अरावली संरक्षण के लिए अनोखा विरोध, वीडियो में देखें ग्रीनमैन नरपतसिंह ने खून से राष्ट्रपति के नाम लिखा ज्ञापन
अरावली पर्वतमाला के संरक्षण और उसमें प्रस्तावित बदलावों के विरोध में प्रदेशभर में आवाजें तेज होती जा रही हैं। इसी कड़ी में पर्यावरण संरक्षण के लिए पहचाने जाने वाले ग्रीनमैन नरपतसिंह राजपुरोहित ने एक अनोखे और भावनात्मक तरीके से विरोध दर्ज कराया है। उन्होंने अपने खून से राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन लिखकर अरावली पर्वतमाला को बचाने की गुहार लगाई। यह ज्ञापन बुधवार को बाड़मेर कलेक्टर टीना डाबी को सौंपा गया।
इस दौरान नरपतसिंह राजपुरोहित ने “अरावली बचाओ” जैसे स्लोगन भी लिखे और सरकार तथा प्रशासन का ध्यान अरावली के महत्व की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि यह केवल विरोध नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को बचाने की पुकार है। उनका कहना है कि अरावली पर्वतमाला सिर्फ पहाड़ों की श्रृंखला नहीं है, बल्कि यह राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों की हवा, पानी, वन्यजीव और पर्यावरणीय संतुलन का आधार है।
ज्ञापन में उन्होंने स्पष्ट शब्दों में लिखा कि “अरावली पर्वतमाला केवल पहाड़ नहीं, हमारी हवा, पानी, वन्यजीव और आने वाली पीढ़ियों का जीवन आधार है। 100 मीटर के नाम पर हो रहे विनाश को तुरंत रोका जाए।” उन्होंने चेतावनी दी कि यदि अरावली को कमजोर करने वाले फैसले लागू हुए, तो इसके दूरगामी और विनाशकारी परिणाम सामने आएंगे।
दरअसल, हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की एक व्याख्या के आधार पर 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को पहाड़ नहीं मानने की प्रवृत्ति सामने आई है। इसी व्याख्या को लेकर पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों में गहरी चिंता है। उनका मानना है कि इस आधार पर अरावली पर्वतमाला के बड़े हिस्से को कानूनी संरक्षण से बाहर किया जा सकता है।
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट इस चिंता को और गंभीर बना देती है। रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में कुल 12,081 पहाड़ियां हैं, जिनमें से केवल 8.7 प्रतिशत ही 100 मीटर से अधिक ऊंची हैं। यदि 100 मीटर की नई व्याख्या को लागू किया गया, तो अरावली पर्वतमाला का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा कानूनी संरक्षण से बाहर हो जाएगा। इसका सीधा फायदा खनन माफिया और रियल एस्टेट कंपनियों को मिलने की आशंका जताई जा रही है।
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि अरावली पर्वतमाला मरुस्थलीकरण को रोकने, भूजल रिचार्ज, जैव विविधता संरक्षण और जलवायु संतुलन में अहम भूमिका निभाती है। अरावली के कमजोर होने से न केवल राजस्थान बल्कि दिल्ली-एनसीआर और हरियाणा जैसे क्षेत्रों पर भी गंभीर पर्यावरणीय असर पड़ेगा। इससे प्रदूषण बढ़ेगा, जल संकट गहराएगा और वन्यजीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
ग्रीनमैन नरपतसिंह राजपुरोहित ने प्रशासन से मांग की है कि 100 मीटर की ऊंचाई के आधार पर पहाड़ियों की परिभाषा तय करने के बजाय वैज्ञानिक, भूवैज्ञानिक और पर्यावरणीय तथ्यों को आधार बनाया जाए। उन्होंने कहा कि अरावली का संरक्षण केवल पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि मानव जीवन और भविष्य की सुरक्षा का सवाल है।
अरावली के संरक्षण को लेकर इस तरह के अनोखे और भावनात्मक विरोध ने प्रशासन और समाज का ध्यान जरूर खींचा है। अब देखने वाली बात यह होगी कि सरकार और न्यायिक प्रक्रिया इस चिंता को किस तरह संबोधित करती है और अरावली पर्वतमाला को बचाने के लिए क्या ठोस कदम उठाए जाते हैं।