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जजों पर विवादित बयान मामले में विकास दिव्यकीर्ति को हाईकोर्ट से मिली राहत, फैंस के जश्न का सामने आया वीडियो 

 

चर्चित कोचिंग संस्थान संचालक और मोटिवेशनल स्पीकर डॉ. विकास दिव्यकीर्ति को जजों पर कथित अपमानजनक टिप्पणी मामले में राजस्थान हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट की जस्टिस समीर जैन की एकलपीठ ने इस मामले में उनके खिलाफ चल रही कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगा दी है।

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डॉ. दिव्यकीर्ति पर आरोप था कि उन्होंने एक वीडियो में न्यायपालिका और न्यायाधीशों को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, जिससे अदालत की गरिमा को ठेस पहुंची। इस वीडियो के सामने आने के बाद उनके खिलाफ मामला दर्ज हुआ और जांच शुरू की गई थी। लेकिन अब कोर्ट ने इस कार्रवाई पर फिलहाल स्टे लगा दिया है।

हाईकोर्ट में पेश की गई याचिका में विकास दिव्यकीर्ति की ओर से यह दलील दी गई थी कि उन्होंने किसी भी प्रकार से न्यायपालिका या न्यायाधीशों का अपमान नहीं किया। उनके बयान को संदर्भ से हटाकर पेश किया गया है। उन्होंने कहा कि उनका मकसद किसी भी संस्था या व्यक्ति को नीचा दिखाना नहीं था।

कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि प्रथम दृष्टया यह मामला आलोचना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा प्रतीत होता है। साथ ही कोर्ट ने यह भी माना कि इस तरह के मामलों में जल्दबाजी में कार्रवाई करना अनुचित हो सकता है। इसी आधार पर न्यायालय ने इस मामले में आगे की कानूनी प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाते हुए अगली सुनवाई तक यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए।

डॉ. विकास दिव्यकीर्ति, जो देश के युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं, खासकर यूपीएससी अभ्यर्थियों के बीच, अपने स्पष्ट विचारों और सरल व्याख्यान शैली के लिए जाने जाते हैं। हालांकि इससे पहले भी उनके कुछ बयान विवादों में आ चुके हैं, लेकिन इस बार मामला न्यायपालिका से जुड़ा होने के कारण यह अधिक गंभीर माना जा रहा था।

हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद डॉ. दिव्यकीर्ति के समर्थकों में खुशी की लहर है। सोशल मीडिया पर भी लोग कोर्ट के इस फैसले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के तौर पर देख रहे हैं।

फिलहाल इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख तय नहीं हुई है, लेकिन अंतरिम राहत मिलने के बाद डॉ. दिव्यकीर्ति को एक बड़ी राहत मिली है और अब वे बिना गिरफ्तारी के इस मामले में अपनी बात पूरी तरह अदालत के समक्ष रख सकेंगे।

यह मामला एक बार फिर इस बहस को जन्म दे गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संस्थाओं के सम्मान के बीच संतुलन कैसे कायम रखा जाए।