Bhagalpur पहले अधिकारियों ने काटी जमीन की रसीद, अब बता रहे सरकारी
बिहार न्यूज़ डेस्क जिस समय जमीन खरीद हुई उस समय जमीन सरकारी नहीं थी लेकिन आज जिला प्रशासन के एक आदेश के बाद बरौनी अंचल के 458 खाता में आने वाली जमीन सरकारी हो गई है.
यहां तक कि बरौनी अंचल के जिन अधिकारियों के द्वारा कल तक जिस जमीन की लगान रसीद धड़ल्ले से काटी जा रही थी, वही अधिकारी आज उस जमीन को सरकारी बता जमीन की लगान रसीद व जमीन की खरीद-बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिए हैं. उक्त मामला राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पैतृक गांव सिमरिया समेत कसहा, बरियाही, चानन, रुपनगर, सिमरिया घाट व बिंदटोली समेत अन्य गांव की है. यहां सिमरिया मौजा के 458 खाता में आने वाली विभिन्न खसरे की सैकड़ों एकड़ जमीन जिस पर अधिकतर मकान बने हुए हैं, उक्त जमीन की लगान रसीद कटने व रजिस्ट्री पर पिछले तीन वर्षों से प्रतिबंध रहने से उक्त खाते में आने वाली सैकड़ों एकड़ भूमि की रजिस्ट्री जिला प्रशासन के द्वारा बंद कर दिए जाने से लोगों की परेशानी बढ़ी हुई है. इस मामले में जिला प्रशासन का कहना है कि यह सरकारी भूमि है और इसी वजह से इसके रजिस्ट्रेशन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. इससे जमीन की न तो बरौनी अंचल के द्वारा लगान रसीद काटी जा रही है और ना ही इस जमीन की खरीद-बिक्री हो रही है. इससे लोगों की परेशानी बढ़ी हुई है. सिमरिया-एक पंचायत के पूर्व मुखिया कृष्ण कुमार शर्मा व सिमरिया-दो पंचायत के पूर्व सरपंच अनिल कुमार विद्यार्थी ने बताया कि यह जमीन मालिक की थी. रुपए लेकर हमारे पूर्वजों को जमीन दी गई जिसकी रसीद बरौनी अंचल के द्वारा प्रतिबंध लगाने के पूर्व तक काटा जा रहा था लेकिन जिला प्रशासन के द्वारा अचानक मनमाने ढंग से इस जमीन को सरकारी बता इस जमीन की लगान रसीद काटने व इसकी रजिस्ट्री पर रोक लगा दी गई है. जबकि, उक्त खाता नंबर की जमीन के अधिकतर भागों में दशकों पूर्व से कई गांव बसे हैं जिस पर बड़े-बड़े भवन बने हुए हैं.
अधिवक्ता शशिभूषण सिंह समेत अन्य लोगों ने कहा कि 458 खाता में आने वाले सभी खेसरा की जमीन बिहार सरकार की है तो फिर बिहार सरकार के द्वारा ही इसी जगह 1968 में जमीन खरीद बिंदटोली गांव को कैसे बसाया गया. कहा कि जब जमीन सरकार की ही है तो फिर किस आधार पर उक्त जमीन खरीद कर लोगों को बसाया गया. ग्रामीणों ने कहा कि बरियाही स्थित दरभंगा महाराज की जमीन को एक तरफ बिहार सरकार अपना बता खरीद-बिक्री नहीं होने की बात कह रही है तो वहीं दूसरी ओर इसी जमीन की बरौनी अंचल के माध्यम से खरीद-बिक्री हुई जिसका राजस्व सरकार को दिया जा रहा है. बची हुई जमीन का लाभार्थियों को सरकार के द्वारा पर्चा भी दिया गया. ग्रामीणों ने कहा कि प्रतिबंध के बावजूद गुप्त रूप से कई जगह की जमीन की रसीद काटी गई और रजिस्ट्री भी हुई.
सीओ की रिपोर्ट ने बढ़ायी परेशानी
किसानों ने कहा कि पूर्व सीओ के द्वारा वरीय अधिकारियों को जमीन की गलत रिपोर्ट सौंपने से मौजूदा परेशानी पैदा हुई है. कल तक जो जमीन किसानों की थी वह आज जिला प्रशासन के एक आदेश जारी करने के बाद सरकार की हो गई. इस मामले में किसान रामाशीष सिंह, शशिभूषण यादव, शशिभूषण सिंह, चंद्रशेखर सिंह, भोला सिंह, मुकेश राय आदि ने बताया कि हमलोग दशकों से आज तक जिस जमीन की लगान रसीद जिला प्रशासन के जिस अधिकारी के द्वारा काटी जाती रही, आज दशकों बाद उसी जिला प्रशासन के अधिकारी ने यह जमीन हमलोगों की नहीं होने की बात कह लगभग 1931 बीघा जमीन की जमाबंदी रद्द कर दी है. जिला प्रशासन के वेबसाइट पर अपर समाहर्ता बेगूसराय के पत्रांक 4938 दिनांक 25-11-2024 एवं अंचल अधिकारी बरौनी के पत्रांक 201 दिनांक 13-12-2024 द्वारा अपर समाहर्ता बेगूसराय के जमाबंदी रद्दीकरण वाद संख्या 380 /2023-24 के आदेशानुसार जमाबंदी रद्द करने की बात कही गई है.
इधर, अधिवक्ता सह किसान अवधेश राय ने बताया कि वर्ष 2018 के समय बरौनी के पूर्व सीओ ने मल्हीपुर मौजे की जमीन को गैरमजरुआ खास भूमि बता किसानों पर गलत ढंग से जमाबंदी करवाने की रिपोर्ट वरीय अधिकारी को भेजी. जबकि, किसानों का कहना है कि हमलोगों को वर्ष 1955-56 में मालिक लोग बंदोवस्त किए और जमींदारी उन्मूलन के समय जमींदार लोग बंदोवस्तदार के नाम से रिटर्न दाखिल किया. उसी के आधार पर बिहार सरकार ने रजिस्टर-दो बनाया और उसी समय से अभी तक जमीन की लगान रसीद भी कट रही है. वर्ष 2013 में बरौनी के सीओ ने बेगूसराय डीसीएलआर को यह जमाबंदी सही रहने की रिपोर्ट भी दी थी.
भागलपुर न्यूज़ डेस्क