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आत्महत्या को क्यों माना गया है घोर अपराध, क्या है इसकी सज़ा

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: सनातन धर्म में कई कई सारे पवित्र ग्रंथ है जिनमें ज्ञान की बातें बताई गई है इन्हीं में से एक है गरुड़ पुराण जिसे महापुराणों में से एक माना गया है इसमें मानव जीवन से लेकर उसकी मृत्यु और मृत्यु के बार के सफर के बारे में विस्तार से बताया गया है इसमें भगवान विष्णु और उनके वाहन गरुड़ के संवाद पर चर्चा की गई है। 

ऐसा कहा जाता है कि गरुड़ पुराण की बातों को ध्यान में रखा जाए तो व्यक्ति सदा सफलता ही प्राप्त करता है इस महापुराण में जीवन, मृत्यु, नर्क, स्वर्ग व विभिन्न प्रकार के कर्म और उनके फल के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है वही गरुड़ पुराण में आत्महत्या को घोर अपराध कहा गया है और इससे जुड़ी सजा का भी वर्णन किया गया है तो आज हम आपको अपने इस लेख में इसी विषय पर जानकारी प्रदान कर रहे है तो आइए जानते है। 

आज हम अपने इस लेख में चर्चा कर रहे है कि अध्यात्मिक रूप यानी गरुड़ पुराण के अनुसार  आत्महत्या के दुष्परिणाम क्या है, गरुड़ पुराण में वर्णित है कि जिन आत्माओं का देह त्याग प्राकृतिक रूप से होता है वह 3, 10, 13 या 40 दिनों में दूसरा शरीर धारण कर लेते है लेकिन अगर जो मनुष्य आत्महत्या करने का घोर अपराध करते है उनकी आत्मा काफी लंबे वक्त तक मृत्यु लोक में ही भटकती रहती है। 

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गरुड़ पुराण में आत्महत्या को परमात्मा के अपमान करने के समान बताया गया है जिसके परिणाम स्वरूप उस आत्मा को ना तो स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है और ना ही उसे नरक में स्थान प्राप्त होता है ऐसे में वह आत्मा लोक और परलोक के बीच में ही भटकती रहती है और यही उसके अपराध की सबसे बड़ी सज़ा होती है।