जयपुर में जिला परिषद और पंचायत समितियों के पुनर्गठन की प्रक्रिया तेज, फुटेज में जानें वार्डों की संख्या बढ़ाने का रखा प्रस्ताव
जयपुर नगर निगम के पुनर्गठन के बाद अब जिला परिषद और पंचायत समितियों के पुनर्गठन की प्रक्रिया भी तेज हो गई है। जिला प्रशासन ने इस दिशा में काम शुरू करते हुए नया प्रस्ताव तैयार कर लिया है, जिसके तहत जयपुर जिला परिषद और पंचायत समितियों में वार्डों की संख्या बढ़ाने की तैयारी की जा रही है। प्रशासन की ओर से जारी प्रस्ताव पर आमजन और जनप्रतिनिधियों से आपत्तियां और सुझाव मांगे गए हैं।
जिला प्रशासन द्वारा तैयार किए गए प्रस्ताव के अनुसार जयपुर जिला परिषद में वार्डों की संख्या वर्तमान 51 से बढ़ाकर 57 करने का प्रस्ताव रखा गया है। गौरतलब है कि हाल ही में जिले के पुनर्गठन के बाद जयपुर जिले से कोटपूतली और विराटनगर क्षेत्र को अलग कर दिया गया है। इसके बावजूद जयपुर जिला परिषद में वार्डों की संख्या कम होने के बजाय बढ़ाई जा रही है, जिसे लेकर राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर चर्चा शुरू हो गई है।
प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि जनसंख्या के आधार पर परिसीमन और प्रशासनिक संतुलन को ध्यान में रखते हुए वार्डों की संख्या बढ़ाने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। जिले के कुछ क्षेत्रों में आबादी का दबाव लगातार बढ़ रहा है, ऐसे में प्रतिनिधित्व को बेहतर बनाने के लिए नए वार्ड बनाए जाना आवश्यक माना जा रहा है। इसी उद्देश्य से 57 वार्डों का प्रारूप तैयार कर सार्वजनिक किया गया है।
वहीं पंचायत स्तर पर भी बड़ा बदलाव प्रस्तावित किया गया है। नई पंचायत समितियों के गठन के बाद जिले में कुल 21 पंचायत समितियां प्रस्तावित की गई हैं। इन पंचायत समितियों के अंतर्गत कुल 381 वार्ड बनाए जाने का प्रस्ताव है। प्रशासन का दावा है कि पंचायत स्तर पर प्रतिनिधित्व बढ़ने से ग्रामीण क्षेत्रों के विकास कार्यों में तेजी आएगी और आम लोगों की समस्याओं का समाधान स्थानीय स्तर पर बेहतर तरीके से हो सकेगा।
पुनर्गठन के इस प्रस्ताव को लेकर जिला प्रशासन ने आपत्तियां और सुझाव आमंत्रित किए हैं। निर्धारित समय सीमा के भीतर आमजन, जनप्रतिनिधि और राजनीतिक दल अपने सुझाव और आपत्तियां दर्ज करा सकते हैं। इसके बाद प्राप्त आपत्तियों की समीक्षा कर अंतिम प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा जाएगा। सरकार की मंजूरी के बाद ही नए वार्डों और पंचायत समितियों का अंतिम स्वरूप तय होगा।
राजनीतिक हलकों में इस पुनर्गठन को आगामी पंचायत और जिला परिषद चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है। कई जनप्रतिनिधि इसे क्षेत्रीय संतुलन और जनसंख्या के अनुसार जरूरी कदम बता रहे हैं, वहीं कुछ नेताओं का कहना है कि वार्डों की संख्या बढ़ाने से प्रशासनिक खर्च और राजनीतिक समीकरणों पर भी असर पड़ेगा।