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Strait of Hormuz बंद होने से क्या होगा भारत पर असर, सरकार का दावा-हमारी सप्लाई नहीं रुकेगी

 

मध्य पूर्व में तनाव चरम पर है और इजराइल-ईरान युद्ध लगातार गहराता जा रहा है। इस बीच शनिवार को ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिका के हमले ने इस युद्ध को और हवा दे दी। इसके बाद ईरान ने न सिर्फ इजराइल पर हमले तेज कर दिए, बल्कि ईरानी संसद ने जल्दबाजी में होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। दुनियाभर में इस्तेमाल होने वाले करीब 20 फीसदी कच्चे तेल का कारोबार इसी तेल मार्ग से होता है।

खरीदार देशों की सूची में अमेरिका, चीन, जापान के साथ भारत भी शामिल है। हालांकि सरकार इस बात से इनकार कर रही है कि इस मार्ग के बाधित होने से भारत के कच्चे तेल के आयात पर बहुत ज्यादा असर पड़ेगा, लेकिन आईसीआरए के आंकड़ों के मुताबिक चीन, जापान और कोरिया के बाद भारत सबसे ज्यादा आयात एसओएच के जरिए करता है। आइए समझते हैं कि इस तेल मार्ग के बंद होने से भारत के लिए किस तरह की मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं और इससे निपटने के लिए सरकार की क्या तैयारी है? रिसर्च फर्म इकरा के मुताबिक दुनिया का 20 फीसदी तेल व्यापार होर्मुज के जरिए होता है ईरानी संसद ने होर्मुज जलडमरूमध्य या स्ट्रेट ऑफ होर्मुज को बंद करने की मंजूरी दे दी है, यह दुनिया को कच्चा तेल पहुंचाने का अहम रास्ता है और वैश्विक कच्चे तेल और एलएनजी व्यापार का करीब 20 फीसदी हिस्सा इसी होर्मुज रास्ते से होता है। खास बात यह है कि एसओएच के जरिए दुनिया को होने वाले इस तेल निर्यात का 80 फीसदी से ज्यादा हिस्सा एशिया में आयात होता है, जिसमें 65 फीसदी कच्चा तेल चीन, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया पहुंचता है।

चीन से भारत में कच्चे तेल के आयात का हिस्सा ICRA की रिपोर्ट में साल 2024 में होर्मुज जलडमरूमध्य के जरिए सभी देशों को होने वाले कच्चे तेल के निर्यात के आंकड़ों पर नजर डालें तो चीन को 26 फीसदी, जापान-कोरिया को 22 फीसदी, भारत को 14 फीसदी, यूरोपीय देशों को 8 फीसदी, अमेरिका को 4 फीसदी और अफ्रीका को 5 फीसदी कच्चे तेल की आपूर्ति हुई। वहीं, शेष एशिया ने 22 फीसदी आयात किया। मतलब, चीन और जापान-कोरिया के बाद भारत को सबसे ज्यादा तेल मिला। रिसर्च फर्म की रिपोर्ट के मुताबिक, होर्मुज के जरिए इराक, सऊदी अरब, कुवैत और यूएई से कच्चे तेल का आयात भारत के कुल कच्चे तेल के आयात का करीब 45-50 फीसदी है।

ईरान के लिए आसान नहीं होर्मुज बंद करना इतिहास पर नजर डालें तो भले ही कई बड़ी धमकियां आई हों, लेकिन होर्मुज जलडमरूमध्य को ईरान ने कभी बंद नहीं किया। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि ईरान की अर्थव्यवस्था तेल पर निर्भर है और ऐसा कोई भी फैसला न सिर्फ दुनिया के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है, बल्कि ईरान की अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है। हालांकि, दूसरी तरफ होर्मुज को बंद करने की ईरान की धमकी के बीच कच्चे तेल की कीमतों में तेज उछाल आया है और सोमवार को यह 80 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गया। विज्ञापन

संकट में भी इस कदम से भारत को राहत इजरायल-ईरान में युद्ध बढ़ने और होर्मुज को बंद करने की धमकियों और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के बावजूद अगर भारत की बात करें तो वह सुरक्षित जोन में नजर आ रहा है। यह हम नहीं कह रहे बल्कि होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की अटकलों के बीच केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री ने कहा है। हमारी तेल आपूर्ति में लगातार विविधता बनी हुई है और देश को होने वाली अधिकांश आपूर्ति होर्मुज के रास्ते नहीं होती, इसलिए इसका भारत पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। हरदीप सिंह पुरी ने अपने पोस्ट में भरोसा दिलाया कि हम पिछले दो हफ्तों से मध्य पूर्व में बदलती भू-राजनीतिक स्थिति पर कड़ी नजर रखे हुए हैं। किसी भी व्यवधान की स्थिति में हम अपने नागरिकों को ईंधन आपूर्ति की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाएंगे।

रूस और अमेरिका से कच्चे तेल का आयात बढ़ा जी हां, एक तरफ जहां चीन समेत अन्य देश होर्मुज के बंद होने की आशंका में पसीना बहा रहे हैं, वहीं भारत रूस-अमेरिका से अपने तेल आयात को बढ़ा रहा है। जून में रूस से कच्चे तेल का आयात दो साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। वैश्विक व्यापार विश्लेषक फर्म केपलर द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, जून में इन दोनों देशों से भारत में आने वाले तेल की मात्रा पारंपरिक मध्य पूर्व आपूर्तिकर्ताओं की कुल खरीद से अधिक थी। भारत प्रतिदिन 2-2.2 मिलियन बैरल रूसी कच्चे तेल का आयात कर रहा है, जबकि जून में अमेरिका से आयात बढ़कर 439,000 बीपीडी प्रतिदिन हो गया, जो पिछले महीने मई में 280,000 बीपीडी था।

गौरतलब है कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश है। यह अपनी जरूरतों का करीब 90 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है और इसका 40 फीसदी से ज्यादा हिस्सा मध्य पूर्वी देशों से आयात किया जाता है, जिसे होर्मुज जलडमरूमध्य के जरिए निर्यात किया जाता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत विदेशों से करीब 5.1 मिलियन बैरल कच्चा तेल आयात करता है, जिसे रिफाइनरियों में पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधन में बदला जाता है।

SoH बंद होने से इतना बुरा असर पड़ेगा! भले ही सरकार होर्मुज जलडमरूमध्य के बंद होने से भारत पर कोई बड़ा असर पड़ने से इनकार कर रही हो, लेकिन इसके बावजूद इस रास्ते से भारत आने वाले कच्चे तेल की मात्रा में कमी और कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से देश में महंगाई का खतरा बढ़ सकता है। इजरायल-ईरान युद्ध शुरू होने के बाद कई रिपोर्ट्स में कच्चे तेल की कीमत 120-130 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आने की आशंका है। शिपिंग कंपनियों की परिचालन लागत बढ़ेगी, होर्मुज जलडमरूमध्य यानी SoH के बंद होने से जहाजों को रास्ता बदलना पड़ेगा और लंबा और महंगा रास्ता अपनाना पड़ेगा। इससे माल ढुलाई की लागत और डिलीवरी का समय भी बढ़ जाएगा। कीमतों में बढ़ोतरी से देश में परिवहन की लागत बढ़ेगी और जरूरी चीजों के दाम बढ़ सकते हैं। यानी यह महंगाई बढ़ाने वाला साबित हो सकता है।