चार साल के मासूम की एम्स में मौत, परिवार में मातम, डॉक्टरों की कोशिशें नाकाम, जाते जाते 2 जिंदगियों को रोशनी दे गया लक्ष्य
हॉस्पिटल के ICU के बाहर वह रात एक परिवार के लिए बहुत मुश्किल थी। चार साल का लक्ष्य, जिसकी हंसी और खिलखिलाहट पूरे घर में गूंज रही थी, उसे आंतों में गंभीर इन्फेक्शन के कारण ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों की पूरी कोशिशों के बावजूद, अचानक उसका दिल रुक गया, और उसकी मासूम ज़िंदगी खत्म हो गई। यह उसके माता-पिता के लिए एक ऐसा सदमा था जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।
इंसानियत को नई रोशनी दी
इस असहनीय दर्द के बीच, लक्ष्य के परिवार ने एक ऐसा फैसला लिया जिसने इंसानियत को नई रोशनी दी। पिता संदीप देशलहरा, दादा सोहनलाल देशलहरा, चाचा गौतम चंद और परिवार के दूसरे लोग अपने बेटे की मौत से दुखी होकर उसकी आंखें डोनेट करने के लिए तैयार हो गए। यह पहली बार था जब इतनी कम उम्र के किसी बच्चे ने अपनी आंखें डोनेट की थीं। चार साल की उम्र में बच्चे को खोना और उसके बाद उसके परिवार का ऐसा फैसला लेना, समाज के लिए एक मिसाल है।
तेरापंथ युवक परिषद के कैलाश जैन, अनिल नाहटा और उमेश टांटिया ने परिवार को नेत्रदान का महत्व समझाया और इस मुश्किल समय में इमोशनल सपोर्ट दिया। इसके बाद, राजस्थान आई बैंक सोसाइटी के टेक्निकल स्टाफ ने तय प्रोसेस को फॉलो करते हुए लक्ष्य की दोनों आंखों से सुरक्षित रूप से कॉर्निया निकाल लिया। ये कॉर्निया अब दो अंधेरी जिंदगियों में रोशनी लाएंगे।
इससे पहले एक बच्चे से कॉर्निया निकालने की कोशिश की गई थी।
सोसाइटी के जोधपुर चैप्टर के प्रेसिडेंट राजेंद्र जैन ने बताया कि इससे पहले दो साल के बच्चे से कॉर्निया निकालने की कोशिश की गई थी, लेकिन वह कॉर्निया मैच्योर नहीं था। इसलिए, कम उम्र में कॉर्निया डोनेट करने का यह एक रेयर उदाहरण है। लक्ष्य भले ही आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उसका साइलेंट गिफ्ट दो लोगों की दुनिया बदल सकता है।