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क्या होता है आध्यात्म, सनातन धर्म में ये क्यों है जरूरी

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म में ईश्वर आराधना व पूजा को सर्वोत्तम बताया गया है मान्यता है कि देवी देवताओं की पूजा करने से साधक को ईश्वर कृपा मिलती है लेकिन आध्यात्मिकता का किसी धर्म, संप्रदाय या मत से कोई भी जुड़ाव या संबंध नहीं है मनुष्य अपने भीतर कैसा है आध्यात्मिकता इसके बारे में है अधिकतर लोग आध्यात्म के विशेष पर जानना चाहते है अगर आप भी उन्हीं में से एक है तो आज का हमारा ये लेख आपके लिए है। 

आध्यात्म के अनुसार आध्यात्मिक होने का अर्थ है भौतिकता से परे होकर जीवन का अनुभव करना। अगर आप इस संसार के सभी प्राणियों में उसी परमेश्वर के अंश को देखते है जो आपमें समाया हुआ हे तो आप भी आध्यात्मिक है अगर आपको बोध है कि आपके दुख, आपके क्रोध, आपके क्लेश के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है आप स्वयं ही इनके निर्माण और जिम्मेदार है तो समझ लीजिाए की आप आध्यात्मिक मार्ग पर निकल चुके है। मनुष्य जो भी कार्य करता है अगर उसमें सभी की भलाई और हित छिपा हुआ है तो वह मनुष्य आध्यात्मिक माना जाएगा।

वही अगर व्यक्ति स्वयं के भीतर से अहंकार, क्रोध, नाराजगी, लालच, ईष्या और पूर्वाग्रहों को निकाल चुका है और खुद के अंदर हमेशा ही प्रसन्नता और आनंद भरे हुए है तो ऐसा मनुष्य ही आध्यात्मिक माना गया है। अगर इस विशाल ब्रह्माण के सामने आप स्वयं की स्थिति का एहसास कर सकते है तो आप भी आध्यात्मिक कहलाएंगे। जिस भी मनुष्य के भीतर इस संसार के सभी प्राणियों के लिए करुणा, दया का भाव निर्मित है तो वह मनुष्य भी आध्यात्मिक माना जाएगा।

हम ऐसा कह सकते है कि आध्यात्मिकता मंदिर, मस्जिद या चर्च में नहीं मिलती है बल्कि ये आपके भीतर घटित हो सकती है हय अपने अंदर तलाशने के बारे में है। जो जीवन के हर आयाम को पूरी जीवंतता के साथ जीना चाहते है। अस्तित्व में एकात्मकता व एकरूपता है और हर एक मनुष्य अपने आप में अनूठा है इसे पहचानना और इसका आनंद लेना ही आध्यात्मिकता का सार माना जा सकता है आध्यात्म किसी मनुष्य के भीतर खुद से डाल नहीं जाता है बल्कि यह स्वयं ही उत्पन्न होने वाली चीज़ है।