाविक लगती हैं. सान्या एक हाउसवाइफ का रोल भी बखूबी निभा सकती हैं। बहुत से लोग शायद इसकी कल्पना भी न कर पाएं लेकिन एक अच्छा एक्टर वही होता है जो वो करे जिसकी उम्मीद न की जाती हो। यहां सान्या ने वैसा ही किया है और बेहतरीन तरीके से किया है, ऐसा नहीं लगता कि वो मिसफिट हैं। कंवलजीत सिंह सान्या के ससुर का रोल कर रहे हैं और उन्हें देखना भी मजेदार है, वो एक मंझे हुए एक्टर हैं और उन्होंने एक बार फिर ये साबित कर दिया है। निशांत दहिया ने सान्या के पति दिवाकर का रोल बखूबी निभाया है और वो भी काफी नेचुरल लगे हैं।
डायरेक्शन- आरती कड़व ने फिल्म को डायरेक्ट किया है और उनका डायरेक्शन अच्छा है। आखिरी आधे घंटे में जो असर वो छोड़ती हैं, उसे उन्हें फिल्म शुरू होने के बाद थोड़ा बाद में लाना चाहिए था वरना फिल्म छोटी कर देनी चाहिए थी। हरमन वावेजा और अनु सिंह चौधरी ने फिल्म लिखी है। हरमन ने फिल्म को प्रोड्यूस भी किया है। ऐसी कहानी चुनने के लिए उनकी तारीफ होनी चाहिए, राइटिंग अच्छी है और असर डालती है। कुल मिलाकर ये फिल्म इसलिए देखनी चाहिए क्योंकि ये एक ऐसे हिस्से की कहानी कहती है जो काफी अहम है।