×

आध्यात्मिक तौर पर क्या होती है आत्मा की अस्वस्थता

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: सनातन धर्म में मनुष्य जीवन से जुड़ी कई अहम बातें बताई गई है जिनका पालन करके मनुष्य अपने जीवन में सभी प्रकार के सुखों को प्राप्त कर सकता है शास्त्रों की मानें तो हर मनुष्य के लिए पांच तरह का स्वास्थ्य बेहद जरूरी होता है जिसमें शरीर, परिवार, समाज, मन और आत्मा शामिल है इन्हीं के अस्वस्थ्य रहने के कारण मनुष्य में मोह, संशय, संदेह, शंका और भ्रम पैदा होता है। 

हर व्यक्ति के लिए शरीर बेहद महत्वपूर्ण होता है ये ईश्वर से प्राप्त बड़ा वरदान है ऐसे में महात्मा बुद्ध कहते है कि तन को तंदुरुस्त रहने के लिए सम्यक आहार जरूरी है और सम्यक व्यायाम भी जरूरी है। जिस प्रकार से मनुष्य के शरीर का स्वस्थ्य रहना जरूरी है ठीक उसी तरह से आत्मा का भी स्वस्थ्य रहना जरूरी है लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है और आत्मा अस्वस्थ्य बनी रहती है तो आज हम अपने इस लेख में आत्मा के अस्वस्थता के कारण विस्तार से बता रहे है तो आइए जानते है। 

आत्मा अस्वस्थता रहने का मुख्य कारण ही मनुष्य की मोह, माया और उसकी इच्छाएं है अगर हम इनका त्याग करें और ईश्वर प्राप्ति पर ध्यान केंद्रित करें तो हम अपनी आत्मा को प्रसन्न कर सकते है हम वैराग लेकर पमात्मा को ऊपर खोजने जाएं यह भी एक गति है लेकिन क्यों न हम एक एक पारिवारिक दायित्वों को पूरा करके उन्हें नीचे ही बुला लें। मनु और शतरूपा ने भी वैराग का पथ लिया तो भी पारिवारिक दायित्व को पूरा किया। किसी भजन का अर्थ यह नहीं होता है कि हम सभी को नजरअंदाज करें बल्कि भजन में पारिवारिक स्वास्थ्य को जरूरी माना गया है। 

आत्मा की तंदुरुस्ती के विषय में यह आपको बताना चाह रहे है कि आत्मा बीमार नहीं होती है बल्कि मन बीमार हो सकता है जिस प्रकार सूरज तंदुरुस्त है लेकिन बदल से आवृत्त होने के कारण सूरज हमें दिखाई नहीं देता है ठीक वैसे ही हमारी आत्मा का भी हाल होता है। आध्यात्मिक तौर पर यह कहा जा सकता है कि आत्मा पर कई तरह के बादल छाए रहते है किसी भी रुप में आत्मा अस्वस्थ्य नहीं होती है आत्मा कभी बूढ़ी भी नहीं हो सकती है क्योंकि शरीर जन्म लेता है और आत्मा का कभी जन्म नहीं होता है, तो ऐसे में मनुष्य को अपने मन को तंदुरुस्त रखने की जरूरत है।