अरावली बचाने की लड़ाई में मोदी सरकार पर गंभीर आरोप, वीडियो में देखें 1000 किमी पदयात्रा पर NSUI नेता निर्मल चौधरी
अरावली पर्वतमाला के संरक्षण को लेकर चल रहे संघर्ष के बीच एक बार फिर सियासी बयानबाजी तेज हो गई है। अरावली को बचाने के लिए 1000 किलोमीटर की पदयात्रा पर निकले NSUI नेता और राजस्थान यूनिवर्सिटी के निवर्तमान अध्यक्ष निर्मल चौधरी ने केंद्र की मोदी सरकार पर अरावली की परिभाषा बदलने की साजिश रचने का गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा लाई गई नई परिभाषा न केवल पर्यावरण के लिए खतरनाक है, बल्कि यह सुप्रीम कोर्ट के पुराने निर्देशों और संविधान की भावना के भी खिलाफ है।
निर्मल चौधरी ने इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया स्पष्ट और निर्णायक निर्देशों का स्वागत करते हुए कहा कि यह फैसला केवल एक न्यायिक आदेश भर नहीं है, बल्कि यह प्रकृति, संविधान और जनहित के पक्ष में सच्चाई की जीत है। उन्होंने कहा कि अरावली केवल पहाड़ों की श्रृंखला नहीं है, बल्कि यह उत्तर भारत के पर्यावरणीय संतुलन, भूजल संरक्षण और जलवायु सुरक्षा की रीढ़ है। ऐसे में इसकी परिभाषा से छेड़छाड़ करना आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा है।
NSUI नेता ने कहा कि देश को यह नहीं भूलना चाहिए कि सरकार द्वारा लाई गई इस कथित मनमानी और खतरनाक परिभाषा का विरोध केवल जन आंदोलनों तक सीमित नहीं था। उन्होंने दावा किया कि इस मुद्दे पर फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया, सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी और स्वयं अदालत के अमीकस क्यूरी तक ने सरकार के रुख का विरोध किया था। इससे यह साफ हो गया कि सरकार इस मामले में न केवल नैतिक रूप से, बल्कि संस्थागत स्तर पर भी पूरी तरह अकेली पड़ गई थी।
निर्मल चौधरी ने कहा कि जब देश की शीर्ष संस्थाएं और पर्यावरण से जुड़े विशेषज्ञ एक स्वर में चेतावनी दे रहे हों, तब सरकार का अपनी जिद पर अड़े रहना गंभीर सवाल खड़े करता है। उन्होंने आरोप लगाया कि अरावली की परिभाषा बदलने के पीछे खनन और बड़े कॉर्पोरेट हितों को फायदा पहुंचाने की मंशा छिपी हुई थी, जिसका सीधा नुकसान आम जनता और पर्यावरण को होता।
1000 किलोमीटर की पदयात्रा को लेकर निर्मल चौधरी ने कहा कि यह यात्रा केवल प्रतीकात्मक विरोध नहीं है, बल्कि यह जन-जागरूकता और जन-दबाव का एक माध्यम है। उन्होंने बताया कि इस यात्रा के दौरान वे गांव-गांव और शहर-शहर जाकर लोगों को अरावली के महत्व और उसके संरक्षण की आवश्यकता के बारे में जागरूक कर रहे हैं। उनका कहना है कि जब तक जनता खुद इस मुद्दे को अपना नहीं बनाएगी, तब तक अरावली पर खतरा बना रहेगा।
अंत में निर्मल चौधरी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह उम्मीद जगी है कि पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर अब मनमानी नहीं चलेगी। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों से अपील की कि वे अदालत के आदेशों का सम्मान करें और अरावली पर्वतमाला को बचाने के लिए ठोस और ईमानदार कदम उठाएं। साथ ही उन्होंने यह भी साफ किया कि अरावली बचाने की यह लड़ाई आगे भी जारी रहेगी।