अजमेर में 145 करोड़ की धोखाधड़ी का खुलासा, देखे वीडियो में दो किसान और एक मजदूर बने फर्जीवाड़े का शिकार
राजस्थान के अजमेर जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसमें दो किसानों और एक मजदूर के नाम पर फर्जी दस्तावेज बनाकर बैंक खाते खोले गए और उनके माध्यम से करीब 145 करोड़ 16 लाख रुपए का संदिग्ध लेनदेन किया गया। यह पूरा घोटाला तब सामने आया जब पीड़ितों को जीएसटी विभाग की ओर से भारी-भरकम नोटिस मिलने लगे।
क्या है पूरा मामला?
यह धोखाधड़ी अजमेर के सरवाड़ क्षेत्र से जुड़ी है।
पीड़ितों में शामिल रामराज चौधरी, शंकरलाल जाटव और घासीराम ने बताया कि वे तो खेतों में मजदूरी या किसानी करते हैं, उन्हें कभी बैंक या जीएसटी से कोई लेना-देना नहीं रहा। लेकिन बीते दिनों जीएसटी विभाग की ओर से लाखों-करोड़ों की टैक्स चोरी को लेकर नोटिस मिलने के बाद उनके होश उड़ गए।
जांच में सामने आया कि उनके आधार, पैन और अन्य दस्तावेजों का दुरुपयोग कर कई बैंकों में खाते खोले गए। फिर इन खातों से 145 करोड़ से ज्यादा का संदिग्ध लेनदेन किया गया। पीड़ितों का दावा है कि उन्हें इस पूरे फर्जीवाड़े की कोई जानकारी नहीं थी और न ही वे इन खातों के संचालन में कभी शामिल रहे।
कैसे हुआ खुलासा?
रामराज चौधरी के अनुसार, 3 अप्रैल को आयकर विभाग और जीएसटी टीम उनके घर पहुंची थी और उन्हें 38 करोड़ से अधिक की टैक्स चोरी का नोटिस थमाया गया।
इसी तरह शंकरलाल और घासीराम को भी क्रमशः 53 करोड़ और 54 करोड़ रुपए के लेन-देन से संबंधित नोटिस मिले।
नोटिस में उनके नाम पर फर्जी कंपनियां पंजीकृत मिलीं, जिनके जरिए इनकम टैक्स और जीएसटी से बचने की साजिश की गई थी।
पुलिस ने दर्ज किया केस
फर्जीवाड़े की शिकायत पर सरवाड़ थाना पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है। शुरुआती जांच में सामने आया कि फर्जीवाड़ा बड़े स्तर पर योजनाबद्ध तरीके से किया गया है। पुलिस ने बैंक और जीएसटी दस्तावेज जब्त कर जांच शुरू कर दी है, और दस्तावेजों की फोरेंसिक जांच कराई जा रही है।
क्या बोले अधिकारी?
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि यह मामला साइबर धोखाधड़ी और वित्तीय जालसाजी से जुड़ा है। जिन लोगों ने यह घोटाला किया है, उन्होंने गरीब किसानों और मजदूरों की साक्षरता और जानकारी की कमी का फायदा उठाया।
जांच के बाद दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
बड़ा सवाल - बैंक और विभागों की भूमिका पर संदेह
इस मामले ने बैंकिंग सिस्टम और जीएसटी विभाग की निगरानी प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। बिना किसी फिजिकल वेरिफिकेशन के करोड़ों के खाते खोलना और कंपनियां पंजीकृत होना, इस बात को दर्शाता है कि मामले में कहीं न कहीं अंदरूनी मिलीभगत भी हो सकती है।
फिलहाल जांच जारी है, और कई परतें खुलने बाकी हैं।
यह मामला न सिर्फ पीड़ित किसानों के लिए परेशानी का सबब बना है, बल्कि देशभर में दस्तावेज सुरक्षा और पहचान सत्यापन की प्रणाली पर भी एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।
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