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कोरोना की दूसरी लहर में ICU में 51 दिन बिताने वाले डॉ. शिव गौतम ने दिखाई हिम्मत, मौत को हराकर लौटे सेवा में

 

कोरोना की दूसरी लहर ने जब पूरे देश को अपने भयावह असर में जकड़ लिया था, तब हजारों लोग हर दिन अपनी जान गंवा रहे थे। अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी, बेड्स की किल्लत और डर के माहौल में लोग उम्मीद खोने लगे थे। लेकिन ऐसे कठिन समय में भी कुछ लोगों ने न सिर्फ साहस दिखाया बल्कि दूसरों के लिए मिसाल भी बन गए। ऐसे ही एक उदाहरण हैं वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. शिव गौतम।

74 वर्षीय डॉ. शिव गौतम खुद कोरोना संक्रमण की चपेट में आ गए थे। हालत इतनी गंभीर हो गई कि उन्हें अस्पताल के आईसीयू में 51 दिन तक भर्ती रहना पड़ा। इलाज के दौरान कई बार उनकी स्थिति नाजुक हो गई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। डॉक्टरों की टीम और परिवार के हौसले के साथ उन्होंने मौत को मात दी और जिंदगी की जंग जीत ली।

डॉ. गौतम की इस जिजीविषा ने उन्हें न सिर्फ जीवनदान दिलाया, बल्कि वे एक बार फिर उसी लगन और समर्पण के साथ अपने पेशे में लौट आए हैं। इलाज से उबरने के बाद उन्होंने फिर से मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में सेवा देना शुरू कर दिया। मरीजों की चिंता, अवसाद और तनाव जैसे मानसिक रोगों के इलाज में वे आज भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

डॉ. गौतम का कहना है, “जब मैं अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा था, तब मेरे मन में सिर्फ एक बात थी कि अगर मैं ठीक हो गया तो दोबारा मरीजों के लिए काम करूंगा। मेरी इस सोच ने मुझे कभी टूटने नहीं दिया।”

उनका अनुभव न केवल मेडिकल पेशे के लिए प्रेरणादायक है, बल्कि यह आम लोगों के लिए भी उम्मीद की किरण है। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के दौरान उन्होंने यह साबित किया कि इच्छाशक्ति और सकारात्मक सोच से किसी भी विपरीत परिस्थिति को पार किया जा सकता है।

डॉ. शिव गौतम ने यह भी बताया कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं बहुत अधिक बढ़ गई थीं। ऐसे में उन्होंने पोस्ट-कोविड मानसिक तनाव से जूझ रहे सैकड़ों मरीजों को सलाह दी और उन्हें मानसिक तौर पर मजबूत बनने के लिए प्रेरित किया।

उनका जीवन आज युवाओं के लिए यह संदेश देता है कि उम्र या परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों, अगर मन में सेवा का जज्बा और जीवन के प्रति आस्था हो, तो हर चुनौती को पार किया जा सकता है।