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Jigna Vora Real Story: टॉप क्राइम रिपोर्टर से मर्डरर, अंडरवर्ल्ड लिंक्स, बायकला जेल और फिर सब इल्ज़ामों से बरी होकर आप तक पहुँची जिगना वोरा की कहानी जानिए तथ्यों के आधार पर

 

मुंबई में क्राइम इंवेस्टीगेटर एडिटर का खून हो जाता है और पुलिस मामले की तफ्तीश शुरू कर देती है. पड़ताल के दौरान पुलिस को ऐसे सुराग मिलने लगते हैं जिनसे उसे पता चलता है कि जिस पत्रकार की हत्या की गई है उसकी एक साथी महिला क्राइम रिपोर्टर का अंडरवर्ल्ड से कनेक्शन है. उस रिपोर्टर ने कुछ दिन पहले ही अंडरवर्ल्ड डॉन का सात्क्षात्कार लिया था. पुलिस को पता चलता है कि उसी साथी रिपोर्टर को अंडरवर्ल्ड के साथ मिलकर पत्रकार ही हत्या की साजिश के आरोप में गिरफ्तार कर लेती है. कहानी जिगना वोरा की वेबसीरीज "स्कूप" की है, तो आइए जानते हैं कि कौन है जिगना वोरा जिनकी सच्ची कहानी पर ये वेब सीरीज "स्कूप" आधारित है 

क्राइम रिपोर्टर और जर्नलिस्ट जिगना वोरा ने अपनी क़िताब ‘Behind Bars in Byculla: My Days in Prison’ में उस खौफ़नाक मंजर को याद किया है, जो आपको स्कूप के ट्रेलर में भी दिखा होगा और यही इस क्राइम ड्रामा का आधार है. ये कोई फ़िक्शन नहीं बल्कि एक रीयल कहानी है, जिसने एक पत्रकार के जीवन को झकझोर कर रख दिया और कई सालों तक उनके बरी ना होने तक उनका पीछा किया. ये एक सच्ची कहानी, जिसने पत्रकार जिगना वोरा को तोड़ कर रख दिया था। 

यहां देखें "Scoop" का ट्रेलर 

कौन है जिगना वोरा

जिगना वोहरा एक क्राइम रिपोर्टर थी जिन्होंने फ्री प्रेस जर्नल, मिड डे , मुंबई मिरर और एशियन एज के लिए काम किया है. वे उस हत्याकांड मे आरोपी थीं जिस पर स्कूप वेब सीरीज बनी है और इसी वजह से वे आजकल सुर्खियों में हैं.  इन दिनों वे वेब सीरीज और फिल्मों में लेख और शोधकार्य कर रही हैं. इसके अलावा वे हीलिंग प्रैक्टिस, टैरोकार्ड रीडिंग और ज्योतिष पर भी काम कर रही हैं.

जिगना वोरा की शुरुवाती लाइफ 

जिगना जीतेन्द्र वोरा का जन्म 1974 में हुआ था। जिगना वोरा घाटकोपर मुंबई की रहने वाली हैं। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से संबद्ध डीजी रूपारेल कॉलेज से कानून में स्नातक की डिग्री हासिल की, इसके बाद उन्होंने केजे सोमैया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, मुंबई से जनसंचार में डिप्लोमा प्राप्त किया। केजे सोमैया में, वेली थेवर, उनके टीचर और टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए काम करने वाले एक प्रसिद्ध क्राइम रिपोर्टर ने क्राइम रिपोर्टिंग में उनकी रुचि जगाई। 1998 में उन्होंने शादी कर ली और भरूच, गुजरात चली गईं। अपने पति से अलग होने के बाद, वह 2004 में अपने चार साल के बेटे के साथ गरोडिया नगर, घाटकोपर में अपने मायके लौट आईं। अकेले माँ के रूप में अपने बेटे की परवरिश करते हुए, उन्होंने मीडिया में अपना करियर बनाने का फैसला किया।

जिगना वोरा का परिवार 

फ्री प्रेस जर्नल, मिड डे , मुंबई मिरर और एशियन एज के लिए काम कर चुकी जिगना वोरा एक गुजराती परिवार से हैं। 

माता-पिता और भाई-बहन

जिगना वोरा की मां हर्षबेन का 9 जून 2015 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। जिगना के पिता दुबई में काम करते थे। उनके दादा का नाम तुलसीदास हरगोविंदास है।

पति और बच्चे

जिगना वोरा ने रूपारेल कॉलेज से स्नातक करने के बाद 4 दिसंबर 1998 को शादी कर ली। यह जिगना के माता-पिता के आदेश पर एक अरेंज मैरिज थी जिसके लिए उन्होंने एक प्रतिष्ठित लॉ फर्म में इंटर्नशिप छोड़ दी थी। जिगना के माता-पिता ने इन्हें बताया था कि इनका पति एक इंजीनियर था और गुजरात के भरूच में एक प्रिंटिंग प्रेस चलाता था। बाद में, उसे पता चला कि ये दावे झूठे थे, जिसके कारण शादी में उथल-पुथल मच गई और फिर अलगाव हो गया। जिगना का एक बेटा है. 2009 में, जब उनका बेटा आठ साल का था, वोरा ने उसे पंचगनी बोर्डिंग स्कूल में दाखिला दिलाया।

जिगना वोरा के धर्म/धार्मिक विचार

जिगना वोरा स्वर्ग फाउंडेशन के संस्थापक और ट्रस्टी, आध्यात्मिक गुरु सतीश काकू की अनुयायी हैं। जब वह जे डे की हत्या में कथित संलिप्तता के लिए सलाखों के पीछे थीं, तब भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर के साथ उनकी बातचीत के बाद उनमें आध्यात्मिक परिवर्तन भी आया। 

जिगना वोरा का करियर 

अपनी औपचारिक शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्हें नवंबर 2005 में फ्री प्रेस जर्नल (एफपीजे) में कोर्ट रिपोर्टर के रूप में पहली नौकरी मिली, उसने वहां 10 महीने तक काम किया। उनका पहला काम आर्थर रोड जेल के अंदर स्थित टाडा अदालत में गैंगस्टर अबू सलेम के मामले को कवर करना था। उन्होंने अगले छह वर्षों में अपराध रिपोर्टिंग में अपना नाम कमाया, इस दौरान वह नौसिखिया रिपोर्टर से एक अंग्रेजी akhbar में ब्यूरो के उप प्रमुख तक पहुंच गईं। 

मुंबई मिरर में जिगना वोरा 

जिगना 2006 में एक कोर्ट रिपोर्टर के रूप में मुंबई मिरर में शामिल हुईं, जहां उनका निर्धारित बीट के तहत काला घोड़ा मुंबई में सत्र न्यायालय मिला था। उन्होंने अपनी पहली अंडरवर्ल्ड स्टोरी दिसंबर 2005 में कवर की थी जब खतरनाक गैंगस्टर छोटा राजन की पत्नी सुजाता निकालजे को मकोका के तहत एक बिल्डर के खिलाफ जबरन वसूली की धमकी देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद, वोरा ने सत्र न्यायालय के वरिष्ठ संवाददाता के रूप में मिड-डे के लिए काम करना शुरू कर दिया। जे डे . विवादास्पद एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा के बारे में उनकी बड़ी कहानी ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। 

डेक्कन क्रॉनिकल में जिगना वोरा 

मई 2008 में, वह डेक्कन क्रॉनिकल के अख़बार एशियन एज में शामिल हुईं। एक रिपोर्टर के रूप में, उन्होंने फ़हमीदा (बम विस्फोट की आरोपी), मारिया सुसाइराज (सनसनीखेज नीरज ग्रोवर हत्या मामले में आरोपी), जया छेड़ा (अपने पति की हत्या की आरोपी) आदि जैसे विभिन्न आरोपियों की कहानियाँ लिखी थी। तिलकनगर में गैंगस्टर फरीद तनाशा की हत्या पर रिपोर्टों की एक श्रृंखला, गुजरात के दक्षिणपंथी आतंकवादी समूहों की गतिविधियों पर लेख, और अंधेरी में एक भूमि घोटाला, जिसके केंद्र में एक माकन मालिक था जिसे मृत घोषित कर दिया गया था, जबकि वो विटविक जीवन में जिन्दा था, इन रिपोर्ट्स ने जिगना को बहुत शोहरत और नाम कमा कर दिया था।

एशियन एज ब्यूरो में जिगना वोरा 

2011 जे डे की हत्या में कथित संलिप्तता के लिए उनकी गिरफ्तारी से पहले वह एशियन एज ब्यूरो के उपप्रमुख के पद पर कार्यरत थीं। 

जेल के बाद जिगना वोरा 

जेल में आध्यात्मिक से जुड़ने के बाद वो लोगों में आध्यात्मिक जागरूकता फैलाने का कार्य करने लगी। वह घर पर ध्यान कक्षाएं आयोजित करती हैं और उपचार तकनीकों पर निजी परामर्श प्रदान करती हैं। वह एक पेशेवर टैरो कार्ड रीडर भी हैं जो अपने घर पर सत्र आयोजित करती हैं।

जे डे की हत्या में जिगना वोरा 

11 जून 2011 को मुंबई के पवई स्थित हीरानंदानी गार्डन में अज्ञात हमलावरों द्वारा की गई गोलीबारी में जे डे की हत्या कर दी गई थी। बाद में, हमलावरों की पहचान अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन के हिटमैन के रूप में की गई. 25 नवंबर 2011 को जिगना जो उस समय एशियन एज ब्यूरो के उप प्रमुख के रूप में कार्यरत थी, को सनसनीखेज हत्या में उनकी कथित भूमिका के लिए पुलिस हिरासत में ले लिया गया था। पुलिस ने दावा किया कि हत्या की साजिश रचने के लिए वोरा ने राजन को डे के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी, जिसमें उसके निवास और उसकी बाइक का लाइसेंस प्लेट नंबर भी शामिल था। उन पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं जैसे हत्या, आपराधिक साजिश और सबूतों को नष्ट करने और शस्त्र अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए थे।

जांच अधिकारी हिमांशु रॉय ने उन पर हत्या के आरोप लगाने के लिए राजन और वोरा के बीच फोन कॉल के टेलीफोन रिकॉर्ड का हवाला दिया। पुलिस ने यह भी दावा किया कि डे की हत्या का कारण वोरा की पेशेवर प्रतिद्वंद्विता थी। हालाँकि, पुलिस के पास जिगना के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं था। उन्हें मुंबई की बायकुला महिला जेल में नौ महीने के लिए रखा गया था। 

27 जुलाई 2012 को जिगना वोरा को एक विशेष अदालत ने यह कहते हुए जमानत दे दी थी कि इन्हें एक बच्चे की देखभाल करनी है और वह अकेली माता-पिता है। विशेष मकोका अदालत के न्यायाधीश एसएम मोदक ने यह भी कहा कि उनका कोई पिछला आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था। 2018 में महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) अदालत ने मामले में छोटा राजन और आठ अन्य आरोपियों को दोषी ठहराया और जबकि वोरा को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।

केस इंचार्ज हिमांशु रॉय ने मारी खुद को गोली 

11 मई 2018 को, जे डे की हत्या की जांच करने वाले हिमांशु रॉय ने अपने आवास पर खुद को गोली मार ली। बताया जा रहा है कि वह लंबे समय से कैंसर से पीड़ित थे। सबसे पहले, 2015 में उनके टखने में कैंसर का पता चला, जो बाद में उनके मस्तिष्क तक फैल गया, जिससे वह अवसाद में चले गए। अपनी मृत्यु के समय, वह एडीजीपी (स्थापना) महाराष्ट्र पद पर कार्यरत थे। 

जिगना वोरा और डॉन छोटा राजन कनेक्शन?

जिगना वोरा एशियन एज की एक होनहार और महत्वाकांक्षी पत्रकार रही हैं। वे मुंबई ब्यूरो की डिप्टी ब्यूरो चीफ थीं। घटना के समय उनकी उम्र करीब 37 साल थी। जिंदगी और करियर में सबकुछ बढ़िया चल रहा था। अचानक 2011 में मिड-डे के सीनियर रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे को अज्ञात हमलावरों ने गोली मार दी थी। पुलिस ने इन्वेस्टिगेशन शुरू की, तो संदिग्धों में जिग्ना वोरा का नाम सामने आया। उनका छोटा राजन से कनेक्शन निकला था। जिगना वोरा के बारे में कहा जाता है कि उनके रिश्ते अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन से थे। मर्डर के कुछ हफ्ते पहले उन्होंने छोटा राजन का एक इंटरव्यू भी लिया था। जिगना को इस केस में 9 महीने जेल में बिताने पड़े। 2012 में वे मुंबई की बायकुला जेल से जमानत पर रिहा हुई थीं। फिर सबूतों की कमी के कारण 2018 के विशेष महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) अदालत में 7 साल बाद ही उन्हें सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया था। जेल से रिहा होने के बाद जिग्ना वोरा ने अपनी किताब ‘Behind Bars in Byculla: My Days in Prison’ लिखी।

छोटा राजन को हत्या के लिए उकसाने का आरोप 

11 जून 2011 के दिन मिड डे अखबार के 56 वर्षीय पत्रकार ज्योतिर्मय डे की मुंबई के पवई में हीरानंदानी गार्डन के पास गोली मार कर सरेआम हत्या कर दी गई। पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज करके जांच पड़ताल शुरू की। अगले छह महीन में तमाम गिरफ्तारियां हुई। आखिरकार पुलिस पूछताछ में कथित रूप से पता चला कि हत्या की साजिश में एशियन एज अखबार की ब्यूरो चीफ जिगना वोरा का हाथ है। पुलिस के मुताबिक उसने ही गैंगस्टर छोटा राजन को हत्या के लिए उकसाया था। 

जिनगा वोरा खुद बन गई हेडलाइन

अक्सर अखबार के पहले पन्ने पर आने के लिए खबरें तलाशने वाली जिगना वोरा को पुलिस ने 25 नवंबर 2011 को गिरफ्तार कर लिया गया। उस समय जिगना 37 साल की थीं और उन पर आरोप लगा कि वह ज्योतिर्मय डे के बारे में सारी जानकारियां गैंगस्टर छोटा राजन को देती रही हैं। पुलिस ने दावा किया कि जिगना ने ही ज्योतिर्मय डे का पता और गाड़ी का नंबर छोटा राजन को diya था। इसके बाद मुख्य पेज की हैडलाइन ढूढ़ने वाली जिगना खुद मीडिया की हेडलाइंस बन कर रह गयी। 

जिगना वोरा की गिरफ्तारी के बाद का घटनाक्रम

गिरफ्तारी के बाद साल 2012 में मुंबई पुलिस ने जिगना के खिलाफ महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत कई और आरोप लगाए। पुलिस ने दावा किया कि जिंगना ने गैंगस्टर छोटा राजन को तीन बार फोन मिलाया था। जिगना पर ज्योतिर्मय डे  के साथ पेशेवर प्रतिद्वंद्विता का आरोप लगा और पुलिस ने अदालत में कहा कि इसी कारण उसने छोटा राजन को उकसाने का काम किया। जिगना 27 जुलाई 2012 को जमानत मिलने के बाद जेल से रिहा हुईं। जिगना को जमानत मिलने के तीन साल बाद छोटा राजन की इंडोनेशिया में गिरफ्तारी हुई।

जिगना वोरा की जेल में जिंदगी 

अरेस्ट के बाद जिगना को जेल भेज दिया गया. अपने उन दिनों के अनुभव को उन्होंने ‘Behind the Bars in Byculla’ में जगह दी. जिगना ने अपनी किताब में बताया कि शुरुआती कुछ दिन उनसे खाना नहीं खाया गया. प्लेट में दो चपाती, थोड़ी सब्ज़ी और दाल परोसी जाती थी, वो भी ऐसी पानी से भरी दाल जिसमें बाल तैरते दिखते थे . किसी तरह हिम्मत जुटाकर भी खाना नहीं खा पातीं थी . वो प्लेट साइड में रख रोने लग जाती, कि बिना किसी गलती के उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है.

जिगना लिखती हैं कि टॉइलेट्स की हालत ऐसी थी कि सांस रोककर इस्तेमाल करना पड़ता था. जेल में सुबह 5:30 बजे सभी कैदियों की गिनती होती थी. अपराध के आधार पर दो-दो कैदियों की जोड़ियां बनाई जाती. जैसे दो चोर एक साथ, दो खूनी एक साथ. जिगना लिखती हैं कि गिनती के वक्त उनकी जोड़ी किसी के साथ नहीं बनाई जाती. वो अकेले बैठा करतीं, क्योंकि पूरे जेल में वो अकेली थीं, जिस पर MCOCA लगाया गया था. जेल में लोग उन्हें लेकर बातें करते कि क्या वो एक आतंकवादी है या फिर उनके अंडरवर्ल्ड से ताल्लुकात हैं.

साजिश या महज एक संयोग

जिगना को जमानत मिलने का मुख्य आधार रहा उनका एकल मां होना। उन पर उस समय एक छोटे बच्चे को संभालने की जिम्मेदारी थी। अपनी सफाई में जिगना का कहना था कि वह सिर्फ एक साक्षात्कार के लिए छोटा राजन को कॉल कर रही थी। जिगना की इस बात का मिड डे के तत्कालीन कार्यकारी संपादक सचिन कलबाग ने भी समर्थन किया। फिर ये पूरा मामला सीबीआई के पास गया। अदालत में जिगना के खिलाफ लगाए गए आरोप सबूतों के अभाव में साबित नहीं हो सके और जिगना को साल 2018 में इस केस से बरी कर दिया गया।

जिग्ना वोरा से जुड़े इंटरेस्टिंग फैक्ट्स 

  • उनके सहकर्मी उन्हें जेवी कहकर बुलाते थे। 
  • एक इंटरव्यू में उन्होंने खुलासा किया था कि वह सिगरेट या शराब नहीं पीती हैं. 
  • वह शाकाहारी हैं. 
  • अपनी पुस्तक बिहाइंड बार्स इन बायकुला में उन्होंने उल्लेख किया है कि उनके पिता की शराब की लत ने उनके बचपन और परिवार को बर्बाद कर दिया था।
  • जिग्ना हीलिंग, टैरो कार्ड रीडिंग और ज्योतिष का भी अभ्यास करती है।

NDTV को दिए एक इंटरव्यू 

मीडिया से होने के बावजूद जिगना को मीडिया से कोई सपोर्ट नहीं मिला. NDTV को दिए एक इंटरव्यू में वो बताती हैं कि अरेस्ट के बाद मीडिया पूरी तरह उनके खिलाफ हो गई थी. उन्हें टॉप क्राइम रिपोर्टर से मर्डरर करार दे दिया गया. जिगना बताती हैं कि उन्हें लेकर तमाम तरह की नेगेटिव स्टोरीज़ चलाई गईं. मीडिया सर्कल्स में लोग बातें करते कि इसने सफल होने के लिए लोगों से हमबिस्तर होने का रास्ता चुना. जिगना को ये बातें चुभती, फिर भी भरोसा था कि उनके साथ न्याय होगा. जेल में करीब नौ महीने रहने के बाद 27 जुलाई, 2012 को जिगना वोरा को बेल मिल गई. उनके वकील ने दलील दी कि वो एक सिंगल मदर हैं, और अपने बच्चे का ध्यान रखना चाहती हैं. जिगना को बेल मिलने के करीब तीन साल बाद छोटा राजन की गिरफ़्तारी हुई. राजन को इंडोनेशिया में पकड़ा गया था. जहां से डिपोर्ट कर के इंडिया लाया गया. सरकार ने आदेश दिया कि छोटा राजन से जुड़े सभी केसों की जांच CBI को सौंपी जाए. ऐसे में जेडे मर्डर केस की जांच भी CBI के पास आ गई.

CBI ने अपनी चार्जशीट में यही लिखा कि जिगना ने ही छोटा राजन को जेडे का मर्डर करने के लिए उकसाया था. उनके मुताबिक कुछ फोन कॉल्स के आधार पर वो ऐसा कह रहे थे. हालांकि, जब ट्रायल कोर्ट में ये केस पहुंचा तो बेंच ने कहा कि ये कोई ठोस सबूत नहीं, जिससे साबित हो सके कि जिगना का इस मर्डर से कनेक्शन था. बेंच ने CBI की अपील को खारिज कर दिया. 2018 में कोर्ट ने जिगना को रिहा कर दिया. सरकार ने इस फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में अपील की लेकिन हाई कोर्ट ने सरकार की अपील खारिज कर दी और जिगना की रिहाई का ऑर्डर कायम रखा. जिगना ने NDTV को दिए इंटरव्यू में ही बताया कि जेल से रिहा होने के बाद उन्हें मीडिया इंडस्ट्री में दोबारा मौका नहीं मिला. उनका भी मन ऊब गया. उन्होंने मीडिया इंडस्ट्री में ऑप्शन तलाशने बंद कर दिए. आज के समय में जिगना एक प्रोफेशनल टैरो कार्ड रीडर हैं. 

जिगना वोरा की किताब 

क्राइम रिपोर्टर और जर्नलिस्ट जिगना वोरा ने अपनी क़िताब ‘Behind Bars in Byculla: My Days in Prison’ में उस खौफ़नाक मंजर के बारे में याद किया है, जो आपको स्कूप के ट्रेलर में भी दिखा होगा और यही इस क्राइम ड्रामा का आधार है. ये कोई फ़िक्शन नहीं बल्कि एक रियल कहानी है, जिसने एक पत्रकार के जीवन को झकझोर कर रख दिया और कई सालों तक उनके बरी ना होने तक उनका पीछा किया. ये एक सच्ची कहानी, जिसने पत्रकार जिगना वोरा को तोड़ कर रख दिया.

किताब में क्या है जानकारी?

जिगना वोरा पर महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ़ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (MCOCA) के तहत कई अन्य आपराधिक आरोपों में आरोपित होने के अलावा इसकी कठोर आवश्यकताओं का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था. वोरा की किताब उन आरोपों पर प्रकाश डालती है, जो उनके खिलाफ़ लगाए गए थे और कैसे जांचकर्ताओं को गैंगस्टर छोटा राजन के साथ उनके संबंधों के सबूत मिले थे. जबकि वोरा ने आरोपों का जोरदार खंडन किया और बताया कि कैसे उन्होंने सिर्फ़ एक इंटरव्यू के लिए गैंगस्टर से संपर्क किया था, लेकिन ये स्टेटमेंट उनके ही विपरीत चला गया. 2019 में सामने आई उनकी किताब के अनुसार, उन्हें 2012 में ज़मानत पर रिहा कर दिया गया था, लेकिन सात साल बाद ही उन्हें सभी आरोपों से मुक्त किया गया.