हनुमान बेनीवाल ने परमाणु ऊर्जा सेक्टर में निजीकरण का विरोध जताया, विधेयक पर उठाए संवैधानिक और सुरक्षा संबंधी सवाल
नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने बुधवार को लोकसभा में 'परमाणु ऊर्जा विधेयक-2025' पर चर्चा में भाग लिया और न्यूक्लियर एनर्जी सेक्टर में निजीकरण का विरोध जताया। उन्होंने कहा कि यह बदलाव केवल बाज़ार खोलने का मामला नहीं है, बल्कि इससे जोखिम की प्रकृति, लाइबिलिटी और निगरानी-संरचना पूरी तरह बदल जाएगी।
आरएलपी संयोजक ने इस विधेयक को लेकर कहा कि यह केवल तकनीकी संशोधन नहीं है। उनका कहना था कि यह विधेयक देश के संवैधानिक सिद्धांतों, जनता की सुरक्षा और सरकारी जवाबदेही में जड़ से बदलाव का प्रयास है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जनता को इस विधेयक पर गहरी शंका और सख्त आपत्ति है।
बेनीवाल ने कहा कि यदि इस विधेयक के दूसरे पहलुओं को देखा जाए, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह केवल तकनीकी या प्रशासनिक बदलाव नहीं, बल्कि परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी बढ़ाने का कदम है। उनका तर्क था कि इससे न केवल जोखिम बढ़ेगा, बल्कि सरकारी निगरानी और जवाबदेही की संरचना भी कमजोर होगी।
सांसद ने लोकसभा में पूर्व सरकारों के योगदान को भी याद किया। उन्होंने कांग्रेस सरकार और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा किए गए परमाणु परीक्षणों को ऐतिहासिक बताया। बेनीवाल ने कहा कि तब नाभिकीय ऊर्जा सार्वजनिक क्षेत्र के अधीन थी और यह देश की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए नियंत्रित रूप से संचालित होती थी।
हालांकि, वर्तमान एनडीए सरकार का प्रयास, उनके अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र के नियंत्रण में रहे नाभिकीय ऊर्जा को निजी कंपनियों के लिए खोलना है। उन्होंने चेतावनी दी कि यह परिवर्तन सुरक्षा, लाइबिलिटी और जोखिम प्रबंधन के दृष्टिकोण से गंभीर परिणाम ला सकता है।
बेनीवाल ने लोकसभा में यह भी कहा कि विधेयक से संबंधित जोखिम और जिम्मेदारी के मामलों में जनता और संसद के पास पर्याप्त अधिकार नहीं रहेंगे। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह विधेयक सिर्फ आर्थिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सुरक्षा और संवैधानिक दृष्टिकोण से भी गंभीर चिंता का विषय है।
सांसद के अनुसार, परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजीकरण से संभावित खतरों के साथ-साथ सार्वजनिक हित और पारदर्शिता पर भी असर पड़ेगा। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि इस तरह के संवेदनशील मामलों में सुरक्षा, निगरानी और जवाबदेही के मानकों को प्राथमिकता दी जाए।
लोकसभा में बेनीवाल के इस बयान ने चर्चा को एक नया आयाम दिया। उनके विचारों के अनुसार, यह विधेयक केवल न्यूक्लियर सेक्टर का निजीकरण नहीं, बल्कि देश की सुरक्षा और संवैधानिक ढांचे में बदलाव का प्रयास है, जिसे गंभीरता से देखा जाना चाहिए।