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भृगु ऋषि ने क्यों मारी भगवान विष्णु की छाती पर लात, जानिए कारण

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार एक समय में महान ऋषि हुए जिनका नाम था महर्षि भृगु। महर्षि भृगु की महानता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके द्वारा रचित भृगु संहिता आज भी अनुकरणीय हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा महर्षि भृगु के जीवन काल से जुड़ी एक ऐसी घटना के बारे में बता रहे हैं जो महर्षि भृगु और त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश से संबंधित है तो आइए जानते हैं। 

कथा अनुसार महर्षि भृगु ने श्री विष्णु के छाती पर अपने पैरों से प्रहार कर दिया। मगर ऐसा क्यों हुआ आज हम आपको बता रहा हैं श्री पद पुराण में संघार खंड में वर्णित कथा अनुसार मंदराचल पर्वत पर हो रहे यज्ञ में ऋषि मुनियों में इस बात पर विवाद छिड़ गया की त्रिदेव यानी भगवान ब्रह्म, भगवान विष्णु और भगवान महेश में से सबसे श्रेष्ठ देव कौन हैं इस विवाद के अंत में यह निष्कर्ष निकला कि जो देव सत्वगुणी होंगे वही श्रेष्ठ हैं इस काम के लिए भृगु ऋषि को नियुक्त किया गया। त्रिदेव की परीक्षा लेने के क्रम में भृगु पहले ब्रह्मलोक पहुंचे।

वहां जाकर वह बिना कारण ही ब्रह्मा जी पर क्रोधित हो गए कि आप सभी ने मेरा अनादर किया। यह देख ब्रह्मा जी को भी क्रोध आ गया और उन्होंने कहा तुम अपने पिता से ही आदर की आशा रखते हो। भृगु तुम कितने भी बड़े विद्वान क्यों ना हो जाओं तुम्हें अपनों से बड़ो का आदर करना नहीं भूलना चाहिए।  इस पर ऋषि ने क्षमा मांगी मगर आप क्रोधित हो गए। मैं तो केवल यह देख रहा था की आपको क्रोध आता है या नहीं।  

इसके बाद ऋषि शिव की परीक्षा लेने पहुंचे। शिव अपने ध्यान में लीन हैं भृगु ऋषि स्वयं उसी स्थल पर चले गए जहां शिव ध्यान कर रहे थे। वहां पहुंचकर ​ऋषि शिव का आवाहन करने लगे। भृगु की आवाज से शिव का ध्यान भंग हो गया और वह क्रोधित हो गए। शिव ने कहा आज तुम्हारी मौत निश्चित हैं तभी मां पार्वती आ गई और शिव से भृगु की प्राणों की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगी। माता ने शिव को बताया कि इसमें ऋषि की कोई गलती नहीं। वह तो बस पृथ्वी के सभी ऋषि मुनियों का मार्ग दर्शन करना चाहते हैं यह जानकार शिव का क्रोध शांत हो गया और ऋषि को बताया कि क्रोध तो मेरा स्थाई भाव हैं। 


 
इसके बाद ऋषि विष्णु की परीक्षा के लिए उनके धाम पहुंचे। उन्होंने देखा कि विष्णु निद्रा में हैं भृगु को लगा कि उन्हें आता देख जानबूझकर विष्णु सोने का नाटक कर रहे हैं तब उन्होंने अपने पैरों से विष्णु की छाती पर आघात किया। विष्णु की निद्रा भंग हो गई। श्री हरि विष्णु उठते ही भृगु के पैर पकड़ लिए और कहा, कि महर्षि आपके पैरों को कहीं चोट तो नहीं लगी। महर्षि भृगु यह देखकर लज्जित हुए और प्रसन्न भी।